सुशील कुमार
मेरठ। नगर निगम का जलकल विभाग इन दिनों अपनी कारगुजारियों से चर्चा में है। सब मर्सिबल की मरम्मत के नाम पर सरकारी खजाने को लाखों की चपत लगाई जा रही है। इस कारण जलकल विभाग के अफसरों और कर्मचारियों पर उंगलियां उठ रही हैं। विभागीय सूत्रों के अनुसार अभी तक सबमर्सिबल की मरम्मत पर डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जा चुके हैं। बताते हैं कि विभागीय कर्मचारी मरम्मत के लिए मोटर का बिल तो जानी-मानी कंपनी का लगाते हैं मगर लोकल मोटर लगाई जाती है।
मोटर लोकल मगर भुगतान कंपनी का
विभाग की ओर से नगर निगम क्षेत्र में एक हार्सपावर (एचपी) और दस एचपी के 11,200 सब मर्सिबल लगाए गए हैं। विभागीय कर्मचारी और अधिकारी इनकी मरम्मत के नाम पर सरकारी खजाने कोचपत लगाने में लगे हुए हैं। सूत्रों के अनुसार कहीं फ्यूज फुंकने पर भी फाइलों में मोटर बदल दी जाती है।
विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों की कारगुजारी का पता इसी बात से चलता है कि मरम्मत किये जाने वाले मोटर को किसी जानी-मानी कंपनी का दर्शाया जाता है। बिल भी कंपनी की मोटर की दर के आधार पर ही बनाकर कमाई का खेल किया जाता है क्योंकि मोटर हकीकत में लोकल कंपनी की होती है।
यहाँ गौरतलब है कि मेरठ नगर निगम क्षेत्र में एक एचपी और दस एचपी सबमर्सिबल पंप गली-मोहल्लों में लगे हैं। इन्हें चलाने की जिम्मेदारी जलकल विभाग की नही बल्कि स्थानीय जनता की होती है। ऐसे में केबिल और फ्यूज का फुंकना आम बात है। इस काम में अधिक से अधिक दो सौ रुपये का खर्च आता है।
नगर आयुक्त ने खराब मोटरों का ब्योरा मांगा
सरकारी धन की बंदरबांट की शिकायत पर नगर आयुक्त ने जलकल विभाग से तीन साल में सब मर्सिबल व ट्यूबवेलों की खराब हुई मोटरों का ब्योरा मांगा है। नगर आयुक्त मनोज कुमार चौहान कहते हैं कि जलकल विभाग से यह लेखाजोखा मिलने के बाद जांच कराकर कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि जांच इस बात की भी कराई जाएगी कि तीन साल में किसी घटिया कंपनी की तो मोटर नहीं लगाई गयी है।
वैसे जांच को लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधि आश्वस्त नहीं दिखते हैं। नगर निगम की राजनीति में सक्रिय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चौधरी शमसुद्दीन कहते हैं कि जलकल विभाग में इस तरह के घोटाले कोई नई बात नहीं हैं। इससे पहले नगर आयुक्त देवेन्द्र कुशवाह के कार्यकाल में भी सबमर्सिबल व ट्यूबवेलों के खराब होने की शिकायत पर जांच के आदेश दिए गए थे,लेकिन उनका तबादला होने के बाद पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
खराबी की सूचना पर सक्रिय हो जाते हैं अफसर
जलकल विभाग के स्थानीय अधिकारियों और कर्मचारियों की कारगुजारियों का खेल तब शुरू होता है जब उन्हें सब मर्सिबल खराब होने की सूचना मिलती है। यह सूचना संबंधित इलाके के पार्षद या फिर जनता के जरिये मिलती है। सूचना मिलते ही विभागीय अधिकारी व कर्मचारी हरकत में आ जाते हैं।
विभागीय अधिकारी अपने कार्यालय मेंं माथापच्ची कर ऐसे पार्ट की मरम्मत की फाइल तैयार करते हैं जिस पर अधिक से अधिक लागत आसानी से दिखाई जा सके। जिला नागरिक परिषद के पूर्व सदस्य कुंवर शुजाअत अली कहते हैं कि नियम तो यह है कि सब मर्सिबल खराब होने की सूचना मिलने के बाद विभागीय अधिकारी को मौके पर जाकर यह सत्यापन करना चाहिए कि सब मर्सिबल की मोटर फुंकी है या फिर बुश या एम्पेलर खराब है,लेकिन विभागीय अधिकारी अपने कार्यालय में ही बैठकर फाइल तैयार कर लेते हैं।
पंप में चाहे जो भी खराबी हो मगर अधिकांश मामलों में मोटर फुंकना ही दर्शाया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बुश पर करीब 500 रुपये का खर्च होता है और एम्पेलर पर एक हजार रुपये, जबकि मोटर फुंकने पर तीन हजार से लेकर सात-आठ हजार की फाइल तैयार होती है। कुंवर शुजाअत के अनुसार इस खेल में विभागीय अधिकारियों की संलिप्तता होती है क्योंकि संबंधित ठेकेदार का भुगतान विभागीय अधिकारियों की संस्तुति पर ही होता है। इस तरह विभागीय कर्मचारी, अधिकारी और ठेकेदार आपस में सांठगांठ कर सरकारी खजाने को जमकर चूना लगा रहे हैं।