जय हो ! 35 साल बाद मिला इंसाफ, अभियुक्त को उम्रकैद की सजा

Update: 2016-12-23 18:21 GMT
हाईकोर्ट ने पूछा- काम बौद्ध धर्म से जुड़ी चीजों के अध्ययन का, तो इतनी शानोशौकत क्यों?

लखनऊ : हाईकोर्ट ने 37 साल पहले हुई हत्या के केस में दिये गये विचारण कोर्ट के निर्णय को पलटते हुए मामले में मुख्य अभियुक्त को उम्रकैद व दस हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। इसी अभियुक्त को सत्र न्यायालय ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया था।

जस्टिस अजय लाम्बा व जस्टिस विजयलक्ष्मी की बेचं ने यह फैसला राज्य सरकार की ओर से सत्र न्यायालय के 1981 के निर्णय को चुनौती देने वाली क्रिमिनल अपील पर दिया। सत्र न्यायालय ने अपना निर्णय 1981 में सुनाते हुए अभियुक्त को बाइज्जत बरी कर दिया था। अब 35 साल बाद मृतका के परिवार को इंसाफ मिला है।

12 जुलाई की रात को उन्नाव जनपद के सफीपुर थानाक्षेत्र अंतर्गत उमर रंजीत गांव की निवासी कौशल्या की हत्या कर दी गई थी। हत्या के मामले में गांव के ही राम बिलास और राम चरन को नामजद किया गया था। कौशल्या के परिवार का अयिक्त राम बिलास से जमीन को लेकर विवाद चला आ रहा था। कौशल्या के पति जंगली की शिकायत पर राम बिलास व उसके साथियों के खिलाफ पुलिस ने कार्रवाई भी की थी। जंगली काम के सिलसिले में ज्यादातर कानपुर में रहता था। गांव पर कौशल्या अकेली रहकर खेती वगैरह संभालती थी।

अभियोजन के अनुसार घटना वाले दिन राम बिलास और राम चरन कौशल्या के घर में कूद गए व उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। कौशल्या अपने घर में जहां सो रही थीं, वह स्थान पड़ोस के राम कुमार के छत से दिखता था। राम कुमार छत पर ही था। उसने ललकार भी लगाई लेकिन अभियुक्त फरार हो गए। बुरी तरह घायल राम कुमार व गांव के चौकीदार श्रीराम के सामने कौशल्या ने हमलावरों के बारे में बताया।

हालांकि सत्र न्यायालय ने दोनों गवाहों पर विश्वास नहीं किया। राज्य सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता स्मिति सहाय ने दलील दी कि सत्र न्यायालय का निर्णय अनुमान व संदेह पर आधारित है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में परिस्थित्जन्य साक्ष्यों के मद्देनजर गवाहों के बयान को सही मानते हुए, अभियुक्त को दोषी करार दिया व उम्रकैद और जुर्माने की सजा सुनाई। दूसरे अभियुक्त राम चरन के विरुद्ध अपील को स्वीकार नहीं किया गया था।

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