सबको वैक्सीन का खर्च 30 हजार करोड़, लॉकडाउन में डूबे 14 लाख करोड़, लाखों बेरोजगार

टीकाकरण पर केंद्र सरकार का कुल खर्च 30 हजार करोड़ रहने की उम्मीद है, जो बजट प्रावधान से कम है।;

Written By :  Akhilesh Tiwari
Published By :  Shreya
Update:2021-05-14 19:11 IST

वैक्सीनेशन (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

नई दिल्ली: देश के सभी व्यस्कों के नि:शुल्क टीकाकरण (Free Vaccination) पर महज तीस हजार करोड़ रुपये खर्च होना है। कोरोना (Corona Virus) की दूसरी लहर से पहले के महीनों में केंद्र सरकार (Central Government) का जीएसटी (GST) कलेक्शन एक लाख करोड़ रुपये प्रति माह से भी अधिक रहा है। बीते साल के लॉकडाउन से अब तक अर्थव्यवस्था को 14 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का झटका लग चुका है।

ऐसे में तेज टीकाकरण (Vaccination) से केवल लोगों की जान ही नहीं बचने वाली है बल्कि इससे देश में खुशहाली भी वापस लाई जा सकती है। संपूर्ण टीकाकरण के दम पर ही इजराइल (Israel) और अमेरिका (America) में हालात तेजी से सामान्य हुए हैं और आर्थिक गतिविधियां (Economic Activities) भी बढ़ी हैं।

कोरोना (Corona Virus) महामारी की चपेट में देश का ज्यादातर हिस्सा कराह रहा है। देश में संपूर्ण लॉकडाउन (Lockdown) की मांग तेज हो रही है। दूसरी ओर वैक्सीनेशन भी धीमा हो गया है। टीकाकरण केंद्रों पर लाइन लगाकर लोग वापस लौटने के लिए मजबूर हो रहे हैं। राज्य सरकारों की ओर से मांग की जा रही है कि उन्हें विदेश से सीधे वैक्सीन आयात की छूट दी जाए। ऐसे में विशेषज्ञ भी मान रहे हैं कि केंद्र सरकार को संपूर्ण टीकाकरण अभियान की कमान अपने हाथ में संभालनी चाहिए। टीकाकरण में तेजी लाकर ही देश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था को सहारा दिया जा सकता है।

वैक्सीन लगवाती युवती (फोटो- न्यूजट्रैक)

टीकाकरण से सामान्य हो सकेंगी सभी गतिविधियां

डॉ शकुंतला मिश्रा नेशनल रिहैबिलेटेशन यूनिवर्सिटी के पूर्व डीन और अर्थशास्त्री प्रोफेसर एपी तिवारी भी इसका समर्थन करते हैं। उनका मानना है कि लॉकडाउन से देश की आर्थिक गतिविधियों को बड़ा झटका लगा है। केंद्र सरकार को प्रवासी श्रमिकों से लेकर कमजोर वर्ग के जीवन यापन व भोजन के लिए बड़ा व्यय करना पड़ा है। उत्पादन घटने से बेरोजगारी भी बढ़ी। राजस्व भी कम आया इसलिए महामारी से बचने के लिए जरूरी है कि देश के अधिकांश लोगों को जल्द से जल्द कोरोना टीका दिलाया जाए। इससे इजराइल व अमेरिका की तरह हमारे देश में भी सभी गतिविधियां सामान्य हो सकेंगी।

14 लाख करोड़ का लॉकडाउन में घाटा

कोरोना महामारी से देश के लोगों को बचाने के लिए शारीरिक दूरी नियम का कड़ा अनुपालन आवश्यक है। बाजार से लेकर कार्य स्थलों पर लोगों की भीड़ से कोरोना को अनुकूल माहौल मिलता है। इससे संक्रमण तेजी से फैलता है। पिछले साल संपूर्ण लॉकडाउन से कोरोना को फैलने से रोकने में कामयाबी मिली थी। इस साल भी आंशिक लॉकडाउन के बाद स्थितियां तेजी से बदली हैं। इसके बावजूद लॉकडाउन कभी देश के व्यापक हित में नहीं रहा।

आर्थिक गतिविधियों के ठप होने से हर नागरिक पर असर पड़ता है। बीते साल बेरोजगार होने वालों की संख्या करोड़ों में रही है। द सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनामी का दावा है कि दूसरी लहर आने के बाद अलग—अलग राज्यों में लगे आंशिक लॉकडाउन के दौरान 70 लाख लोग बेरोजगार हो चुके हैं। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मुख्य आर्थिक सलाहकार एसके घोष ने मीडिया को बताया है कि दूसरी लहर में दो लाख करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हो चुका है।

30 लाख करोड़ का सरकारी पैकेज

केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने पिछले साल लॉकडाउन के बाद 30 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का एलान किया था। यह भारत की जीडीपी का लगभग 15 प्रतिशत होता है। देश की जीडीपी में इंडस्ट्री का योगदान 25, मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का 14 और सेवा क्षेत्र का योगदान 49 प्रतिशत है। लॉकडाउन के दौरान केवल कृषि क्षेत्र ही खुला रहा। इन इंडस्ट्री, मैन्यूफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर के ठप होने से करोड़ों लोग बेरोजगार हुए और जीडीपी भी माइनस 24 तक चली गई । सरकार को प्रवासी श्रमिकों व कमजोर वर्ग के लोगों को राशन मुहैया कराने पर बड़ी रकम खर्च करनी पड़ी। केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का खर्च भी 1.70 लाख करोड़ रहा है।

टीका (फोटो- न्यूजट्रैक)

टीकाकरण के लिए 35 हजार करोड़ का प्रावधान

केंद्र सरकार ने 2021-22 के बजट में कोरोना टीकाकरण के लिए 35 हजार करोड़ का बजट प्रावधान किया है। संसद में वित्त मंत्री ने बताया है कि अगर आवश्यकता हुई तो और भी धन आवंटित किया जाएगा। दूसरी ओर टीकाकरण पर केंद्र सरकार का कुल खर्च 30 हजार करोड़ रहने की उम्मीद है। विशेषज्ञों का कहना है कि देश में लगभग 40 करोड़ की आबादी 18 साल से कम उम्र की है। ऐसे में अगर सौ करोड़ लोगों के लिए केंद्र सरकार वैक्सीन की सीधी खरीद करती है तो कुल 30 हजार करोड़ ही खर्च होंगे जो बजट प्रावधान से कम है।

ऐसे में केंद्र और राज्य के बीच टीकाकरण को उलझाने के बजाय सभी को टीकाकरण का फैसला करना होगा। लखनऊ विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र प्रोफेसर मनोज अग्रवाल कहते हैं कि टीकाकरण की राह में अफवाहों ने अड़ंगा लगाया है। मार्च से पहले टीकाकरण अभियान को जानबूझकर फेल किया गया। इसका खाामियाजा दूसरी लहर के तौर पर देखने को मिला है। अगर अगले पांच-छह महीने में विदेश से आने वाली वैक्सीनों की मदद से बड़ी आबादी को टीका लगा दिया जाता है तो देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी। ऐसा नहीं होने पर हमें अर्थव्यवस्था में एक और झटके के लिए तैयार रहना होगा।

Tags:    

Similar News