अगर सरकार नहीं चेती तो इस बार हाथ से चली जाएगी सत्ता

अब छात्रों को मौजूदा सरकार से भी हताशा होने लगी है। यदि सरकार जल्द बेरोजगार युवाओं के लिए अच्छे कदम नहीं उठाती है तो कहीं न कहीं आगामी चुनावों में सत्तासीन पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

Update: 2019-11-01 12:16 GMT

शिवाकान्त शुक्ल

लखनऊ: 2019 के लोकसभा चुनाव में दोबारा भारतीय जनता पार्टी ने शानदार वापसी किया। लोगों को मोदी सरकार से बहुत उम्मीदें थी लेकिन शायद बीजेपी लोगों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सकी है। ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि ये बेरोजगार युवाओं का कहना है।

बात करते हैं रोजगार की तो इस मामले में उत्तर प्रदेश की सरकार अब तक बहुत ही फिसड्डी रही है वहीं केंद्र की मोदी सरकार भी इस मामले में बहुत पीछे है। लेकिन दोनों सरकारें अपने आप को इस मायने में पीछे नहीं मानते हैं, मंच से रोजगार के बड़े-बड़े दावे करते रहते हैं। लेकिन जब हम जमीनी हकीकत की बात करें तो सभी दावे फेल नजर आते दिखाई देते हैं।

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बेरोजगारी की दर 45 साल में सबसे ज्यादा

देश में बेरोजगारी की दर वित्त वर्ष 2017-18 में बढ़ कर 6.1 फीसदी पर पहुंच गई है। सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार बेरोजगारी की यह दर 45 साल में सबसे ज्यादा है। बता दें कि बेरोजगारी दर का यह आंकड़ा नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद का शपथ लेने के एक दिन बाद आया है। सात चरणों में हुए लोकसभा चुनावों में इस बार मतदाताओं ने नरेंद्र मोदी की बीजेपी को दिल खोलकर वोट दिया है। लेकिन इसके बाद बेरोजगारी एक बड़ी समस्या बनकर सामने आई है।

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एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बेरोज़गारी की दर 6.1 फ़ीसदी है जो कि साल 1972-73 के बाद से सबसे ज़्यादा है। साल 1972-73 से पहले का डाटा तुलना योग्य नहीं है।

6.1 फ़ीसदी बेरोज़गारी की दर अपने आप में शायद उतनी चिंता का विषय नहीं है लेकिन अगर आपको ये बताया जाए कि साल 2011-12 में ये दर केवल 2.2 फ़ीसदी थी तो फिर बात अलग हो जाती है। और तो और शहरी इलाक़ों में 15 से 29 साल के लोगों के बीच बेरोज़गारी की दर ख़ासा अधिक है। शहरों में 15 से 29 साल की उम्र के 18.7 फ़ीसदी मर्द और 27.2 फ़ीसदी महिलाएं नौकरी की तलाश में हैं। इसी उम्र ग्रामीण इलाक़ों में 17.4 फ़ीसदी पुरुष और 13.6 फ़ीसदी महिलाएं बेरोज़गार हैं।

अधर में अटकी हुई हैं कई भर्तियां

तो वहीं पिछले कुछ दिनों से सरकार द्वारा निकाली भर्तियों में कोई भी भर्ती अभी तक फाईनल नहीं हो सकी है। चाहे हम उत्तर प्रदेश में 68000 शिक्षक भर्ती की बात करें या फिर रेलवे एनटीपीसी की 35277 पदों पर भर्ती की दोनों ही बड़ी वैकेंसी हैं लेकिन अभी तक कुछ फाईनल नहीं हुआ है। ऐसी ही कई भर्तियां हैं जो अभी भी अधर में अटकी हुई हैं।

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दोनों ही सरकारें रोजगार मामले में नाकाम

प्रतियोगी छात्रों का कहना है कि दोनों ही सरकारें रोजगार के मामले में नाकाम हैं। लोग सरकारी नौकरी के लिए परेशान हैं और आलम ये है कि कोई भी सरकारी वैकेंसी पूरी नहीं हो रही है। दूसरी तरफ मोदी सरकार लगातार निजीकरण करने में लगी हुई है। ऐसे में अब युवाओं की उम्मीदें इनसे कुछ और कम हो रही हैं। वहीं अब सरकारी नौकरी पाने वाले ​कुछ लोगों का कहना है कि इस सरकार में अपनी नौकरी बचाना कठिन हो रहा है। लेागों का कहना है कि ये सरकार कब क्या कर दें कुछ पता नहीं।

मजबूरी में ही करेेंगे प्राइवेट नौकरी

बात करते हैं प्राइवेट नौकरी की तो युवा सबसे पहने सरकारी नौकरी को प्राथमिकता देते हैं फिर नहीं मिलने पर प्राइवेट नौकरी करने की बात सोचते हैं। सरकारी नौकरी का चार्म इतना ज्यादा है कि प्राइवेट सेक्टर में बहुत मजबूरी में ही युवा जाना चाहते हैं। करीब 70 प्रतिशत छात्रों ने बताया कि जब कोई भी सरकारी नौकरी हाथ नहीं लगेगी तब मजबूरी में ही प्राइवेट नौकरी करेंगे। वह भी इसलिये कि परिवार चलाना है। वहीं 20 प्रतिशत लोगों ने कहा कि सरकारी नौकरी नहीं मिल पाई तो कुछ पैसा लगाकर कोई छोटा-मोटा बिजनेस खोलकर जीवनयापन करेंगे। कुछ लोगों ने कहा कि जब तक सरकारी नौकरी के लिए उम्र पूरा नहीं हो जाती है, तब तक भर्ती के लिए तैयारी करते रहेंगे,अगर नौकरी नहीं मिली तो फिर देखा जाएगा। युवाओं में सरकारी नौकरी की पसंदगी का कारण नौकरी की सुरक्षा, कम काम और अच्छी सुविधाएं हैं।

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प्रतियोगी छात्र हैं परेशान

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करा रहे कोचिंग संस्थान इतनी फीस ले रहे हैं कि बेरोजगार छात्रों को ये फीस देना कठिन हो रहा है। जिससे अब छात्रों में निराशा देखने को मिल रही है। ऐसे में अब छात्रों को मौजूदा सरकार से भी हताशा होने लगी है। यदि सरकार जल्द बेरोजगार युवाओं के लिए अच्छे कदम नहीं उठाती है तो कहीं न कहीं आगामी चुनावों में सत्तासीन पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

पिछले 6 सालों में 90 लाख नौकरियां घटीं

रोजगार के मुद्दे पर अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की तरफ से एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसके मुताबिक पिछले 6 सालों में करीब 90 लाख रोजगार के अवसरों में कमी आई है। बता दें कि इस रिपोर्ट को संतोष मेहरोत्रा और जगति के परीदा ने मिलकर तैयार किया है।

बिल्कुल अलग है यह रिपोर्ट

रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2011-12 से 2017-18 के बीच रोजगार के अवसरों में 90 लाख की कमी आई है। संतोष मेहरोत्रा जेएनयू में इकनॉमिस्ट के प्रफेसर हैं और जेके परीदा पंजाब सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं। यह रिपोर्ट लवीश भंडारी और अमरेश दुबे के हालिया अध्ययन के विपरीत है जो कि आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा प्रधानमंत्री को सौंपा गया था, जिसमें दावा किया गया था कि 2011 में 433 मिलियन (43.30 करोड़) रोजगार के मुकाबले 2017-18 में रोजगार की संख्या बढ़कर 457 मिलियन (45.70 करोड़) पर पहुंच गई।

अक्टूबर में बेरोजगारी दर बढ़ी

हाल ही में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) की एक रिपोर्ट आई है, जिसमें दावा किया गया है कि अक्टूबर महीने में बेरोजगारी दर बढ़कर 8.5 फीसदी पर पहुंच गई। अगस्त 2016 के बाद यह अपने उच्चतम स्तर पर है। सितंबर के महीने में बेरोजगारी दर 7.2 फीसदी थी। गुरुवार को भारत सरकार की तरफ से जारी रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर महीने में इंफ्रास्ट्रक्चर आउटपुर 5.2 फीसदी गिर गया है।

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