Palm Oil का आयात बढ़ने से सस्ता होगा खाद्य तेल...जानिए, सरसों पर क्या होगा असर
भारत सरकार ने विदेशों से कच्चा पाम तेल (palm oil) आयात टैक्स घटाकर 10 % कर दिया है। इसका असर आने वाले दिनों में रसोई तेल के दाम में कटौती के तौर पर दिखाई देगा।
खाद्य तेलों (Edible Oil) के आसमान छूते भाव ने हर घर की रसोई का बजट बिगाड़ दिया है। सबसे खराब असर ग्रामीण व मजदूर पेशा वर्ग पर पड़ा है जो अब तक रिफाइंड ऑयल से दूरी बनाए हुए थे और पूरी तरह से सरसों के तेल पर निर्भर थे। बीते महीनों में सरसों के दाम भी 200 रुपये किलो से ऊपर निकल गए लेकिन अब सरकार ने विदेशों से कच्चा पाम तेल (Palm Oil) आयात टैक्स घटा दिया है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड के अनुसार, कच्चा पाम तेल पर 10 प्रतिशत आयात शुल्क दर 29 जून से लागू हो गई है, जो सितंबर तक रहेगी।
कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने और बाद के हालात ने रसोई में इस्तेमाल होने वाले खाद्य तेलों का भाव ऊंचा कर दिया। सरसों का तेल करीब 12 साल बाद इतना महंगा हुआ कि रसोई से गायब सा हो गया। वजह सरसों के कम उत्पादन को माना जा सकता है लेकिन यह पूरा सत्य नहीं है। क्योंकि पिछले साल के मुकाबले भारत में सरसों का उत्पादन 19 प्रतिशत से अधिक हुआ है। ऐसे में सरसों का तेल महंगा होने की एकमात्र वजह रही कि कश्मीर मुद्दे पर मलेशिया सरकार की टिप्पणी से नाराज होकर भारत सरकार ने पाम तेल आयात घटाने का फैसला कर लिया। दरअसल, भारत ने मलेशिया से पाम ऑयल को आयात मुक्त सूची से निकालकर प्रतिबंधित सूची में डाल दिया। जिसके चलते भारत का मलेशिया से आयात लगभग जीरो हो गया था।
क्यों बढ़े खाद्य तेलों के दाम?
भारत में इस्तेमाल होने वाले खाद्य तेलों में पाम ऑयल का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। सभी रिफाइंड ऑयल में भी इसका प्रयोग किया जाता है। जानकारों के अनुसार, कई ऑयल कंपनियां तो ऐसी हैं जो पाम ऑयल को रिफांइड करने के बाद खाद्य तेल के तौर पर इस्तेमाल करती हैं। भारत अपनी खाद्य तेल जरूरत का 70 प्रतिशत आयात करता है, जिसमें सबसे जयादा पाम तेल होता है। इंडोनेशिया व मलेशिया से पाम ऑयल का आयात किया जाता रहा है, लेकिन पाम तेल का बॉयो डीजल प्रयोग बढ़ने से भी इसके दाम चढ़ते रहे हैं। भारत में खाद्य तेल के दाम ऊंचे होने की वजह मलेशिया से आयात पर सख्ती है और दुनिया के देशों में बॉयो डीजल की खपत अधिक है।
कैसे चढ़े सरसों तेल के दाम?
उत्तर भारत में सरसों के तेल का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर खाद्य तेल के तौर पर किया जाता है। इस साल सरसों का तेल 200 रुपये किलो तक मई महीने में बिका है। सरसों भी 7 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक बिकी, जबकि मार्च में इसका भाव 4200 रुपये ही था। सरसों का समर्थन मूल्य सरकार ने 4400 रुपये ही तय किया था। अप्रैल 2020 में सरसों तेल की कीमत 117 रुपये थी, तो नवंबर 2020 में 132 रुपये तक कीमत पहुंची थी। भारत सरकार ने 200 लाख टन सरसों उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था।
भारत में सरसों का रिकार्ड तोड़ उत्पादन
द सेंट्रल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ ऑयल इंडस्ट्री एंड ट्रेड के अनुसार, भारत में इस साल सरसों का रिकार्ड तोड़ उत्पादन हुआ है। रबी के मौसम में इस बार भारत ने 89.5 लाख टन सरसों का उत्पादन किया है, जो पिछले साल के मुकाबले 19.33 प्रतिशत ज्यादा है। इससे पहले साल 2020 में भारत का कुल सरसों उत्पादन 75 लाख टन था। भारत की सरसों तेल जरूरतों को देखते हुए इसे कम माना जा रहा है।
क्यों कम हुए भाव?
सरकार ने घरेलू बाजार में खाद्य तेलों के दाम काबू में करने के लिए 29 जून से कच्चे पाम तेल से आयात शुल्क घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया है। इसके विपरीत अन्य पाम तेलों पर आयात दर साढ़े 37 प्रतिशत पर टिकी रहेगी। सरकार का यह फैसला 30 सितंबर तक लागू रहेगा। दूसरी ओर रिफाइंड पाम तेल पर प्रभावी आयात शुल्क 41.27 प्रतिशत रहेगा। कच्चे तेल पर इसके मुकाबले 10 प्रतिशत की कटौती की गई है। अब तक कच्चे तेल पर आयात शुल्क 35.87 प्रतिशत था, जबकि रिफाइंड तेल पर 49.5 प्रतिशत था. जो अब घटकर 41.25 प्रतिशत हो गया है।
जानकारों का कहना है कि इसका असर खाद्य तेलों के दाम घटते जल्द ही देखने को मिलेगा। पाम तेल का आयात बढ़ने पर जब रिफाइंड तेल के दाम नीचे आएंगे, तो सरसों तेल की खपत घटेगी और इसका असर सरसों के तेल पर भी पड़ेगा।