चावल से जुड़ा धार्मिक व वैज्ञानिक रहस्य, जानें क्यों इस दिन खाना है वर्जित

वह लोग सात्विक का पालन करते है यानी कि इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मछली, अंडा नहीं खाएं और झूठ, ठगी आदि का त्याग कर दें। साथ ही इस दिन चावल और इससे बनी कोई भी चीज नहीं खानी चाहिए।

Update: 2020-12-25 02:46 GMT
मोक्षदा एकादशी का व्रत सच्चे मन और श्रद्धा से रखने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए ही इस एकादशी का नाम मोक्षदा अथार्त मोक्ष देने वाली रखा एकादशी कहा गया है।

जयपुर: पुराणों के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन सच्चे मन से पूजा करने पर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इस दिन दान करने से हजारों यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है। इस दिन निर्जला व्रत रहा जाता है। जो लोग इस दिन व्रत नहीं रख पाते। वह लोग सात्विक का पालन करते है यानी कि इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मछली, अंडा नहीं खाएं और झूठ, ठगी आदि का त्याग कर दें। साथ ही इस दिन चावल और इससे बनी कोई भी चीज नहीं खानी चाहिए।

 

एकादशी के दिन चावल का त्याग जरूर करना चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। फिर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करें और मन ही मन भगवान विष्णु का नाम जपें करना चाहिए।

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चावल वर्जित क्यों ?

 

एकादशी के दिन चावल वर्जित करने के पीछे की वजह है कि चावल का संबंध जल से हैं और जल का संबंध चंद्रमा से है। पांचों ज्ञान इन्द्रियां और पांचों कर्म इन्द्रियों पर मन का ही अधिकार है। मन और श्वेत रंग के स्वामी भी चंद्रमा ही हैं, जो स्वयं जल, रस और भावना के कारक हैं, इसीलिए जलतत्त्व राशि के जातक भावना प्रधान होते हैं, जो अक्सर धोखा खाते हैं।

एकादशी के दिन शरीर में जल की मात्र जितनी कम रहेगी, व्रत पूर्ण करने में उतनी ही अधिक सात्विकता रहेगी। आदिकाल में देवर्षि नारद ने एक हजार साल तक एकादशी का निर्जल व्रत करके नारायण भक्ति प्राप्त की थी। वैष्णव के लिए यह सर्वश्रेष्ठ व्रत है। चंद्रमा मन को अधिक चलायमान न कर पाएं, इसीलिए व्रती इस दिन चावल खाने से परहेज करते हैं।

 

ऐसे हुई चावल की उत्पति

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एकादशी पर व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन चावल खाना अशुभ माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार माता शक्ति, महर्षि मेधा पर बहुत क्रोधित हो गई थीं। महर्षि मेधा ने माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए अपना शरीर त्याग दिया था। इसके बाद उनका शरीर धरती में समा गया था। मान्यताओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि जिस जगह पर महर्षि मेधा का शरीर धरती में समाया था, उसी जगह पर चावल और जौ की उत्पत्ति हुई थी। इसी वजह से एकादशी के दिन चावल और जौ का सेवन नहीं किया जाता है।

मान्यताओं के अनुसार, एकादशी के दिन जो व्यक्ति चावल या जौ का सेवन करता है, वह महर्षि मेधा के रक्त और मांस का सेवन करता है।

 

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वैज्ञानिक तर्क

एकादशी के दिन चावल न खाने के पीछे वैज्ञानिक तर्क है। इसके अनुसार, चावल में जल की मात्रा अधिक होती है। जल पर चन्द्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है। चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है इससे मन विचलित और चंचल होता है। मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती है।इसलिए एकादशी के दिन चावल से बनी चीजे खाना वर्जित कहा गया है।

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