Article-370 Statement: दोस्त या दुश्मन, कांग्रेस के कौन हैं दिग्विजय

आर्टिकल-370 पर दिग्विजय सिंह के दिए बयान पर यह आरोप लगना लाजिमी है कि "कांग्रेसी नेता पाकिस्तान की भाषा बोलते हैं और भारत के खिलाफ जहर फैला रहे हैं"

Written By :  Yogesh Mishra
Published By :  Pallavi Srivastava
Update:2021-06-15 17:03 IST

'अनुच्छेद 370' पर दिग्विजय सिंह की टिप्पणी से छिड़ा विवाद

Political News: कुल्हाड़ी के पैर पर गिरने की कथा व मुहावरा आपने जरूर सुना होगा। पर यह नहीं सुना होगा कि कोई कुल्हाड़ी पर अपना पैर ही दे मारे। वह भी कुछ इस तरह की न केवल उसके पैर कट जायें बल्कि उससेे तमाम लोगों को भी जख़्म सा दर्द झेलना पड़े। भारतीय राजनीति में गाहे-ब-गाहे इस तरह की गलती या काम तो बहुधा हो जाया करता है। पर इस तरह के काम के आदी होने वालों की फेहरिस्त तैयार की जाये तो ऐसे में एक ही नाम उभर कर सामने आता है। वह कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह का ही नाम हो सकता है।

जम्मू कश्मीर को लेकर सब कुछ बिल्कुल सामान्य सा चल रहा था। केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा तीन सौ सत्तर के प्रावधान कमजोर करने के बाद हुई प्रतिक्रियाएं भी नेपथ्य में चली गयी थीं। भाजपा द्वारा 370 को लेकर फेंके गये पत्थर से उठी लहरें भी शांत हो गयी थीं। पर दिग्विजय सिंह ने यह कह कर भूचाल ला दिया कि ,"अनुच्छेद 370 को हटाने और जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को छीनने का फैसला बहुत बड़ा था। मैं कहना चाहूंगा कि दुखदायी फैसला था। कांग्रेस इस मुद्दे को दोबारा देखेगी।"

इसके बाद कांग्रेस पर यह आरोप लगना लाजिमी था कि "कांग्रेसी नेता पाकिस्तान की भाषा बोलते हैं। भारत के खिलाफ जहर फैला रहे हैं।" एक ऐसे समय जब नरेंद्र मोदी, भाजपा व संघ ने मिलकर भारतीय राजनीति का पैटर्न बदल कर रख दिया हो। सियासत जो तुष्टिकरण व जातियों की खोह में घुस गयी थी, उसे बहुसंख्यक प्लेटफॉर्म पर लाकर खड़ा कर दिया हो तब ऐसे बयान न केवल बेमानी कहे जाने चाहिए बल्कि आत्मघाती भी कहे जाने चाहिए ।

अवगत करा दू कि वर्ष 2014, 2019 के लोकसभा व 2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों ने यह साबित करके दिखाया भी है। पश्चिम बंगाल, बिहार में भाजपा के प्रदर्शन ने इसे पुख्ता भी किया है। इन दोनों राज्यों में मुसलमानों की खासी संख्या है भी। कोई ऐसा भी नहीं कह सकता है कि ये फैसले भाजपा ने किसी को विश्वास में लिये बिना अधिनायक ढंग से ले लिया। यह बात भी गले उतरने लायक नहीं होगी। क्योंकि भाजपा ही नहीं उसकी मूल पार्टी जनसंघ के मूल में 370 की समाप्ति, राम मंदिर व समान नागरिक संहिता रहे हैं और आज भी हैं। कोई पार्टी

जिस मूल उद्देश्य को लेकर बनी हो वह कई बार सरकार में रहने के बाद उस पर अमल न करे, यह लोकतंत्र की भाषा में विश्वासघात कहा जाता है।फिर दिग्विजय सिंह के मुँह खोलने का मतलब क्या है? मतलब क्या लगाया जाना चाहिए? भाजपा का यह पुराना वादा और एजेंडा रहा है कि 370 को हटा दिया जाए। सो अब पार्टी को अपना वादा पूरा करने का श्रेय है। राजनीतिक दलों पर वादे न निभाने का दाग रहता है, ऐसे में भाजपा ने अपने नम्बर बढ़ा लिए हैं।

370 खत्म करने से मुसलमानों में मोदी के प्रति बढ़ी है नफरत

भाजपा वादा पूरा करने को अगले चुनावों में भुनायेगी। इसका चुनावी लाभ मिलेगा। कश्मीर का मसला हिन्दू-मुस्लिम एंगल से भी देखा जाता है। 370 खत्म करके हिंदुओं की जीत की तरह अप्रत्यक्ष रूप से दिखाया जाएगा। यह भाजपा के पक्ष में हिन्दू वोट के ध्रुवीकरण को मजबूत करता है। 370 खत्म करके भाजपा ने कांग्रेस को चोट पहुंचाई है। हिंदू वोटरों की नजर में कांग्रेस के प्रति अविश्वास और नापसंदगी को और गहराया गया है। विशेष दर्जा खत्म करके अब कश्मीर पर भाजपा का अपना कंट्रोल बढ़ा है। यह उसके लिए राजनीतिक नजरिये से आगे काम आएगा। कश्मीर की पार्टियों और अब्दुल्ला व महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं की सौदेबाजी को खत्म करने का संदेश बाकी देश के हिन्दू वोटरों को दिया गया जो चुनावी लाभ दिलाएगा।

370 खत्म करने से मुसलमानों में भाजपा, संघ, मोदी के प्रति अविश्वास, नफरत और नापसंदगी बहुत बढ़ी है। कश्मीर के हालात ज्यों के त्यों हैं, सो जो जनता वहां बसने, जमीन खरीदने, स्वतंत्र रूप से आने जाने, अमन चैन की उम्मीद कर रही थी, उसे निराशा मिलनी है। कोरोना के चलते अभी देश के ज्यादातर हिस्से बन्द है सो अभी हालात छिपे हुए हैं। भाजपा ने अपने खिलाफ कश्मीर के नेताओं, पार्टियों और कांग्रेस आदि को एकजुट कर दिया है। पाकिस्तान और चीन को अब कश्मीर के अलगाववादी तत्वों को उकसाने, भड़काने और मदद देने का एक और बहाना मिल गया है। अब वहां भी राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। दूसरे प्रांतों के लोग भी वहां जमीन खरीद सकते हैं, नौकरी कर सकते हैं, व्यापार कर सकते हैं। भारत का कोई भी नागरिक वहां चुनाव लड़ सकेगा और वोट दे सकेगा। सर्वोच्च न्यायालय का आदेश अब वहां भी मान्य होगा, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार जैसे नियम भी अब वहां लागू होंगे।

जम्मू कश्मीर में हुए बड़े बदलाव

पहले जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री का कार्यकाल 6 साल का हुआ करता था पर अब पूरे देश की भांति 5 साल का ही होगा। पहले ऐसा था कि अगर कोई पाकिस्तानी व्यक्ति कश्मीरी लड़की से विवाह करता था तो उस पाकिस्तानी को एक कश्मीरी नागरिक के सभी अधिकार प्राप्त हो जाते थे जबकि यदि कोई कश्मीरी लड़की देश के किसी दूसरे राज्य के किसी लड़के से विवाह करती थी तो उस लड़की से कश्मीरी नागरिक का दर्जा छीन लिया जाता। पर अभी ऐसा कुछ नहीं रहा।

स्थानीय लोगों को मिलेंगे रोजगार के अवसर

जम्मू-कश्मीर से बाहर शादी करने वाली लड़कियों को सम्पत्ति का मालिकाना हक मिलेगा। केंद्र सरकार अब केंद्र सूची तथा समवर्ती सूची के सब विषयों पर कानून बना सकती हैं। पहले केंद्र 3 विषयों पर ही कानून बना सकता था। जम्मू कश्मीर के जीएसटी से भी भारतीय अर्थव्यवस्था को मुनाफा होगा। पर्यटन व्यवसाय से साथ-साथ विदेशी आय अर्जित करने का अवसर मिलेगा। राज्य में व्यापार और इंडस्ट्री के लिहाज से निवेश बढ़ सकता है। जिसका असर राज्य की जीडीपी पर सकारात्मक रूप से बढ़ेगा। इंडस्ट्री और व्यपाार आने से जम्मू और कश्मीर के स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे।

किताबी नुकसान का जिक्र करें तो 370 हटने से बाहर से निवेश आएगा। दूसरे राज्यों के लोगों का बिजनेस आने से प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ जाएगी। जिसका नुकसान मूल कश्मीरियों को हो सकता है। धारा 370 हटने से कश्मीर में प्रॉपर्टी का काम बढ़ेगा जिसके कारण अंधाधुंध कंस्ट्रक्शन होगा। फिर पर्यावरण व इकोलॉजी को भारी नुकसान होगा। बाहरी राज्यों के आने और बसने आए कश्मीरी लोगों में अलगाव की भावना और भी बढ़ेगी, वैमनस्य बढ़ेगा। नार्थ ईस्ट के राज्य इसका उदाहरण हैं।

पर जब किसी दल के पार्टी को प्रचंड बहुमत हासिल हो। उसके एजेंडे जगजाहिर हों तो नतीजों में समर्थन के शब्द और अर्थ दोनों पढ़ें जाने चाहिए। किसी को भी पटकने या अपदस्थ करने के लिए उसी के दांव का इस्तेमाल किया जाना या उसकी काट तलाश लेना सबसे मुफीद माना जाता है। यदि दिग्विजय सिंह कांग्रेस को यह करने से रोकने का काम करते नजर आ रहे हों तो कहा जा सकता है कि कुल्हाड़ी पर अपना पैर मार दे रहे हैं। पर दर्द तो कांग्रेस को झेलना होगा। यह दर्द देर तक व भीतर तक महसूस होगा।

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