Satellite Based Toll Collection: जल्द ही सैटेलाइट आधारित टोल कलेक्शन सिस्टम होगा लागू, सीधे बैंक खाते से कटेगा टोल

Satellite Based Toll Collection: नितिन गडकरी ने राष्ट्रीय राजमार्गों पर लगने वाले टोल टैक्स को लेकर ऐलान किया है कि अब मौजूदा टोल प्रणाली को खत्म किया जाएगा और इसकी जगह पर उपग्रह आधारित सैटेलाइट आधारित टोल संग्रह प्रणाली को लागू किया जाएगा।

Report :  Jyotsna Singh
Update:2024-07-27 21:48 IST
Satellite Based Toll Collection

Satellite Based Toll Collection: राष्ट्रीय राजमार्गों पर चलने वाले वाहनों के लिए जल्द ही टोल टैक्स चार्ज किए जाने की व्यवस्था में बड़ा बदलाव आने जा रहा है। इस व्यवस्था में समय समय पर लगातार तकनीकी सुधार के तौर पर अपडेट्स होते देखे जा रहें हैं। अब जल्द ही इस व्यवस्था में फिर एक बार बड़ा बदलाव होने जा रहा है। जिसकी घोषणा सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी द्वारा की गई है। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने राष्ट्रीय राजमार्गों पर लगने वाले टोल टैक्स को लेकर ऐलान किया है कि अब मौजूदा टोल प्रणाली को खत्म किया जाएगा और इसकी जगह पर उपग्रह आधारित सैटेलाइट आधारित टोल संग्रह प्रणाली को लागू किया जाएगा।

इस प्रक्रिया को लागू करने के पीछे हमारा उद्देश्य टोल कलेक्शन की प्रक्रिया में सुधार के साथ इसे और ज्यादा सुविधाजनक बनाना है। जिससे अक्सर टोल प्लाजा पर लगने वाली लंबी लाइनों से वाहन मालिकों को होने वाली असुविधा से बचत होगी साथ ही इस टैक्स की लागत को भी कम करने पर काम किया जा रहा है। सरकार वाहन मालिकों को किफायती टोल सुविधा उपलब्ध कराने जा रही है। शुरुआती दौर में ये नई सुविधा चुनिंदा टोल प्लाजा पर होगी। चरणबद्ध योजना के तहत ये बदलाव एक एक करके टॉलप्लाजा को इस नई तकनीक से लैस किया जाएगा। आइए जानते हैं नई टोल टैक्स व्यवस्था से जुड़े डिटेल्स के बारे में ..

वर्तमान में लागू सिस्टम से कितना अलग है उपग्रह आधारित टोल संग्रह प्रणाली

देश के राष्ट्रीय मार्गों पर वर्तमान समय में रेडियो फ्रिक्वेंसी पहचान (RFID) टैग्स टोल टैक्स प्रणाली लागू है। इस प्रणाली में वाहनों के बाहरी ग्लास पर RFID प्रमाणित फास्टैग्स कार्ड चिपके होते हैं। ये फास्टैग्स वाहन मालिक के बैंक खातों से जुड़े होते हैं। ये वाहन जब राष्ट्रीय मार्गों से गुजरते हैं तो रास्ते में पड़ने वाले टोल बूथों पर लगे कैमरों और इंटरनेट की मदद से फास्टैग चिप को रीड कर बैंक खाते से निर्धारित तो टैक्स कट जाता है। लेकिन सरकार का प्रयास है की टोल प्लाजा पर वाहन मालिकों जा ज्यादा समय न लगे। क्योंकि इस प्रक्रिया में अक्सर वाहन मालिकों के लिंकड खाते में पैसा न होने और फास्टटैग में किसी तरह की खराबी आने से अक्सर वाहन चालकों को लंबी कतार लग जाती है। साथ ही टोल चुकाने के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं। ऐसे में आने वाली नई उपग्रह आधारित टोल संग्रह प्रणाली कहीं ज्यादा सुविधाजनक और रियायती साबित होगी।

नई उपग्रह आधारित टोल संग्रह प्रणाली की खूबियों की बात करें तो इसमें टोल के लिए ऑन-बोर्ड यूनिट यानी OBU डिजिटल वॉलेट से कार मालिकों के आधार से लिंक बैंक खातों को पंजीकृत किया जाएगा।उसके बाद जब OBU लगा लगा वाहन टोल से गुजरेगा तो GNSS उसे ट्रैक कर दूरी के हिसाब से टोल काट लेगा। इस नई टॉलटैक्स प्रणाली की सबसे बड़ी खूबी है की इसमें टोल प्लाजा आभासी होंगे, यानी यह दिखाई नहीं देंगे। इसके लिए वर्चुअल गैन्ट्रीज इंस्टॉल किए जाएंगे। इससे जोड़ने के लिए वाहनों में ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU) लगाई जाएगी। जिसकी मदद से टोल संग्रह किया जाएगा। यानी ये एक ट्रैकिंग डिवाइस के रूप में कार्य करेगी।

उपग्रह आधारित टोल संग्रह प्रणाली से क्या होगा लाभ

इस नई प्रणाली से होने वाले लाभ की बात करें तो इसमें सटीक दूरी-आधारित टोल गणना के लिए ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम और भारत के GPS एडेड GEO ऑगमेंटेड नेविगेशन जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाएगा। ये तकनीक सटीक स्थान ट्रैकिंग की क्षमताएं प्रदान करती है। इस नई तकनीक की मदद से टोल टैक्स देने वाले वाहनों को ट्रैक करना आसान हो जाएगा और साथ ही टोल टैक्स दाताओं का अहम डाटा भी सुरक्षित रहेगा।भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) वर्तमान में टोल राजस्व के रूप में सालाना करीब 40,000 करोड़ रुपये एकत्र करता है, लेकिन उपग्रह आधारित प्रणाली के लागू होने के 2 से 3 साल के भीतर वृद्धि के साथ 1.40 लाख करोड़ होने की उम्मीद जताई जा रही है।

पहले से सस्ता होगा अब सफर

मौजूदा रेडियो फ्रिक्वेंसी पहचान (RFID) टैग्स टोल टैक्स प्रणाली में वाहनों के चलने की सटीक जानकारी नहीं उपलब्ध हो पाती थी। फास्टैग आधारित मौजूदा टोल सिस्टम में हाईवे का इस्तेमाल करने पर आपको कम दूरी के लिए भी पूरे टोल का भुगतान करना पड़ता है। इसके उलट उपग्रह आधारित टोल संग्रह प्रणाली में हाइवे पर दूरी के हिसाब से ही टोल देना होगा।नई OBU तकनीक राजमार्गों और टोल सड़कों पर कार के निर्देशांकों को ट्रैक करने काम सटीक तौर पर करेगी और दूरी की गणना करने के लिए उपग्रहों के साथ साझा करेगी।उसके बाद GPS और GNSS हाइवे पर लगे कैमरों की तस्वीरों की मदद से कार के निर्देशांकों की तुलना करके उसके हाइवे पर चलने की दूरी के मुताबिक गणना उपलब्ध कराई जाएगी। इस नई तकनीक से इन मुख्य राज मार्गों पर वाहनों से हाईवे पर चलने की दूरी के हिसाब से ही टोल टैक्स की कीमत चार्ज की जाएगी। ऐसे में वाहन मालिक अतरिक्त टोल का भुगतान से बच सकेंगे। हालांकि, सरकार कितनी दूरी के लिए कितना टोल टैक्स लगाएगी इसका खुलासा यह प्रणाली लागू होने के बाद ही होगा।हालांकि, भारत में GPS आधारित टोल संग्रह प्रणाली को लागू करना सड़क नेटवर्क के विशाल पैमाने और वाहनों की विविधता के चलते शुरुआती दौर में बड़ा चैलेंजिंग रोल अदा कर सकता है।

ऐसे उपलब्ध होंगे OBU

नई टोल टैक्स प्रणाली के चलते अब वाहन मालिकों को टोल टैक्स पे करने के लिए OBU का इस्तेमाल करना जरूरी होगा। ये फास्टैग्स की तरह ही सरकारी वेबसाइटों के माध्यम से लोगों के लिए उपलब्ध होंगे। पंजीयन के बाद इसे वाहनों पर बाहरी रूप से स्थापित करना होगा। इस बात की भी जानकारी सामने आ रही है कि वाहन निर्माता कंपनियां अपने वाहनों को पूर्व-स्थापित OBU के साथ भी कारों को बिक्री के लिए उतार सकती हैं।

कई देशों में पहले से हो रहा OBU प्रणाली का इस्तेमाल

भारत में लागू होने जा रही उपग्रह आधारित टोल संग्रह प्रणाली का इस्तेमाल पहले से ही कई देशों में किया जा रहा है। इनमें मुख्य रूप से जर्मनी, हंगरी, बुल्गारिया, बेल्जियम और चेक रिपब्लिक जैसे देशों के साथ अब इस सूची में भारत का भी नाम दर्ज होने जा रहा है।

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