अपना भारत : निजी मेडिकल कालेजों का सरकारी फीस पर एडमिशन से इंकार

Update: 2017-08-04 11:15 GMT

देहरादून। एमबीबीएस फीस विवाद को लेकर उत्तराखंड सरकार और निजी कॉलेजों के बीच जबरदस्त खींचतान मची है। इसके बीच पिस रहे हैं एमबीबीएस में दाखिला लेने को तैयार छात्र। ‘नीट’ परिणामों के बाद 16 जुलाई से दाखिले के लिए काउंसिलिंग शुरू हुई और 24 जुलाई को छात्रों को सीटों का आवंटन कर दिया गया।

पहली काउंसिलिंग के बाद एडमिशन लेने की आखिरी तारीख थी 31 जुलाई, लेकिन फीस विवाद के चलते आखिरी दिन ही देहरादून के एक कॉलेज में एडमिशन हो पाए, जबकि दूसरे कालेज ने आखिरी दिन भी एडमिशन नहीं लिए।

जिसने याचिका डाली सिर्फ उसे एडमिशन

एडमिशन न लिए जाने पर ‘नीट’ में उत्तीर्ण छात्र आंचल कांडपाल ने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की। आंचल की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने वह सख्ती दिखाई जिसकी एडमिशन लेने के लिए परेशान छात्र और उनके परिवार वाले सरकार से उम्मीद कर रहे थे। हाईकोर्ट ने कहा कि निजी मेडिकल कॉलेज एमबीबीएस में तत्काल एडमिशन दें।

अदालत के आदेश के बाद हिमालयन मेडिकल कॉलेज ने हाईकोर्ट में कहा कि आज ही छात्रा को एडमिशन दे दिया जाएगा। लेकिन इस मामले में मिली राहत कुछ ही देर में हवा हो गई जब हिमालयन मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन विजय धस्माना ने कहा कि सिर्फ आंचल शर्मा को ही एडमिशन मिलेगा क्योंकि अदालत ने सिर्फ उसे ही एडमिशन देने को कहा है। धस्माना ने यह भी कहा कि आंचल को कॉलेज द्वारा निर्धारित फीस ही जमा करनी होगी क्योंकि कोर्ट ने अपने आदेश में फीस जमा कराने को कहा है।

फीस की फांस

दरअसल पूरा मामला इसलिए उलझा क्योंकि राज्य में फीस तय करने वाली फीस निर्धारण समिति ने समय पर काम नहीं किया। ‘नीट’ हो जाने के बाद जब काउंसिलिंग शुरू हो गई तब सरकार ने बिना निजी कॉलेजों को विश्वास में लिए खुद ही फीस तय कर दी। जहां राज्य के निजी कॉलेज एमबीबीएस के लिए हर साल 15 से 20 लाख तक फीस लेने की तैयारी कर रहे थे वहीं चिकित्सा शिक्षा विभाग ने राज्य राज्य कोटे के लिए एक साल की फीस 4 लाख रुपये और मैनेजमेंट कोटे के लिए 5 लाख रुपये तय कर दी।

अगर सरकार यह उम्मीद कर रही थी कि उसके द्वारा नियत फीस निजी कालेज मान जायेंगे तो वह गलत साबित हुआ। निजी कॉलेजों ने विभाग के आदेश को मानने से साफ इनकार कर दिया। इससे सरकारी महकमे में इज्जत बचाने की चिंता होने लगी और कालेजों को मनाने की कोशिशें शुरू हो गयीं।

चूंकि चिकित्सा शिक्षा विभाग खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास है इसलिए सरकार के प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने गुरु राम राय ट्रस्ट के प्रमुख महंत से जाकर मुलाकात भी की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। आखिर एक छात्रा मामले को कोर्ट में ले गई और इस तरह मामला सरकार के हाथ से निकल गया।

अड़ा हिमालय कालेज, एजीआरआर ने करवाए सशर्त एडमिशन

हाईकोर्ट के आदेश के बाद गुरु राम राय मेडिकल कॉलेज ने सभी 67 छात्रों को एडमिशन दे दिया। एडमिशन देते समय सभी से एक शपथपत्र भरवाया गया है कि छात्र फीस से जुड़े मुद्दे पर अदालत के आदेश को मानेंगे। लेकिन हिमालयन मेडिकल कॉलेज ने सिर्फ हाई कोर्ट में याचिका दायर करने वाली छात्रा को ही एडमिशन दिया और बाकी के बारे में विचार करने से साफ इनकार कर दिया।

अब वह 81 छात्र परेशान हैं जिनकी फीस चिकित्सा शिक्षा विभाग के पास जमा है। विभाग ने यह कहकर एमबीबीएस की फीस ले ली थी कि वह इसे निजी कॉलेजों में जमा करवाएगा। पर अब तक के घटनाक्रम से साफ हो गया है कि विभाग ने अपने अधिकारों और निजी कॉलेजों की ताकत का बिल्कुल गलत अनुमान लगा लिया था। 81 छात्रों की फीस के सवा तीन करोड़ रुपये से ज्यादा चिकित्सा शिक्षा विभाग के पास जमा है जो न एडमिशन करवा पा रहा है और न ही यह बता रहा है कि वह इस पैसे का करेगा क्या?

फीस की फांस सुलझी नहीं, सीटों पर भी विवाद

चिकित्सा शिक्षा विभाग ने अपने साथ इस मामले में मुख्यमंत्री को भी फंसा लिया है क्योंकि यह विभाग उन्हीं के तहत आता है। निजी मेडिकल कॉलेजों के साथ फीस का विवाद सुलझा भी नहीं था कि विभाग ने निजी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की सीटों को लेकर भी एक और आदेश जारी कर दिया। आदेश के अनुसार इन कॉलेजों की 150 सीटों में से 75 सीटें राज्य कोटे में देनी होंगी जबकि 75 सीटें मैनेजमेंट कोटे से भरी जाएंगी।

लेकिन निजी मेडिकल कॉलजों ने इस व्यवस्था को मानने से साफ इनकार कर दिया है। इनका कहना है कि वह 75 सीटें राज्य कोटे के लिए नहीं दे सकते, सरकार चाहे तो पुरानी व्यवस्था के तहत 25 सीटें ले सकती है। उधर सरकारी कॉलेज चुनने वाले छात्रों को राहत है और 25 तारीख से ही इन कॉलेजों में एडमिशन शुरू हो गए। श्रीनगर में 33, हल्द्वानी में 20 और दून मेडिकल कॉलेज में 20 छात्रों ने एडमिशन ले लिया।

अब मामला अदालत में है लेकिन सरकार के स्तर मामले को सुलझाने के लिए बैठकों पर बैठकें की जा रही हैं। हालांकि अब तक के रिकॉर्ड को देखते हुए लगता नहीं कि इस सबसे कोई हल निकलेगा। छात्रों और उनके परिवार वालों को भी अब हाई कोर्ट से ही उम्मीद है।

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