What is Financial Year: भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से ही क्यों शुरू होता है? इसका महत्व क्या है , आइए जानते हैं विस्तार से

Financial Year Kya Hai: वित्तीय वर्ष (Financial Year) एक निर्धारित समयावधि होती है, जिसमें किसी देश की सरकार, कंपनियां, संस्थाएं और व्यक्तिगत करदाता आर्थिक लेन-देन, आय-व्यय, कर भुगतान और लेखा-जोखा तैयार करते हैं।;

Update:2025-04-01 14:02 IST

Financial Year Kya Ha (Photo - Social Media)

Financial Year Kya Hai: वित्तीय वर्ष (Financial Year) वह अवधि होती है, जिसके दौरान सरकार और निजी कंपनियां आय-व्यय, बजट और टैक्स संबंधी लेखा-जोखा तैयार करती है। भारत में वित्तीय वर्ष की अवधि 1 अप्रैल से 31 मार्च तक रहती है।इसका मुख्य उद्देश्य सरकारी बजट, टैक्स निर्धारण, राजस्व संग्रहण और आर्थिक योजनाओं को व्यवस्थित करना है।वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों में वित्तीय वर्ष की अलग-अलग अवधि होती है। लेकिन भारत में इसे अप्रैल से मार्च तक रखा गया है।

वित्तीय वर्ष (Financial Year) क्या होता है

वित्तीय वर्ष (Financial Year) एक निर्धारित समयावधि होती है, जिसमें किसी देश की सरकार, कंपनियां, संस्थाएं और व्यक्तिगत करदाता आर्थिक लेन-देन, आय-व्यय, कर भुगतान और लेखा-जोखा तैयार करते हैं। यह वर्ष आमतौर पर 12 महीने का होता है, लेकिन इसका कैलेंडर वर्ष (1 जनवरी से 31 दिसंबर) से कोई संबंध नहीं होता।

भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से शुरू होकर 31 मार्च को समाप्त होता है। इस अवधि में सरकार वार्षिक बजट पेश करती है। कर नीति बनाती है और सरकारी योजनाओं का लेखा-जोखा किया जाता है। इसी अवधि में कंपनियां भी अपना लेखा-परीक्षण (Audit) कराती हैं और कर भुगतान करती हैं।

वित्तीय वर्ष का उद्देश्य

आर्थिक नियोजन: सरकार और कंपनियों को अपनी वार्षिक आय, व्यय और लाभ का सही आकलन करने के लिए वित्तीय वर्ष का निर्धारण किया जाता है।

कर निर्धारण: सरकार कर संग्रह, बजट योजना और सब्सिडी का प्रबंधन वित्तीय वर्ष के अनुसार करती है।

लेखा-जोखा तैयार करने में सुविधा: कंपनियां और व्यापारी वर्षभर के लेन-देन का लेखा वित्तीय वर्ष के अनुसार तैयार करते हैं, जिससे आयकर रिटर्न और लाभ-हानि का आकलन आसान हो जाता है।

सरकारी नीतियों का निर्धारण: सरकार वित्तीय वर्ष के आधार पर विभिन्न विकास योजनाओं का मूल्यांकन करती है और अगले वर्ष के लिए योजनाएं बनाती है।

वित्तीय वर्ष का महत्व

कर निर्धारण: भारत में आयकर रिटर्न, जीएसटी फाइलिंग और अन्य कर दायित्व वित्तीय वर्ष के अनुसार तय होते हैं।

बजट पेश होना: भारत में केंद्रीय बजट और राज्यों के बजट वित्तीय वर्ष के अनुसार पेश किए जाते हैं।

कॉर्पोरेट रिपोर्टिंग: कंपनियां अपनी वार्षिक रिपोर्ट, लाभ-हानि का विवरण और ऑडिट वित्तीय वर्ष के आधार पर तैयार करती हैं।

वित्तीय योजनाएं: बैंक, बीमा कंपनियां और निवेश फर्म अपनी वित्तीय योजनाएं और रिटर्न वित्तीय वर्ष के आधार पर तैयार करती हैं।

स्टॉक मार्केट रिपोर्टिंग: शेयर बाजार में भी कंपनियों का वार्षिक प्रदर्शन वित्तीय वर्ष के अनुसार मापा जाता है।

भारत में वित्तीय वर्ष का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

ब्रिटिश काल में वित्तीय वर्ष की शुरुआत- भारत में वित्तीय वर्ष की शुरुआत का श्रेय ब्रिटिश शासन को जाता है।ब्रिटिश सरकार ने 1867 में भारत में वित्तीय वर्ष को 1 अप्रैल से 31 मार्च तक करने का निर्णय लिया था।इसका मुख्य कारण यह था कि ब्रिटेन में भी उसी समय वित्तीय वर्ष चलता था और भारत में भी ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के अनुरूप वित्तीय प्रणाली लागू की गई।इसके पीछे प्रमुख वजह थी कि ब्रिटिश सरकार को भारत में टैक्स संग्रहण और राजस्व प्राप्ति में समरूपता बनाए रखनी थी।

मुगल और मराठा शासन में वित्तीय प्रणाली

ब्रिटिश शासन से पहले भारत में वित्तीय वर्ष का कोई स्थायी स्वरूप नहीं था।मुगल और मराठा शासकों के समय वित्तीय गणना फसल चक्र पर आधारित होती थी।फसल कटाई और राजस्व वसूली के अनुसार ही कर प्रणाली लागू होती थी, जो विभिन्न प्रांतों में भिन्न थी। उस समय आमतौर पर चैत्र या वैशाख माह को वित्तीय वर्ष का आरंभ माना जाता था।

स्वतंत्र भारत में वित्तीय वर्ष का निर्धारण

15 अगस्त,1947 को भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद भी ब्रिटिश प्रणाली की वित्तीय वर्ष की परंपरा को बनाए रखा गया।इसके पीछे दो मुख्य कारण थे:ब्रिटिश शासन के दौरान लागू आर्थिक संरचना को बनाए रखना।भारत की कराधान प्रणाली, बजट और वित्तीय नीति पहले से ही अप्रैल-मार्च के अनुसार संचालित हो रही थी। इस व्यवस्था को बदलने में अतिरिक्त प्रशासनिक और वित्तीय लागत आती, इसलिए इसे ज्यों का त्यों रखा गया।

वित्तीय वर्ष को 1 अप्रैल से शुरू करने के प्रमुख कारण

ब्रिटिश शासन की विरासत- भारत में वित्तीय वर्ष की अवधि ब्रिटिश सरकार के निर्णय के अनुसार 1867 में तय हुई थी।चूंकि भारत पर ब्रिटेन का औपनिवेशिक शासन था, इसलिए वित्तीय वर्ष को उसी के अनुरूप लागू किया गया।स्वतंत्रता के बाद भी इसी व्यवस्था को बनाए रखा गया।

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां लगभग दो-तिहाई आबादी मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर करती है। जानकारों के अनुसार, फरवरी और मार्च में रबी फसलों की कटाई की जाती है। कटाई के बाद किसान अपनी उपज को बेचते हैं, जिससे होने वाले मुनाफे का लेखा-जोखा तैयार किया जाता है। इसी लेखा-जोखा के आधार पर यह आकलन किया जाता है कि सरकार का राजस्व उस वर्ष में बढ़ेगा या घटेगा।

अप्रैल से नई फसलों की बुआई का कार्य आरंभ होता है। इसलिए, कटाई के साथ ही वित्तीय वर्ष को समाप्त करना आर्थिक रूप से उपयुक्त माना गया। इससे सरकार को नए वित्तीय वर्ष में बेहतर योजना बनाने और राजस्व की स्थिति का सटीक अनुमान लगाने में सुविधा होती है।

भारत में अक्टूबर से दिसंबर के बीच त्योहारी सीजन रहता है, जिसमें नवरात्रि, दिवाली और क्रिसमस जैसे बड़े त्योहार आते हैं। इस दौरान जमकर खरीदारी होती है और खुदरा व्यापारियों के लिए यह सबसे अधिक मुनाफा कमाने का समय होता है। यदि वित्तीय वर्ष 31 दिसंबर को समाप्त किया जाए, तो उन्हें इस मुनाफे का लेखा-जोखा तैयार करने के लिए बहुत कम समय मिलेगा, जिससे वित्तीय प्रबंधन में असुविधा हो सकती है।

इसी कारण भारत में वित्तीय वर्ष को 1 अप्रैल से 31 मार्च तक निर्धारित किया गया है, ताकि व्यापारियों को दो महीने का अतिरिक्त समय मिल सके और सरकार को आर्थिक आंकड़ों का सही आकलन करने का पर्याप्त अवसर प्राप्त हो।

बजट पेश करने की परंपरा- भारत में केंद्रीय बजट 1 फरवरी को पेश किया जाता है और उसे लागू होने में लगभग 2 महीने का समय लगता है।इससे वित्तीय वर्ष को अप्रैल में शुरू करना व्यावहारिक हो जाता है, ताकि बजट के अनुसार योजनाएं लागू की जा सकें।

अंतरराष्ट्रीय मानक और संगतता

कई देशों में वित्तीय वर्ष अप्रैल-मार्च के अनुसार नहीं चलता, जैसे:अमेरिका में: 1 अक्टूबर – 30 सितंबर, ऑस्ट्रेलिया में: 1 जुलाई – 30 जून, ब्रिटेन में: 6 अप्रैल – 5 अप्रैल.हालांकि, भारत ने ब्रिटेन की प्रणाली को अपनाया, ताकि उसकी अंतरराष्ट्रीय व्यापार और राजस्व नीतियों में संगतता बनी रहे।

वित्तीय वर्ष को जनवरी से शुरू करने का प्रस्ताव

2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्तीय वर्ष को जनवरी-दिसंबर करने का सुझाव दिया था।

इसके पीछे उद्देश्य था कि कृषि वर्ष, बजट और वित्तीय वर्ष में समरूपता लाई जाए।

नीति आयोग ने इस पर विचार भी किया। लेकिन यह बदलाव लागत और प्रशासनिक जटिलताओं के कारण लागू नहीं किया गया।

वर्तमान में वित्तीय वर्ष अप्रैल से मार्च ही चलता है।

वित्तीय वर्ष और आकलन वर्ष में अंतर

वित्तीय वर्ष (Financial Year): वह अवधि होती है, जब कोई व्यक्ति या कंपनी आय अर्जित करती है।

आकलन वर्ष (Assessment Year): वह वर्ष होता है, जिसमें उस आय पर कर का निर्धारण और भुगतान किया जाता है।

उदाहरण के लिए:

वित्तीय वर्ष: 1 अप्रैल, 2023 से 31 मार्च, 2024

आकलन वर्ष: 2024-25 (जिसमें आयकर रिटर्न दाखिल किया जाएगा)

वित्तीय वर्ष की प्रमुख विशेषताएँ

वित्तीय वर्ष के अनुसार सरकार आय-व्यय का लेखा-जोखा रखती है।

सभी कंपनियां, फर्म और व्यक्ति इसी अवधि में अपने टैक्स रिटर्न फाइल करते हैं।

सरकारी योजनाओं, सब्सिडी और परियोजनाओं का कार्यकाल और बजट निर्धारण इसी अवधि में होता है।बैंकिंग और बीमा कंपनियां भी वित्तीय वर्ष के आधार पर अपनी बैलेंस शीट तैयार करती हैं।

वित्तीय वर्ष से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

भारत में वित्तीय वर्ष 1867 में ब्रिटिश शासन के दौरान अपनाया गया था।

वित्तीय वर्ष के अनुसार ही इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) दाखिल किया जाता है।

कंपनियों की वित्तीय रिपोर्ट और ऑडिट रिपोर्ट भी वित्तीय वर्ष के आधार पर तैयार की जाती है।

बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान ब्याज दरें, ऋण योजना और लाभांश की घोषणा वित्तीय वर्ष के आधार पर करते हैं।

वित्तीय वर्ष किसी देश की आर्थिक व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए आवश्यक होता है। भारत में यह 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है, ताकि कृषि, व्यापार, राजस्व और कर प्रणाली का सही आकलन किया जा सके। वित्तीय वर्ष का निर्धारण न केवल सरकार बल्कि व्यवसाय, निवेशक और आम जनता के लिए भी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसी के अनुसार कर निर्धारण, बजट, लेखा-जोखा और वित्तीय योजनाएं बनाई जाती हैं।

Tags:    

Similar News