गोवा मुक्ति दिवस : 451 साल की गुलामी के बाद मिली थी आज़ादी

Goa Liberation Day 2021: पुर्तगाली 1510 में भारत आए थे और वो भारत की धरती पर आने वाले पहले यूरोपीय शासक थे। 510 से गोवा पर पुर्तगालियों का राज हो गया था जो अगले 451 सालों तक जारी रहा।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Chitra Singh
Update: 2021-12-19 04:52 GMT

गोवा मुक्ति दिवस (फोटो- सोशल मीडिया)

Goa Liberation Day 2021: वास्को डी गामा  1498 में भारत (vasco da gama came to india in) आए और इसके बाद 1510 से गोवा पर पुर्तगालियों का राज (portuguese rule in goa) हो गया था जो अगले 451 सालों तक जारी रहा। अंततः गोवा को आज़ादी (Goa ki Azadi) मिली 1961 में। यानी भारत की आज़ादी के करीब साढ़े 14 साल (goa liberation day 2021 how many years) बाद। 18  दिसंबर  1961 को भारतीय सेना ने गोवा की सीमा में प्रवेश किया था और अगले दिन यानी 19 दिसम्बर को गोवा को पुर्तगाल के कब्जे से छुड़ा लिया था।

इतिहास की बात

पुर्तगाली भारत कब आये थे (purtgali bharat kab aaye the)- पुर्तगाली 1510 में भारत आए थे और वो भारत की धरती पर आने वाले पहले यूरोपीय शासक थे। वहीं  1961 में वह भारत छोड़ने वाले भी अंतिम यूरोपीय शासक थे। बँटवारे और भयावह सांप्रदायिक हिंसा के बाद भारत को आज़ादी मिल गई लेकिन गोवा पुर्तगाल के ही कब्ज़े में रहा। यहां तक कि 1954 में फ़्रांसीसी पांडिचेरी छोड़कर चले गए मगर गोवा आज़ाद नहीं हो पाया। 

गोवा की आज़ादी की लड़ाई 1954 में शुरू हुई जब भारतीयों ने दादरा और नागर हवेली के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। इसकी शिकायत पुर्तगाली शासन ने द हेग स्थित इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में की थी। 1960 में इस कोर्ट का फैसला भारत के खिलाफ आया। इसके बाद भारत सरकार ने गोवा सरकार से लगातार बातचीत करने की कोशिश की लेकिन हर बार यह पेशकश ठुकरा दी गई। 

पुर्तगाली (सांकेतिक फोटो- सोशल मीडिया) 

1 सितंबर 1955 को भारत ने गोवा में मौजूद अपने कॉन्सुलेट को बंद कर दिया। इसके लिए गोवा, दमन और दीव के बीच में ब्लॉकेड कर दिया। गोवा ने इस मुद्दे को अंतरराष्‍ट्रीय मंच पर ले जाने की पूरी कोशिश की, लेकिन ये कोशिश विफल साबित हुई। भारत सरकार ने 1955 में गोवा पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए।

पहली गोलाबारी

नवम्बर 1961 में पुर्तगाली सैनिकों ने गोवा (portugal vs goa) के मछुआरों पर गोलियां चलाईं जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई। पुर्तगाली सैनिकों की गोलाबारी के बाद भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री वी. के. कृष्णा मेनन (V. K. Krishna Menon) और नेहरू ने आपातकालीन बैठक की और सैन्य एक्शन का फैसला लिया गया।

8 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना को गोवा पर चढ़ाई का आदेश दे दिया गया। इसे ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया। भारतीय सेना की त्‍वरित कार्रवाई के बाद पुर्तगालियों की सेना (portugal vs india war) बुरी तरह बिखर गई। भारतीय सेना गोवा में प्रवेश कर गई और इस दौरान करीब 36 घंटे तक सेना ने गोवा में जमीनी, समुद्री और हवाई हमले किए।18  दिसंबर 1961 को भारतीय सेना गोवा में जा घुसी। इसके बाद दोनों तरफ से फायरिंग और बमबारी शुरू हुई। 30 हजार की भारतीय सेना के सामने  6000 पुर्तगाली टिक नहीं पाए। भारतीय सेना ने जमीनी, समुद्री और हवाई हमले किए और पुर्तगाली बंकरों को तबाह कर दिया गया। भारतीय वायुसेना ने डाबोलिम हवाई पट्टी पर बमबारी की। पुर्तगालियों के लिए ये निर्णायक हमला साबित हुआ और उन्होंने हथियार डाल दिए और और इस तरह गोवा को 19 दिसम्बर को आजाद (Goa independence day) करा लिया गया।

पुर्तगाल और भारतीय सेना के बीच युद्ध (सांकेतिक फोटो- सोशल मीडिया) 

भारतीय सेना प्रमुख पीएन थापर के सामने पुर्तगाल के गवर्नर जनरल वसालो इ सिल्वा को आत्‍म समर्पण करना पड़ा था। ऑपरेशन विजय में 30 पुर्तगाली मारे गए थे, जबकि 22 भारतीय जवान शहीद हुए थे। इस ऑपरेशन में 57 पुर्तगाली सैनिक जख्मी हुए थे, जबकि जख्मी भारतीय सैनिकों की संख्या  54  थी। इस पूरे ऑपरेशन के दौरान भारत ने  4668  पुर्तगालियों को बंदी बनाया था।

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