Jallianwala Bagh के बाद क्यों होता है बिहार मुंगेर हत्याकांड का जिक्र, जानिए पूरी इन साइड स्टोरी

Aaj Ka Itihas: 13 अप्रैल 1919 में पंजाब के अमृतसर स्थित जलियांवाला बाग में जिस तरह का हत्याकांड हुआ था ठीक इसी तरह 15 फरवरी 1932 को बिहार के मुंगेर जिले में भी हत्या कांड हुआ था।

Report :  Bishwajeet Kumar
Update:2022-04-13 10:54 IST

जलियांवाला बाग और मुंगेर हत्याकांड (तस्वीर साभार : सोशल मीडिया)

Jallianwala Bagh Massacre : आज से ठीक 103 साल पहले अंग्रेजी हुकूमत ने 13 अप्रैल को भारत को एक ऐसा जख्म दिया था जिसे आज तक भी वक्त भर नहीं पाया है। 13 अप्रैल का इतिहास (13 April History) भारत की आजादी से जुड़ा भी एक बहुत बड़ा हिस्सा है। जब अंग्रेजों के रोलेट एक्ट (Rowlatt Act) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने पर दो भारतीय नेताओं को अंग्रेजी हुकूमत द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था। जिसके बाद इस गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए जलियांवाला बाग (Jallianwala Bagh) में जब हजारों की संख्या में भारतीय इकट्ठे हुए तो अंग्रेजी हुकूमत द्वारा उन पर जमकर गोलीबारी की गई। इस गोलीबारी में तकरीबन हजार से अधिक की संख्या में भारतीय मारे गए। जलियांवाला बाग नरसंहार (Jallianwala Bagh Massacre) के बाद कुछ साल बाद ही बिहार के मुंगेर में भी एक ऐसा ही नरसंहार (Munger Massacre) हुआ था। जहां ब्रिटिश पुलिस द्वारा क्रांतिकारियों पर जमकर गोली बरसाए गए जिसमें 100 के करीब भारतीय नागरिकों की मौत हुई थी।

क्या है मुंगेर का नरसंहार?

जलियांवाला बाग नरसंहार की तरह ही बिहार के मुंगेर जिले में भी एक नरसंहार हुआ था जहां 15 फरवरी 1932 को मुंगेर के तारापुर में अंग्रेजी हुकूमत के पुलिस ने भारतीय क्रांतिकारियों पर जमकर गोलीबारी किया। इस गोलीबारी में वहां मौजूद करीबन 100 क्रांतिकारी मारे गए। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक तारापुर हत्याकांड (Tarapur massacre) में महज 36 लोगों की मौत बताई जाती है मगर स्थानीय लोगों के मुताबिक वहां इससे अधिक मौतें हुई थी।

15 फरवरी 1932 को भारतीय क्रांतिकारियों ने अंग्रेजो के खिलाफ तिरंगा फहराने का फैसला किया था। जिसके लिए भारतीय क्रांतिकारियों द्वारा तिरंगा फहराने का संकल्प लेकर घरों से निकला गया। उस वक्त क्रांतिकारियों की योजना यह थी कि मुंगेर जिले के तारापुर में स्थित अंग्रेजी हुकूमत द्वारा बनाए गए थाने पर तिरंगा फहराया जाएगा। जब इसकी सूचना अंग्रेजी हुकूमत को लगी तो उन्होंने थाना पर चढ़ने से पहले ही क्रांतिकारियों पर गोलीबारी करने का आदेश दे दिया। तत्कालीन कलेक्टर ई. ओ. ली और एसपी डब्ल्यू. एस. मैग्रेथ द्वारा गोलीबारी के आदेश दिए जाने के बाद तारापुर थाने के आसपास लाशों का अंबार लग गया।

मुंगेर नरसंहार में मौतें

बिहार के मुंगेर जिले में स्थित तारापुर में जब 15 फरवरी 1932 को ब्रिटिश पुलिस द्वारा भारतीय क्रांतिकारियों पर गोलीबारी की गई उस वक्त घटनास्थल पर सैकड़ों की संख्या में क्रांतिकारी मौजूद थे। जब भीड़-भाड़ वाले माहौल में ब्रिटिश पुलिस द्वारा गोलीबारी शुरू की गई तब करीबन 100 क्रांतिकारी मौके पर मारे गए, वहीं बहुत से क्रांतिकारी घायल भी हुए। हालांकि इस गोलीबारी के माहौल में भी क्रांतिकारी कार्तिक मंडल, परमानंद झा, महावीर सिंह, त्रिपुरा सिंह और मदन गोपाल सिंह ने मिलकर तारापुर गांव के थाने पर तिरंगा फहरा दिया।

इस नरसंहार में आधिकारिक तौर पर 34 लोगों की मौत हुई। जिनमें से 21 शहीदों की ही बस पहचान की जा सकी 13 अन्य के बारे में आज तक कोई जानकारी नहीं मिल पाई। वहीं स्थानीय लोग बताते हैं कि बहुत से लोगों की लाशों को तो गंगा में बहा दिया गया। बता दें हाल ही में तारापुर में शहीदों के सम्मान के लिए एक शहीद पार्क था स्मारक का बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा लोकार्पण भी किया गया है। वही हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तारापुर नरसंहार के बारे में मन की बात कार्यक्रम में जिक्र किया था।

जलियांवाला हत्याकांड में क्या हुआ था?

रोलेट एक्ट के खिलाफ विरोध करने पर दो भारतीय नेताओं को गिरफ्तार किया गया था। इस गिरफ्तारी के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को हजारों की संख्या में क्रांतिकारी अमृतसर के जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए एकत्रित हो रहे थे। इसी दौरान ब्रिटिश हुकूमत के जनरल डायर ने अपने टुकड़ियों के साथ जलियांवाला बाग में क्रांतिकारियों पर अचानक से गोलीबारी शुरू कर दी। जनरल डायर (General Dyer) के टुकड़ियों द्वारा यह गोलीबारी तब तक की गई जब तक उनके गोलियां खत्म नहीं हुई। इस गोलीबारी में तकरीबन 1000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। जिसे भारत के स्वतंत्रता के इतिहास में सबसे बड़ा नरसंहार माना जाता है।

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