AMUL: दुग्ध क्रांति और किसान स्वावलंबन की कहानी- अमूल अटरली बटरली डिलीशियस

AMUL: क्या आप यह बात जानते हैं कि देश की आजादी के कुछ ही साल बाद शुरू हुई अमूल कंपनी अपने उत्पादन के लिए देश की नं. 1 डेरी कंपनी बन गई.

Written By :  Anshul Thakur
Published By :  Chitra Singh
Update: 2021-07-07 03:13 GMT

अमूल (फोटो- सोशल मीडिया)

AMUL: "अमूल" (AMUL) भारत में इस ब्रांड को किसी तरह के परिचय की जरूरत नहीं है. भारत में हर घर में आने वाला दूध हो या बटर, पनीर या विदेशी चीज़ इन सब के बारे में सोचते हुए एक ही नाम ज़ुबान पर आता है, - अमूल. "अमूल, द टेस्ट ऑफ इंडिया" (AMUL, The Test of India).

क्या आप यह बात जानते हैं कि देश की आजादी के कुछ ही साल बाद शुरू हुई अमूल कंपनी, अपने उत्पादन के लिए देश की नं. 1 डेरी कंपनी (Country no. 1 Dairy Company) बन गई है. एक अनुमान के अनुसार, इस ब्रांड की रोजाना कमाई 90 करोड़ रुपए से भी ज्यादा है.

साल था 1949, देश अंग्रेजों से आजाद हो चुका था. उस वक्त देश अंग्रेजों की बेड़ियों से तो आजाद हुआ, लेकिन उसे गरीबी और भुखमरी ने जकड़ लिया. तब ना तो देश के पास ना अनाज था और ना ही पोषण देने के लिए दूध और ना ही उद्योग. उस वक्त दूध बेचने वाले किसान बिचौलियों की मुंह मांगी कीमत में दूध बेचने को मजबूर हो गए थे. इन परिस्थितियों ने गुजरात में काम करने वाले डॉ. वर्गीज कुरियन (Verghese Kurien) के दिल में बेचैनी पैदा की और इसी बेचैनी ने एक छोटी सी सहकारी सोसाइटी को ब्रांड बना दिया.

वर्गीज कुरियन (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

अमूल की कहानी (AMUL story) अंग्रेजों के शासन काल में शुरू हुई थी. तब गुजरात के आणंद इलाके में इकलौती कंपनी थी जिसका नाम था "पोल्सन". यह किसानों से कम दाम में दूध खरीदती थी और मुंबई में इस दूध की सप्लाई करके बड़ा मुनाफा कमाती थी. पोल्सन कंपनी अंग्रेजों को भी दूध सप्लाई करती थी. लेकिन अब वक्त बदल रहा था. राष्ट्रीय नेता सरदार पटेल ने कुछ किसानों के साथ इसके खिलाफ नॉन-कॉपरेशन आन्दोलन शुरु कर दिया. परिणामस्वरुप किसानों के प्रतिनिधि त्रिभुवन दास पटेल ने Bombay Milk Scheme के तहत 14 दिसंबर 1946 को खेड़ा डिस्ट्रिक्ट मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन लिमिटेड की शुरुआत की.

इसके बाद कहानी में एंट्री हुई भारत के मिल्कमैन के नाम से मशहूर डेरी इंजीनियर वर्गीज़ कुरियन की. साल 1949 में उन्‍होंने त्रिभुवन दास पटेल के साथ मिल कर गुजरात के दो गांवों को अपने साथ जोड़ा और डेयरी सहकारिता संघ की शुरूआत की. साल 1950 में त्रिभुवन दास पटेल ने इस सोसाइटी की जिम्मेदारी डॉ. वर्गीज कुरियन को सौंप दी और कुरियन इस को-ऑपरेशन को मजबूत करने में जुट गए. कुरियन दुनिया के वो पहले व्यक्ति थे जिन्होनें भैंस के दूध से मिल्क पाउडर तैयार किया था. इससे पहले सिर्फ़ गाय के दूध से ही पाउडर तैयार किया जाता था.

अमूल नाम का चयन

अब साल 1955 में को-ऑपरेशन का नाम चुनने की बारी आई. इसका नाम डॉ. कुरियन ने 'अमूल" रखा. यह नाम आणंद मिल्क यूनियन लिमिटेड को छोटा कर रखा गया था.

कैसे मिली 'अमूल" को उसकी 'अमूल गर्ल'

अमूल ब्रांड के एड्स में दर्शाए जाने वाली 'अमूल गर्ल' (Amul girl) भी डॉ. कुरियन की ही देन है. उन्होंने पोल्सन डेयरी के विज्ञापन वाली 'पोल्सन गर्ल' से मुकाबला करने के लिए 'अमूल गर्ल' को बनाने का फैसला किया. साल 1966 में अमूल का पहला विज्ञापन आया था. अमूल ब्रांड का "Utterly Butterly Campaign" सबसे ज्यादा चलने वाला विज्ञापन था, जिसके लिए इसको गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी शामिल किया गया था.

अमूल पोस्टर (फोटो- सोशल मीडिया)

अटरली-बटरली- डिलीशियस

क्या आप जानते है कि अमूल की टैगलाइन पहले 'प्योरली द बेस्ट' थी. लेकिन बाद में अमूल बटर लॉच होने के बाद इसे 'अटर्ली बटर्ली डिलीशियस' (Utterly Butterly Delicious) कर दिया गया था. 1990 के दशक तक अमूल की मार्केटिंग लोगों के पसंद आने लगी थी. अमूल के बारे में लोगों यहां तक सोचने लगे थे कि वो घर पर भी अमूल से ज्यादा किफायती उत्पाद नहीं बना सकते.

पूरे देश के लिए मिसाल बना अमूल मॉडल

अमूल का डेवलपमेंट मॉडल से सरकार इतनी प्रभावित हुई कि सरकार इसे पूरे देश में लागू करना चाहती थी, जिसके लिए 1964 में नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड का गठन किया गया. डॉ. कुरियन ने ही दुनिया के सबसे बड़े डेयरी डेवलपमेंट प्रोग्राम को तैयार किया, जिसे 'ऑपरेशन फ्लड' या 'श्वेत क्रांति' (Operation Flood) के नाम से पहचान मिली.

डॉ. कुरियन ने छोड़ा चेयरमैन पद

साल 1950 के अंत में अमूल ने कई प्रोडक्ट लॉन्च किए, लेकिन वो बजार में कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाए. धीरे-धीरे अमूल की जीडीपी ग्रोथ कम होने लगी. 2006 में डॉ. कुरियन ने चेयरमैन पद छोड़ दिया, जिसके बाद कुछ वक्त के लिए राजनेताओं ने अमूल को संभाला.

एक बार फिर उठा अमूल

साल 2010 में अमूल की कमान पिछले 30 सालों से अमूल के साथ जुड़े आरएस सोढ़ी के हाथ में गई, जिन्होंने सप्लाई चेन में कुछ बदलाव किए और कई नए प्रोडक्ट को भी लॉन्च किया, जिससे अमूल की गाड़ी एक बार फिर पटरी पर आ गई. 2010 से 2015 के बीच अमूल का टर्नओवर सालाना 8,005 करोड़ से बढ़कर 20,733 करोड़ तक जा पहुंच.

अमूल का उत्पादन

शुरुआती दिनों में अमूल कंपनी की क्षमता 250 लीटर प्रति दिन तक के उत्पादन की ही थी. लेकिन आज अमूल का उत्पादन रोजाना लगभग 2.3 करोड़ लीटर तक पहुंच चुका है. एक आंकड़े के अनुसार आज अमूल ब्रांड का टर्नओवर 38,542 करोड़ रुपए प्रति वर्ष से भी ज्यादा का है.

Tags:    

Similar News