दुर्गेश पार्थसारथी
अमृतसर। जिले में स्थित रामतीर्थ वह स्थान है जहां मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की पत्नी सीता ने परित्यक्ता का जीवन व्यतीत किया था। श्री वाल्मीकि तीर्थ के नाम से विख्यात यह पावन स्थल पंजाब के अमृतसर से करीब 10 किमी दूर राम तीर्थ में स्थित है। मान्यता है कि इसी स्थान पर आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी।
धूना साहिब के महंत मलकीत नाथ कहते हैं कि इस स्थान की मान्यता सतयुग से है। यहीं बैठकर भगवान वाल्मीकि ने आदि ग्रंथ रामायण की रचना की थी। मलकीत नाथ कहते हैं कि यह वही स्थल है जहां मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम द्वारा माता सीता का त्याग किए जाने पर वह इसी जगह पर रहीं और यहीं पर उन्होंने दो पुत्रों लव और कुश को जन्म दिया था। धूना साहिब के ही एक अन्य सेवादार कहते हैं कि मंदिर के सामने सीता कुंड है। इसी कुंड से पानी लाकर माता सीता रसोई बनाती थीं। यह मंदिर आज भी यहां मौजूद हैं। वे कहते हैं कि यहां से करीब दो किमी दूर पर सीतलानी गांव है। मान्यता है कि उसी जगह पर श्रीराम के कहने पर लक्ष्मण और सुमंत ने माता को लाकर छोड़ा था। इस गांव का नाम सीतलानी भी माता सीता के नाम पर पड़ा है।
रामायण और रामचरित मानस के उत्तरकांड की घटनाओं का उल्लेख करते हुए मलकीत नाथ कहते हैं कि रामतीर्थ ही वह स्थान है जो त्रेतायुग में भगवान श्रीराम से जुड़ी कई घटनाओं का साक्षी रहा है। वे कहते हैं कि यहीं पर भगवान वाल्मीकि जी ने लव और कुश को धनुर्विद्या सिखाई थी।
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ऐसे हुआ था कुश का जन्म
श्री वाल्मीकि तीर्थ के संतों ने एक कथा का उल्लेख करते हुए बताया कि एक बार माता सीता और उनकी देखरेख में लगी ऋषि पत्नी रजनी लव को महर्षि वाल्मीकि के पास छोड़ नहाने चलीं गईं। वहां सीता ने देखा कि एक बंदरी अपने दो बच्चों के साथ पानी पीने आई है। पानी में उसके दोनों बच्चे अठखेलियां कर रहे थे। इसे देख सीता के भी मन में हुआ कि उनके भी दो बच्चे होते। इधर, जब सीता स्नान के बाद आश्रम में लौंटीं तो देखा कि लव के साथ एक बच्चा और खेल रहा है। पूछने पर वाल्मीकि ने कहा कि बेटी यह भी तुम्हारा ही बच्चा है और इसे मैने अपने आसन के कुशा से जीवन दिया है। इसलिए इसका नाम कुश होगा।
लवकुश ने रोका था अश्वमेध का घोड़ा
रामतीर्थ के सांधु संतों ने श्री रामकथा का उल्लेख करते हुए कहा कि यहीं पर लव कुश ने भगवान श्रीराम के अश्वमेधघ यज्ञ का घोड़ा रोका था। वो इस कथा को प्रमाणिकता देते हुए कहते हैं कि अमृतसर में स्थित श्री दुग्र्याणा मंदिर के पास आज का जो बड़ा हनुमान मंदिर है वहीं पर लव कुश ने हनुमान को बरगद के पेड़ में बांधा था। इसके अलावा लक्ष्मणसर, राम तलाई और रामतीर्थ भगवान श्रीराम की सेना, भगवान के तीनों भाइयों और हनुमान के साथ हुए युद्ध का साक्षी है। यही नहीं, इसी राम तीर्थ में माता सीता लव और कुश को भगवान श्रीराम को सौंपकर खुद धरती में समा गई थी। भगवान श्री वाल्मीकि, राम, सीता, लव-कुश और श्रीराम से जुड़ी घटनाएं और रामतीर्थ शोध एवं अनुसंधान का विषय हो सकता है, लेकिन लोगों का यह भी तर्क है कि आस्था को किसी प्रमाण या अनुसंधान और अन्वेषण की आवश्यकता नहीं होती।
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लोग बनाते हैं घरौंदा, मांगते हैं मन्नत
धूना साहिब और सीता रसोई के पास ही लोग ईंटों का घरौंदा बनाकर अपना घर होने या फिर विदेश जाने की मन्नत मांगते हैं। यही नहीं सीता माता मंदिर में लोग गुल्ली-डंडा चढ़ाकर संतान सुख की मन्नत मांगते हैं।
मन्नत पूरी होने पर यहां आकर लोग भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं।
अन्य दर्शनीय स्थल
लगभग 40 बीघे में फैले वाल्मीकि तीर्थ परिसर में मंदिरों की लंबी शृंखला है। यहां 80 फुट ऊंची हनुमान जी की प्रतिमा दूर से ही श्री रामधुन की अलख जगा रही है। यहां कार्तिक पूर्णिमा को पांच दिन का मेला लगता है। इस मेले में देश-विदेश के श्रद्धालु और सैलानी भाग लेते हैं।
भव्य है भगवान वाल्मीकि का मंदिर
रामतीर्थ में सरोवर के बीचोंबीच भगवान वाल्मीकि का भव्य मंदिर बना है। दूर से किसी राजमहल का आभास कराते इस मंदिर का निर्माण पंजाब की तत्कालीन अकाली-भाजपा सरकार ने करीब तीन सौ करोड़ रुपये की लागत से करवाया था। रामतीर्थ में स्थित मंदिर और परिक्रमा की डिजाइन गुरुनानक देव विश्वविद्यालय के आर्किटेक्ट विभाग ने किया था और निर्माण पीडब्ल्यूडी ने करवाया था।
वाल्मीकि मंदिर के गर्भगृह में स्थापित अष्टधातु से बनी 800 किलो वजन की करीब 5 फुट पांच इंच ऊंची भगवान भगवान वाल्मीकि की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने की थी।
इसके पीछे मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का उद्देश्य प्रदेश के धार्मिक स्थलों को पर्यटन के नक्शे पर लाना और राज्य में टूरिज्म उद्योग को बढ़ावा देना था। वाल्मीकि मंदिर के पुजारी हीरा नाथ ने बताया कि इस मंदिर की देखरेख के लिए तत्कालीन बादल सरकार ने श्राइनबोर्ड का गठन कर रखा है ।