च्यवनप्राश के विज्ञापन पर डाबर ने पतंजलि को कोर्ट में घसीटा

‘डाबर’ ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक मुकदमा दायर कर आरोप लगाया है कि पतंजलि आयुर्वेद उसके च्यवनप्राश प्रोडक्ट्स के खिलाफ अपमानजनक विज्ञापन चला रही है। डाबर ने पतंजलि को अपमानजनक विज्ञापन चलाने से रोकने के लिए तत्काल आदेश देने पर जोर दिया है।

Written By :  Neel Mani Lal
Update:2024-12-24 14:55 IST

Dabur and Patanjali ( Photo: Social Media)

‘डाबर’ ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक मुकदमा दायर कर आरोप लगाया है कि पतंजलि आयुर्वेद उसके च्यवनप्राश प्रोडक्ट्स के खिलाफ अपमानजनक विज्ञापन चला रही है। डाबर ने पतंजलि को अपमानजनक विज्ञापन चलाने से रोकने के लिए तत्काल आदेश देने पर जोर दिया है। न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने इस मुकदमे में नोटिस जारी करके और अंतरिम आदेशों पर विचार करने के लिए जनवरी के अंतिम सप्ताह में सुनवाई तय की है।

कोर्ट ने शुरू में मामले को मध्यस्थता के लिए भेजने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन डाबर द्वारा तत्काल राहत के लिए दबाव डालने के बाद न्यायाधीश ने मामले की सुनवाई करने का फैसला किया।

क्या है मामला?

डाबर को पतंजलि आयुर्वेद के संस्थापक स्वामी रामदेव के एक विज्ञापन से दिक्कत है। इस विज्ञापन में रामदेव कहते हैं - "जिनको आयुर्वेद और वेदो का ज्ञान नहीं, चरक, सुश्रुत, धनवंतरी और च्यवनऋषि की परंपरा में 'मूल' च्यवनप्राश कैसे बना पाएंगे?"

इससे ये ध्वनि निकलती है कि सिर्फ पतंजलि स्पेशल च्यवनप्राश ही 'मूल' है और बाजार में अन्य च्यवनप्राश के निर्माताओं को इस परंपरा के बारे में कोई जानकारी नहीं है, और नतीजतन वे सभी नकली या साधारण हैं।

पतंजलि को आदतन अपराधी बताया

डाबर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अखिल सिब्बल ने तर्क दिया कि पतंजलि आयुर्वेद एक आदतन अपराधी है। उन्होंने इस साल की शुरुआत में पतंजलि के खिलाफ दर्ज की गई अवमानना याचिका में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला दिया। सिब्बल के अनुसार, अन्य च्यवनप्राश को "साधारण" कहना यह दर्शाता है कि वे घटिया हैं और ये च्यवनप्राश की पूरी श्रेणी का अपमान करता है, जो एक शास्त्रीय आयुर्वेदिक दवा है। सिब्बल ने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट का हवाला देते हुए कहा कि सभी च्यवनप्राश को प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में उल्लिखित विशिष्ट फॉर्मूलेशन और अवयवों का पालन करना चाहिए, जिससे "साधारण" च्यवनप्राश की धारणा भ्रामक और डाबर जैसे प्रतिस्पर्धियों के लिए हानिकारक हो जाती है, जिसकी इस सेगमेंट में 61.6 फीसदी बाजार हिस्सेदारी है।

भ्रामक विज्ञापन

अखिल सिब्बल ने तर्क दिया कि विज्ञापन में गलत बयानी न केवल उपभोक्ताओं को गुमराह करती है, बल्कि अन्य ब्रांडों को भी बदनाम करती है, क्योंकि विज्ञापन में च्यवनप्राश बनाने के लिए आवश्यक ज्ञान या प्रामाणिकता की कमी है। इसके अलावा, विज्ञापन में यह भी कहा गया है कि अन्य ब्रांडों का सेवन करने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं, जो सार्वजनिक सुरक्षा और भ्रामक दावों के खिलाफ आयुष मंत्रालय द्वारा जारी नियामक सलाह के पालन को लेकर चिंता पैदा करता है। सिब्बल ने अदालत को बताया कि पतंजलि इन विज्ञापनों को कलर्स, स्टार, ज़ी, सोनी और आजतक जैसे विभिन्न टीवी चैनलों पर चला रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसा विज्ञापन दैनिक जागरण के दिल्ली संस्करण में भी प्रकाशित हुआ है। सिब्बल ने कहा कि पिछले 3 दिनों में इन विज्ञापनों को 900 बार चलाया गया है और इनमें लोगों के दिमाग को प्रभावित करने की क्षमता है। पतंजलि आयुर्वेद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत मेहता पेश हुए और उन्होंने मुकदमे की स्थिरता पर सवाल उठाया। उन्होंने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा।


 


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