ऐसे होता है आपका मोबाइल हैक, भूल कर भी न करें ये

लोग अधिकतर अपने मोबाइल में कोई न कोई सिक्युरिटी ऐप रखते है, ताकि उनका मोबाइल सेफ रहे और उसमें किसी भी टाइप का वाइरस न जाए।

Update: 2020-01-26 06:23 GMT

लखनऊ: लोग अधिकतर अपने मोबाइल में कोई न कोई सिक्युरिटी ऐप रखते है, ताकि उनका मोबाइल सेफ रहे और उसमें किसी भी टाइप का वाइरस न जाए। लेकिन बहुत से ऐसे ऐप होते है जिसमें पहले से ही वाइरस होते हैं। तो आज हम आपको बताएंगे की आपके मोबाइल में वाइरस कैसे अटैक करता है। ये है कुछ ऐसे तरीके, जो आपके मोबाइल पर ऐसे अटैक कर देते है।

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रखें अपने ऐप्स पर नज़र-

स्मार्टफोन में आने वाले वायरस आमतौर पर थर्ड-पार्टी स्टोर से ओरिजिनेट होते हैं लेकिन कई बार ये प्ले स्टोर पर भी मिलते हैं। इनमें से बहुत से ऐप्स ऐसी तकनीक का यूज़ करते हैं जिससे मलीशियस फाइल्स को एन्क्रिप्ट किया जा सके ताकि इनको डिटेक्ट न किया जा सके। एक बार इन्स्टॉल होने के बाद ये टारगेट को ऐक्सेसबिलिटी राइट्स के लिए पूछते हैं जिससे ये 'बैक डोर' को डिवाइस में प्लान्ट कर सकें और रिमोट सर्वर पर डेटा भेजते रहें। सारे मैलवेयर पर्सनल डेटा की चोरी नहीं करते हैं बल्कि फोन को क्रिप्टोजैकिंग के लिए हैक करते हैं।

अटैकर्स ओटीए अपडेट से करते हैं टारगेट-

इसके लिए अटैकर्स पहले फेक ओटीए (ओवर द एयर) मैसेज भेजते हैं और टारगेट को नए नेटवर्क कॉन्फिगुरेशन सेटिंग को कॉन्फिगर करने का ऑफर देते हैं। एक बार जब इन सेटिंग्स को डाउनलोड कर लिया जाता है तो अटैकर्स सारे इंटरनेट ट्रैफिक को प्रॉक्सी सर्वर द्वारा कंट्रोल किए जाने वाले रूट द्वारा ऐक्सेस कर सकते हैं।

मैलवेयर किन रूट्स का प्रयोग करते हैं-

सारे मैलवेयर लिंक, मैसेज या ऐप की हेल्प से यूज़र्स को टारगेट नहीं करते हैं। कुछ यूनीक मैलवेयर जैसे ब्लू बॉर्न वगैरह ब्लू टूथ का प्रयोग करके एयर वेव्स के जरिए भी फैल सकते हैं। इससे बचने के लिए पब्लिक वाईफाई से फोन को कनेक्ट न करें इससे खतरा हो सकता है। इस नेटवर्क की हेल्प से मैन इन द मिडिल अटैक करते हैं। मतलब जो इन्फॉर्मेशन स्मार्टफोन और नेटवर्क के बीच भेजा जाता है उसे अटैकर्स पढ़ सकते हैं। यहां तक कि फोन को किसी पब्लिक USP पोर्ट का प्रयोग करके चार्ज करने से भी खतरा हो सकता है।

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किस डिवाइस को है कम खतरा-

मोबाइल को हैक करने के बहुत से तरीके हैं। अटैकर्स सिर्फ एंड्रॉयड फोन तक ही सीमित नहीं हैं इसलिए इनकी संख्या काफी ज्यादा है। एंड्रॉयड डिवाइस ओपन सोर्स कोड पर चलती है जिससे फोन के साथ ज्यादा छेड़छाड़ किया जा सकता है। फोन निर्माताओं के द्वारा जो कस्टमाइजेशन किया जाता है उससे भी सिक्युरिटी को नुकसान पहुंचता है। जबकि ऐपल डेवेलपर्स के साथ सोर्स कोड को रिलीज नहीं करता है जिससे आईफोन में अपने कोड को मॉडीफाई करना इजी नहीं होता।

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