MDH:टॉप ब्रांड्स में खुद को बचा पाने में MDH कामयाब, खतरे में आ गया था अस्तित्व, जानिए महाशय अंदाज में किसने संभाली कमान
MDH Brand Ambassador: एमडीएच मसाले को आखिरकार ब्रांड एंबेस्डर मिल ही गया। महाशय गुलाटी के ही अंदाज में उनकी छवि उनके बेटे ने प्रस्तुत की।
MDH: ‘मसालों के शहंशाह’ और ‘मसालों की दुनिया के बेताज बादशाह’ जैसे शीर्षकों से बुलाए जाने वाले महाशय धर्मपाल गुलाटी के निधन के बाद महाशियां दी हट्टी (एमडीएच) का असितत्व खतरे में आ गया। लेकिन एक फिर उनके बेटे ने उनके ही नक्शे कदम पर चलकर कंपनी को ऊंचाइयां देने की कोशिश की है। हाल में ही एक विज्ञापन ने महाशय धर्मपाल गुलाटी का वही अवतार बेटे राजीव गुलाटी के रूप में देखने को मिला। महाशय के निधन के बाद कई उतार चढ़ाव आए लेकिन हर मुश्किल का सामना कर एक बार फिर टॉप ब्रांड्स में शुमार है।
देश के बड़े उत्पादकों में से एमडीएच एक बड़ा नाम है। धर्मपाल गुलाटी के निधन के बाद एमडीएच के कारोबार को उनके बेटे राजीव गुलाटी ने आधिकारिक तौर पर संभाल लिया है। कंपनी को मेहनत से ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाले महाशय धर्मपाल गुलाटी और उनके ब्रांड MDH हर कोई जान रहा है। देश ही नहीं बल्कि अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन जैसी विदेशी मार्केट में भी छा गया है।
महाशय की जगह राजीव बने ब्रांड एंबेस्डर
MDH के विज्ञापनों में अब महाशय धर्मपाल की जगह एक नए शख्स ने ले ली है। ये शख्स कोई और नहीं बल्कि इनके बेटे राजीव गुलाटी है। इन्होंने अपने पिता के ही अंदाज में बड़ी मूछें और पगड़ी पहन कर कार्यभार संभालने के साथ ही नया विज्ञापन जारी किया। विज्ञापन ने एक महिला यानि कंपनी की डायरेक्टर ज्योति गुलाटी भी नजर आ रही है। राजीव गुलाटी ने शारजाह में कंपनी की नई मैन्युफैक्चरिंग यूनिट की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। राजीव गुलाटी फिलहाल MDH के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं।
कैसे शुरू हुआ एमडीएच का सफर
एमडीएच को महाशय धर्मपाल गुलाटी ने शून्य से शुरू करके 100 तक पहुंचाया। जानकारी के मुताबिक सियालकोट के बाजार पंसारिया में धर्मपाल के पिता चुन्नीलाल मिर्च मसालों की एक दुकान चलाते थे, इसका नाम महाशियां दी हट्टी था। मसालों की दुनिया में यही महाशियां दी हट्टी दुनिया में MDH के नाम से एक बड़े ब्रांड के रूप में जाना जाता है। 60 का दशक आते-आते महाशियां दी हट्टी करोलबाग में मसालों की एक मशहूर दुकान बन चुकी थी। महाशय धर्मपाल के परिवार ने छोटी सी पूंजी से कारोबार शुरू किया था। उनकी मेहनत से दिल्ली की अलग-अलग इलाकों दुकानें खुलती गई। धीरे-धीरे एक बड़ा साम्राज्य बन गया।