अर्थव्यवस्था के लिए चिंतनीय है आरबीआई की सालाना रिपोर्ट
बीते महीने आरबीआई ने अपनी सालाना रिपोर्ट जारी की है। यह सालाना रिपोर्ट भारतीय अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से बेहद विश्वसनीय मानी जाती है।
नई दिल्ली: हर वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े सभी पहलुओं पर केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक आफ इंडिया अपनी सालाना रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। बीते महीने आरबीआई ने अपनी सालाना रिपोर्ट जारी की है। यह सालाना रिपोर्ट भारतीय अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से बेहद विश्वसनीय मानी जाती है। इस रिपोर्ट के जरिए भारतीय अर्थव्यवस्था की वास्तविक तस्वीर को देखा और समझा जा सकता है।
रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन कहा करते थे कि केंद्रीय बैंक के गवर्नर के रूप में उनका कार्य एक वोट लेना या फेसबुक पर लाइक हासिल करना नहीं होता है बल्कि बिना आलोचना की परवाह किए बगैर सही कार्य करना होता है। रघुराम राजन का यह कथन केंद्रीय बैंक के हर गवर्नर पर लागू होता है।
इसलिए हमेशा से केंद्रीय बैंक सरकारों के दबाव से अलग पारदर्शी कार्य करने के लिए जाना जाता है। इसके जरिए प्रस्तुत की जाने वाली सालाना रिपोर्ट, अर्थव्यवस्था पर अध्ययन करने वाले समूह के लिए हमेशा से एक मजबूत बुनियाद के रूप में काम करती रही है।
आरबीआई की सालाना रिपोर्ट में क्या है मौजूद?
वर्ष 2020-21 की सालाना रिपोर्ट में आरबीआई ने कोविड-19 की वैश्विक महामारी का जिक्र करते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था में अप्रत्याशित सिकुड़न को स्वीकारा है। आरबीआई की सालाना रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था से संबंधित कुछ चुनिंदा महत्वपूर्ण तथ्य उपलब्ध है।
1. भारतीय अर्थव्यवस्था एक खपत आधारित अर्थव्यवस्था मानी जाती है। कुल जीडीपी में इसका तकरीबन 55 फ़ीसदी से अधिक का हिस्सा होता है। आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016-17 के बाद स्कूल खबर में नियमित गिरावट आई है। वर्ष 2016-17 में खपत पर होने वाले कुल खर्च की वृद्धि दर 7.8 फ़ीसदी थी जो वर्ष 2020-21 में -7.1 फ़ीसदी हो चुकी है। इसका अर्थ है कि बढ़ रही बेकारी की वजह से आय में आई गिरावट ने खपत को प्रभावित किया है।
2. भारतीय व्यवस्था में निवेश घटा है। वर्ष 2016-17 में निवेश की दर 3.7 फ़ीसदी थी जो कि वर्ष 2020-21 में – 12.9 फ़ीसदी हो चुकी है।
3. कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन में वर्ष 2016-17 की तुलना में वर्ष 2020-21 में गिरावट आई है। वर्ष 2016-17 में जहां वृद्धि दर 6.8 फीसदी थी, वहीं आज 2020-21में यह 3 फ़ीसदी पहुंच चुकी है।
4. निर्माण क्षेत्र को भी बड़ी चपत लगी है। वर्ष 2016-17 में निर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर 5.9 फ़ीसदी थी जो वर्ष 2020-21 में अप्रत्याशित – 10.3 फ़ीसदी हो चुकी है।
5. कोविड-19 की इस तबाही ने सबसे बुरा प्रभाव होटल और ट्रांसपोर्ट जैसे क्षेत्र में दिखा है। वर्ष 2019 में इस क्षेत्र की वृद्धि दर 6.4 फ़ीसदी थी, जो आज -18 फ़ीसदी हो चुकी है।
6. पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे की सालाना रिपोर्ट के अनुसार श्रम बल भागीदारी दर वर्ष 2018-19 में 37.5 फ़ीसदी थी। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी से आंकड़ों का हवाला देते हुए आरबीआई ने लिखा है कि मार्च 2021 में श्रम बल भागीदारी दर 40.2 फ़ीसदी थी। इसका मतलब यह हुआ कि हर 100 लोगों में से 40 लोग काम करना चाहते हैं। मार्च 2021 में भारत की बेरोजगारी दर 10 फ़ीसदी के करीब है।
7. वित्त वर्ष 2021-22 में आरबीआई ने भारत की जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 10.5 फ़ीसदी लगाया है। पिछ्ले वर्ष का अनुमान भी यही था।
8. आरबीआई ने जिक्र किया है कि बैंकों की कर्ज देने की स्थिति ठीक है, लेकिन अक्टूबर 2020 में क्रेडिट ग्रोथ रेट 3 साल के न्यूनतम 5.1 फ़ीसदी पर पहुंच चुकी थी। अगले महीनों में कर्ज वृद्धि दर बढ़कर मार्च 2021 में 5.6 फ़ीसदी हो गई। इस बढ़ोतरी के पीछे का कारण आरबीआई और सरकार की आसान कर्ज नीति है। खुद आरबीआई ने पिछले 1 वर्ष में लिक्विडिटी बढ़ाने के ढेरों उपाय किए हैं। रेपो रेट 1 वर्ष से 4% की दर पर बना हुआ है।
9. बैंकिंग फ्रॉड के मामलों में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 25 फ़ीसदी की कमी आई है। पब्लिक सेक्टर के बैंकों में होने वाले बैंकिंग फ्रॉड में बड़ी गिरावट देखी गई है। तो वहीं निजी बैंकों के संदर्भ में बैंकिंग फ्रॉड मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है। प्राइवेट सेक्टर बैंकों में बैंकिंग फ्रॉड 18.4 फ़ीसदी से बढ़कर 33 फ़ीसदी हो चुका है।
10. आरबीआई ने सर्विस सेक्टर में आई गिरावट को आजाद भारत के इतिहास में सबसे अप्रत्याशित घटना के रूप में जिक्र किया है। वर्ष 2016-17 ने सर्विस सेक्टर की वृद्धि का 8.1 फ़ीसदी थी। वर्ष 2020-21 में इसकी वृद्धि दर -8.4 फ़ीसदी हो चुकी है।
आरबीआई रिपोर्ट की क्या है मायने?
आरबीआई की सालाना रिपोर्ट भारतीय अर्थव्यवस्था के बदहाल सूरत की व्याख्या करती है। सर्विस सेक्टर, खपत, आयात और निर्यात आदि जैसे हर पैमाने पर भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट दर्ज की जा रही है। साथ ही साथ भारतीय अर्थव्यवस्था में बचत की दर भी लगातार घट रही है।
भारत की बचत दर 15 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुकी है। केंद्रीय सांख्यिकी संस्थान के जरिए जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 में बचत दर वर्ष 2012 (36%) की तुलना में घटकर 34.63 हो चुकी थी।
वर्तमान रिपोर्ट को देखकर यही कहा जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आगे की डगर अभी चुनौतियों से भरी हुई है। कोविड-19 का संकट कितने समय तक बना रहेगा, इस तथ्य पर भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार निर्भर करता है।