Dollar vs Rupee: डॉलर के मुकाबले गिरता रुपया: नीतिगत सुधारों से कैसे संभल सकती है भारतीय अर्थव्यवस्था

Dollar vs Rupee:;

Written By :  Ankit Awasthi
Update:2025-01-28 17:36 IST

Dollar VS Rupees News (Photo Social Media)

Dollar vs Rupee: डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की गिरावट कोई नई घटना नहीं है। लेकिन यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। इसका प्रभाव न केवल आयात और निर्यात पर पड़ता है, बल्कि महंगाई, विदेशी निवेश और भारत की वैश्विक स्थिति पर भी सीधा असर डालता है। ऐसे में सवाल यह है कि सरकार को कौन-कौन सी नीतिगत सुधार अपनाने चाहिए, ताकि रुपये को स्थिरता मिल सके और अर्थव्यवस्था मजबूत हो सके।

मुख्य कारण जिनसे रुपये में गिरावट हो रही है:

अमेरिका में फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी के कारण डॉलर की मांग बढ़ी है, जिससे अन्य मुद्राओं की तुलना में डॉलर मजबूत हुआ है।

महंगे आयात:

कच्चे तेल और अन्य जरूरी वस्तुओं के महंगे आयात से भारत का व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है।

विदेशी निवेश की कमी:

बढ़ती वैश्विक अस्थिरता और अन्य उभरते बाजारों में अधिक आकर्षक रिटर्न के चलते विदेशी निवेश भारत से घटा है।

भारी व्यापार घाटा:

भारत का आयात उसके निर्यात से कहीं अधिक है, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ रहा है।

नीतिगत सुधार: सरकार को क्या कदम उठाने चाहिए

1. विदेशी निवेश को आकर्षित करना:

सुधारों की दिशा: सरकार को विदेशी निवेशकों के लिए अधिक अनुकूल नीतियां बनानी होंगी, जैसे टैक्स में छूट, ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस में सुधार और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में तेजी।

सेक्टर्स पर ध्यान: विशेष रूप से मैन्युफैक्चरिंग, तकनीक और ग्रीन एनर्जी क्षेत्रों में निवेश को बढ़ावा देना चाहिए।

2. आयात पर निर्भरता कम करना:

मेक इन इंडिया को सशक्त बनाना: देश में विनिर्माण क्षमता को बढ़ाने के लिए छोटे और मध्यम उद्योगों को सब्सिडी और तकनीकी सहायता दी जानी चाहिए।

वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत: कच्चे तेल की निर्भरता कम करने के लिए सोलर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश बढ़ाना होगा।

3. निर्यात को बढ़ावा:

निर्यातकों को इंसेंटिव देकर उनके उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाना।

भारत के स्थानीय उत्पादों को ग्लोबल मार्केट में प्रमोट करने के लिए ‘ब्रांड इंडिया’ अभियान चलाना।

4. मौद्रिक नीतियों में संतुलन:

रिजर्व बैंक को ब्याज दरों और मुद्रा स्फीति के बीच संतुलन बनाना होगा, ताकि विदेशी पूंजी का प्रवाह बना रहे।

5. आर्थिक कूटनीति को मजबूत करना:

व्यापार समझौतों (FTA) पर तेजी से हस्ताक्षर करके भारतीय उत्पादों के लिए नए बाजार खोलने होंगे।

कच्चे तेल के प्रमुख निर्यातकों के साथ दीर्घकालिक अनुबंध करना, जिससे कीमतों में स्थिरता बनी रहे।

लंबी अवधि की रणनीति:

शिक्षा और कौशल विकास में निवेश:

उच्च तकनीकी शिक्षा और स्किल ट्रेनिंग में निवेश से भारत की वर्कफोर्स को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया जा सकता है।

डिजिटल और हरित अर्थव्यवस्था:

डिजिटल तकनीकों और हरित ऊर्जा परियोजनाओं को प्राथमिकता देकर भारत को नई आर्थिक क्रांति के लिए तैयार करना होगा।

स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना:

ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और उत्पादकता बढ़ाने से देश की आर्थिक संरचना अधिक मजबूत बनेगी।

डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट केवल एक वित्तीय समस्या नहीं है, बल्कि यह भारत के आर्थिक ढांचे को मजबूत करने का आह्वान है। सरकार को आयात पर निर्भरता कम करने, निर्यात बढ़ाने और विदेशी निवेश आकर्षित करने के साथ-साथ घरेलू अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।

रुपये की मजबूती तभी संभव होगी, जब भारतीय नीतियां वैश्विक और घरेलू चुनौतियों का समाधान करने में सक्षम होंगी। यह समय है भारत को आर्थिक रूप से अधिक स्थिर और आत्मनिर्भर बनाने का।

Tags:    

Similar News