Coronavirus Second Wave: क्या आपको पता है, अशुद्ध ऑक्सीजन से भी मरे कोरोना के मरीज

Impure Oxygen responsible for Corona Death: भारत में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की भारी मांग रही और जहां तहां से ऑक्सीजन की मांग पूरी की गई।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Monika
Update:2021-09-29 21:01 IST

अशुद्ध ऑक्सीजन से मरे कोरोना के मरीज (फोटो : सोशल मीडिया )

Coronavirus Second Wave: कोरोना की दूसरी लहर (coronavirus second wave) में बहुत से लोग अशुद्ध और गंदी ऑक्सीजन के कारण मारे गए। पहले भी यह संदेह जताया गया था। लेकिन अब एक अध्ययन ने इसकी पुष्टि कर दी है। यह जानकारी हाल ही में 'इन्वायरमेंटल साइंस ऐंड पॉल्यूशन रिसर्च' जर्नल में दी गई हैं। यह स्टडी आईसीएमआर अडवांस्ड सेंटर फॉर एविडेंस बेस्ड चाइल्ड हेल्थ और पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ ने की है।

रीफिललिंग के दौरान ऑक्सीजन में आने वाली इस अशुद्धि को दूर करने के लिए आईसीएमआर और पीजीआई के डॉक्टरों ने ऑक्सीजन ऑडिट और गुणवत्ता से जुड़े अन्य नियम बनाने का सुझाव दिया है। भारत में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की भारी मांग रही और जहां तहां से ऑक्सीजन की मांग पूरी की गई। मेडिकल ऑक्सीजन की बेतहाशा मांग के चलते अशुद्ध ऑक्सीजन की सप्लाई भी हुई। ये अशुद्धियां रीफिलिंग के दौरान देखी गईं।

डीडब्लू के अनुसार, स्टडी से जुड़े पीजीआई के डॉ विवेक ने बताया कि ऑक्सीजन में अशुद्धि उत्पादन या डिलीवरी के दौरान आ सकती है। इसके अलावा जहां इसका उत्पादन हो रहा है, वहां के वातावरण में मौजूद अशुद्धि भी ऑक्सीजन की क्वालिटी पर असर डाल सकती है।अगर ऑक्सीजन प्लांट किसी इंडस्ट्रियल इलाके के पास है, तो उसे हर तीन घंटे बाद साफ करने के बजाए और जल्दी साफ किया जाना चाहिए।

सिलेंडर भरे जाने के दौरान आ जाती हैं अशुद्धियां

सिलेंडर भरे जाने के दौरान भी कई सारी अशुद्धियां आ सकती हैं। मसलन सिलेंडर में पहले से ही हीलियम, हाइड्रोजन, एसिटिलीन, आर्गन गैसें मौजूद हो सकती हैं। पहले से मौजूद गैसें ऑक्सीजन से रिएक्शन करके नाइट्रिक ऑक्साइड और कार्बन डाईऑक्साइड बना सकती हैं। इसके अलावा सिलेंडर से ऑक्सीजन की आपूर्ति में दबाव और नमी का अहम रोल होता है। इस तरह कई तरह से सिलेंडर में भरी ऑक्सीजन दूषित हो सकती है, जो मरीज के लिए जानलेवा बन सकती है।

स्टडी से जुड़े डॉक्टरों का सुझाव है कि अंतिम रूप से तैयार ऑक्सीजन की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए नियमों और प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए। यह ऑक्सीजन अधिकतम शुद्ध यानी कम से कम 99.999 फीसदी शुद्ध होनी चाहिए। इसके अलावा ऑक्सीजन भरे जाने की जगह गैस टेस्टिंग, लैब और कैलिबरेशन सुविधा होनी चाहिए।

उपकरणों में फंगस उगने की जांच होनी चाहिए

डॉक्टरों का कहना है कि ऑक्सीजन सप्लाई के उपकरणों में फंगस उगने की जांच होनी चाहिए। रिकवर हो चुके मरीजों में म्यूकरमाइकोसिस (ब्लैक फंगस) की जांच पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। ये कदम ऑक्सीजन में अशुद्धि के खतरे को कम करेंगे।

कोरोना आने के बाद से ही दुनियाभर की ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर पोर्टेबल ऑक्सीजन कैन बिक रहे हैं। भारत में भी ऐसे कई उत्पाद 500 से 3000 रुपये में मौजूद हैं। कई कैन के साथ ऑक्सीजन मास्क भी दिया जा रहा है। इन कैन में 95 से 99 फीसदी शुद्ध ऑक्सीजन होने का दावा किया गया है। डॉक्टरों का कहना है कि यह बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है। आमतौर पर शुद्ध ऑक्सीजन का इस्तेमाल बिना जरूरत के नहीं किया जाना चाहिए और इसके घातक परिणाम हो सकते हैं।

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