Domestic violence: देश की हर शादीशुदा महिला को पता होने चाहिए ये कानूनी अधिकार, क्या आप जानती हैं?

Domestic violence: महिलाओं के इस 'सहने' के पीछे लोक-लाज और समाज का डर होता है। तो कभी, खुद के अधिकारों की जानकारी न होने की वजह से भी महिलाओं को उत्पीड़न, शोषण, हिंसा और यौन हिंसा का शिकार तक होना पड़ता है।

Report :  aman
Published By :  Deepak Kumar
Update: 2021-10-26 12:58 GMT

Domestic violence: शादी, सिर्फ दो लोगों ही नहीं बल्कि दो परिवारों को भी आपस में जोड़ता है। रिश्ता जुड़ने के बाद इसे जीवनभर निभाने की जिम्मेदारी पति-पत्नी के साथ-साथ दोनों परिवारों पर भी होती है। शादी के बाद रिश्ते निभाने में पति का जितना अहम रोल होता है, उतना ही पत्नी का भी है। हमारे देश में ऐसे कई उदाहरण हैं, जिन्होंने इस रिश्ते को मरते दम तक पूरी शिद्दत से निभाया।

शादी के बाद पति-पत्नी का रिश्ता एक-दूसरे के साथ, इज्जत और प्रेम पूर्ण जीवन के इस सफर को और खूबसूरत, सुहाना बना देता है। हालांकि, हम जैसा कह रहे हैं कई बार ऐसा नहीं होता। हमारे सामने ऐसे कई मामले आए दिन आते हैं, जिसमें महिलाएं रिश्ते बचाने के लिए अपने खिलाफ हो रहे अत्याचारों को सालों-साल सहती रहती हैं। महिलाओं के इस 'सहने' के पीछे लोक-लाज और समाज का डर होता है। तो कभी, खुद के अधिकारों की जानकारी न होने की वजह से भी महिलाओं को उत्पीड़न, शोषण, हिंसा और यौन हिंसा का शिकार तक होना पड़ता है। महिलाओं की इन्हीं समस्याओं को देखते हुए आइए आज हम जानते हैं, कि एक शादीशुदा महिला के पास कौन-कौन से अधिकार होते हैं। कुछ चुनिंदा अधिकारों के बारे में आज हम आपको जानकारी देंगे।

घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार

आए दिन देश के कोने-कोने से महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकायत देखने-सुनने को मिलती है। ऐसा कई बार इसलिए भी होता है क्योंकि पीड़िता को अपने अधिकार पता ही नहीं होते हैं। तो ऐसी महिलाओं को हम बताना चाहेंगे, कि आपकी सुरक्षा के लिए ही घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 या 'Protection of Women from Domestic violence Act, 2005' बनाया गया था। इस कानून के तहत एक महिला को कानून से यह अधिकार प्राप्त है कि अगर उसके साथ पति या उसके ससुराल वाले शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सैक्शुअल या आर्थिक तरीके से अत्याचार करते हैं या शोषण होता है, तो पीड़िता उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है।

दहेज उत्पीड़न के खिलाफ क्या हैं अधिकार

हम अक्सर दहेज़ उत्पीड़न से जुड़े मामलों को सुनते रहते हैं। कई ऐसे मामले भी हमें सुनने को मिलते हैं, जिसमें दहेज के लिए महिलाओं को काफी अत्याचार सहना पड़ता है। कई बार तो ससुराल वाले दहेज की लालच में हदें पार कर जाते हैं। तो ऐसी महिलाओं के लिए हम बता दें, कि हमारे देश में आपके लिए दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 या Dowry Prohibition Act, 1961 के तहत ये अधिकार दिया गया है, कि अगर उसके पैतृक परिवार या ससुरालवालों के बीच किसी भी तरह के दहेज का लेन-देन होता है, तो वह इसकी शिकायत कर सकती हैं। वहीं, भारतीय दंड संहिता यानी IPC (Indian Penal Code, 1860) की धारा 304B (दहेज हत्या) और 498A (दहेज के लिए प्रताड़ना) के तहत दहेज के लेन-देन और इससे जुड़े उत्पीड़न को गैर-कानूनी और अपराध बताया गया है।

अबॉर्शन या गर्भपात का अधिकार

भारत की किसी भी महिला को अबॉर्शन या गर्भपात का अधिकार प्राप्त है। यानी, वह चाहे तो अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को अबॉर्ट (गिरा) कर सकती है। इसके लिए उसे अपने पति या ससुरालवालों के सहमति की आवश्यकता नहीं है। देश की महिलाओं को The Medical Termination of Pregnancy Act, 1971 के तहत यह अधिकार प्राप्त है। जिसके तहत एक महिला अपनी प्रेगनेंसी को किसी भी समय खत्म कर सकती है। हालांकि, इसके लिए प्रेगनेंसी 24 सप्ताह से कम की होनी चाहिए। लेकिन, कुछ विशेष मामलों में एक महिला अपने प्रेगनेंसी को 24 हफ्ते के बाद भी अबॉर्ट करा सकती है।

क्या है संपत्ति का अधिकार

अधिकतर महिलाओं या लड़कियों को इस बात की जानकारी भी नहीं होती है, कि शादी के बाद भी वो अपने माता-पिता की संपत्ति में हकदार हैं। साल 2005 में 'हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956' यानी The Hindu Succession Act, 1956 में संशोधन किया गया है। इसके तहत एक बेटी चाहे वह शादीशुदा हो या ना हो, अपने पिता की संपत्ति में बराबरी का हक रखती है।

Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005 

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