ब्याज दरों में कटौती का बंगाल कनेक्शन, सियासी कारणों से पलटा केंद्र का फैसला
मोदी सरकार ने बंगाल चुनाव में झटका लगने की संभावनाओं के मद्देनजर यह फैसला वापस लिया है।
नई दिल्ली। छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती का फैसला 24 घंटे के भीतर ही वापस ले लिया गया। केंद्र सरकार की ओर से 31 मार्च को छोटी बचत योजनाओं में की ब्याज दरों में कटौती की अधिसूचना जारी की गई थी मगर अगले दिन सुबह ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस फैसले को वापस लेने का एलान किया। जानकारों का मानना है कि इसके पीछे बड़ा सियासी कनेक्शन है।
दरअसलमोदी सरकार ने बंगाल चुनाव में झटका लगने की संभावनाओं के मद्देनजर यह फैसला वापस लिया है। छोटी बचत योजनाओं में देश के विभिन्न राज्यों के योगदान का विश्लेषण किया जाए तो इस मामले में पश्चिम बंगाल नंबर वन पर है। ऐसे में भाजपा ने नुकसान की आशंका से तुरंत ही कदम वापस खींच लिए और पीएमओ के कहने पर वित्त मंत्री ने आनन-फानन में फैसले को वापस लेने की घोषणा कर दी।
चुनावों में लग सकता था भारी झटका
वित्त मंत्रालय की ओर से 31 मार्च को नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट (एनएससी) और पीपीएफ समेत सभी छोटी बचत योजनाओं में की ब्याज दरों में कटौती की अधिसूचना जारी की गई थी मगर वित्त मंत्री ने इसे वापस लेने की घोषणा करते हुए कहा कि आदेश भूल से जारी हो गया था।
वित्तमंत्री भले ही भूलवश अधिसूचना जारी होने का बहाना बनाएं मगर सच्चाई यह है कि इस फैसले को वापस लेने में पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनाव के दबाव ने बड़ी भूमिका निभाई। सत्तारूढ़ भाजपा को इस बात का डर सताने लगा कि ऐन चुनाव के मौके पर लिए गए इस फैसले से बड़ा सियासी नुकसान हो सकता है और यही कारण था कि सरकार कदम वापस खींचने पर मजबूर हो गई।
स्माल सेविंग में बंगाल का योगदान सबसे ज्यादा
अधिकांश छोटी बचत योजनाएं वरिष्ठ नागरिकों और गरीब मध्य वर्ग से जुड़े लोगों के लिए चलाई जाती हैं। छोटी बचत योजनाओं में पश्चिमी बंगाल का योगदान अन्य राज्यों की अपेक्षा सबसे ज्यादा है। यदि 2017-18 के नेशनल स्मॉल सेविंग फंड (एनएसएसएफ) का विश्लेषण किया जाए तो पश्चिम योगदान बंगाल का योगदान करीब 15.1 फ़ीसदी था। यदि इसे राशि के मामले में देखा जाए तो राज्य का योगदान करीब 90000 करोड रुपए था।
तमिलनाडु व असम का भी योगदान अहम
पश्चिम बंगाल के साथ ही तमिलनाडु व असम का भी छोटी बचत योजनाओं में योगदान अहम है। आंकड़ों के मुताबिक 2017-18 में छोटी बचत योजनाओं में तमिलनाडु का 4.80 फ़ीसदी यानी करीब 28598 करोड़ रुपए का योगदान था। छोटी बचत योजनाओं में योगदान करने वाले देश के टॉप 5 राज्यों में तमिलनाडु भी शामिल है। इसके अलावा असम का योगदान 9,446 करोड़ रुपए था।
सरकार की सियासी मजबूरी
केंद्र सरकार ने पिछले साल 1 अप्रैल, 2020 को छोटी बचत योजनाओं पर मिलने वाले ब्याज की दरों में कटौती की थी। पिछले साल मोदी सरकार की ओर से ब्याज दरों में 1.40 फ़ीसदी की कटौती की गई थी।
इसके बाद इस साल 31 मार्च को भी कटौती का फैसला किया गया था मगर पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सरकार फैसला वापस लेने पर मजबूर हो गई। नेशनल स्मॉल सेविंग फंड में राज्यों के योगदान को देखा जाए तो पश्चिम बंगाल पहले और उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर पर है।
पीएमओ ने दिया था दखल
जानकार सूत्रों का कहना है कि छोटी बचतों पर ब्याज दर में कटौती का फैसला पीएमओ के निर्देश पर वापस लिया गया। सूत्रों के मुताबिक गुरुवार को सुबह इसके लिए पीएमओ से वित्त मंत्रालय को निर्देश दिया गया और इसके बाद सुबह करीब आठ बजे वित्त मंत्री ने ट्वीट कर सबको फैसला वापस लेने की जानकारी दी।
जानकारों का कहना है कि सरकार के इस फैसले की सोशल मीडिया पर तीखी आलोचना की जा रही थी। ऐसे में चुनावी माहौल में नफा नुकसान का आंकलन करने के बाद मोदी सरकार ने कटौती का फैसला वापस लेने में ही भलाई समझी।
लोगों की नाराजगी से डर गई सरकार
इस बार के चुनाव में पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़ी सियासी जंग देखने को मिल रही है। भाजपा ने ममता बनर्जी को सत्ता से बेदखल करने के लिए तगड़ी घेरेबंदी कर रखी है और ममता बनर्जी भी भाजपा का चक्रव्यूह तोड़ने में जुटी हुई है। ऐसे में सरकार लोगों की नाराजगी नहीं मोल लेना चाहती थी। यही कारण है कि लंबी प्रक्रिया के बाद ब्याज दरों में कटौती का फैसला लेने के बावजूद सरकार फैसले को वापस लेने पर मजबूर हो गई।