Goa Election 2022: सीएम प्रमोद सावंत की परीक्षा अपनी साख और सीट बचाने की

Goa Election 2022: भाजपा अपने दिग्गज नेता मनोहर पर्रिकर के बगैर गोवा में पहली बार 14 फरवरी को चुनाव में जा रही है इसलिए प्रमोद सावंत की कड़ी परीक्षा है। प्रमोद तीसरी बार सांकेलिम सीट से चुनाव लड़ रहे हैं।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Deepak Kumar
Update:2022-02-08 18:41 IST

Goa Election 2022

Goa Election 2022: गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत (Goa CM Pramod Sawant) को उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी अलग अलग नामों से सुशोभित करते हैं। कोई उनको गोवा का 'आकस्मिक मुख्यमंत्री', कहता है तो कोई भाजपा हाईकमान की 'कठपुतली' तो कोई 'संपत्ति सावंत' करार देता है। प्रमोद ऐसी शख्सियत हैं जिनको अपनी ही पार्टी के भीतर विरोध का सामना करना पड़ा है।

चूंकि इस बार भाजपा (BJP) अपने दिग्गज नेता मनोहर पर्रिकर (Leader Manohar Parrikar) के बगैर गोवा में पहली बार 14 फरवरी को चुनाव में जा रही है इसलिए प्रमोद सावंत (Goa CM Pramod Sawant) की कड़ी परीक्षा है। प्रमोद तीसरी बार सांकेलिम सीट (Sanquelim seat) से चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने अपने अभियान को राज्य के बुनियादी ढांचे के निर्माण में अपनी सरकार के प्रयासों से जोड़ रखा है। वे अपनी उपलब्धियों में जुआरी नदी पर निर्माणाधीन पुल, कानाकोना में बाईपास और मोपा में ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा आदि को गिनाते हैं।

प्रमोद सावंत (Goa CM Pramod Sawant) का चुनावी करियर 2008 में पाले से उपचुनाव हारने के बाद इत्तेफाकन शुरू हुआ था। उन्होंने उस हार के बाद 2012 का चुनाव सांकेलिम से लगभग 7,000 वोटों के सहज अंतर के साथ जीता था।

धर्मेश सगलानी के साथ कड़ी टक्कर

2017 में उन्होंने कांग्रेस के धर्मेश सगलानी (Congress Dharmesh Sagalani) के साथ कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ा। उनकी जीत का अंतर 2012 की तुलना में बहुत कम था 2,000 से थोड़ा अधिक वोट। यही नहीं, उनके वोट शेयर में लगभग 23 फीसदी की गिरावट आई। इस बार प्रमोद सावंत (Goa CM Pramod Sawant) को धर्मेश सगलानी (Congress Dharmesh Sagalani) के साथ-साथ महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) और रिवोल्यूशनरी गोवा (आरजी) से टक्कर मिल रही है।

मार्च 2019 में बने सीएम

आयुर्वेदिक डॉक्टर, प्रमोद सावंत मार्च 2019 में पर्रिकर के असामयिक निधन के बाद मुख्यमंत्री बने थे। हालांकि दोनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) के कैडर से हैं, फिर भी 48 वर्षीय सावंत को भाजपा के शीर्ष नेताओं के एक यस मैन के रूप में देखा जाता है। जबकि पर्रिकर की छवि अलग थी। पर्रिकर को विरोधियों और अपनी पार्टी के लोगों के साथ-साथ समाज के सभी सामाजिक वर्गों से स्वतंत्र रूप से कार्य करने और स्थिति के अनुसार 'हिंदुत्व' बयानबाजी से अलग रहने में सक्षम नेता के रूप में सम्मान मिला था। उनके सबसे कटु विरोधियों में से एक - पूर्व निर्दलीय विधायक रोहन खुंटे, जो हाल ही में भाजपा में शामिल हुए थे, ने उन्हें भाजपा का 'पप्पू' करार दिया था। अन्य लोग सावंत को कांग्रेस और एमजीपी विधायकों के दलबदल कराने के लिए श्रेय देते हैं।

अल्पसंख्यक समर्थन का दावा

सावंत जोर देकर कहते हैं कि आम धारणा के विपरीत, भाजपा के पास अल्पसंख्यक समर्थन है क्योंकि वह इस चुनाव में कम से कम 12 ईसाई उम्मीदवारों (नौ पुराने चेहरे, तीन नए) को मैदान में उतार रही है। वैसे, इससे भी अधिक संख्या में ईसाईयों को पर्रिकर ने मैदान में उतारा था। सावंत को राज्य और अपने निर्वाचन क्षेत्र के स्तर पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। संक्वेलिम उन नौ सीटों में से एक है जहां खनन गतिविधियों के ठप होने से लोगों की आजीविका बुरी तरह प्रभावित हुई है।

सावंत (Pramod Sawant) के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी धर्मेश सगलानी (Dharmesh Sagalani) अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक मजबूत चुनौती के रूप में उभरे हैं। उनका कहना है कि प्रमोद सावंत ने मेरे खिलाफ भाजपा की मशीनरी का इस्तेमाल करने की कोशिश की है। उन्होंने पैसे, पुलिस के दबाव का इस्तेमाल किया लेकिन कुछ भी काम नहीं आया। हमने परिषद का चुनाव बड़े अंतर से जीता है।

सावंत के लिए, सबसे गंभीर चुनौती उनके कैबिनेट सहयोगी विश्वजीत राणे के रूप में भाजपा के भीतर से है। विश्वजीत अनुभवी कांग्रेसी प्रतापसिंह राणे के बेटे और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री हैं। वे कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आये हैं। विश्वजीत राणे की मुख्यमंत्री पद की महत्वाकांक्षा जगजाहिर है। वह और श्री सावंत उन निर्वाचन क्षेत्रों (वालपोई और संक्वेलिम) का प्रतिनिधित्व करते हैं जो एक साझा सीमा साझा करते हैं। कैबिनेट की बैठकों में दोनों नेता अक्सर कई मुद्दों पर भिड़ते रहे हैं। अब देखना है कि सावंत भीतरी और बाहरी चुनौतियों से कैसे निपटते हैं।

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