गुजरात चुनाव : बीजेपी को राहुल से टेंशन नहीं, लेकिन चिंता भविष्य की

Update:2017-11-12 17:25 IST

गांधीनगर : गुजरात में बीजेपी की परेशानी यह नहीं है कि वो सत्ता में नहीं आ रही। बल्कि उसे डर ये है कि कहीं कांग्रेस के मजबूती से उभरने से आने वाले और कई चुनाव राज्य में कांग्रेस को विकल्प के तौर पर ना खड़ा कर दें। उसे ये बात भी परेशान कर रही है कि उसकी सीटें यदि कम हुई तो देश भर में विरोधियों को पीएम मोदी पर निशाना साधने का मौका मिल जाएगा।

बीजेपी की चिंता जायज भी है। आखिर उसका परंपरागत वोटर पाटीदार उससे खिसक कांग्रेस के पाले में नजर आने लगा है। इसके साथ ही जीएसटी पर जिस तरह गुजरात के व्यापारी समुदाय ने अपनी खुली नाराजगी जाहिर की उसने भी बीजेपी के कान खड़े कर दिए हैं।

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राज्य में पाटीदारों के साथ ही व्यापारी भी बीजेपी के वोटर रहे हैं। लेकिन जिस तरह चुनाव से पहले सूरत में हजारों व्यापारी सड़कों पर उतरे उससे केंद्र सरकार दबाव में थी। इसी का नतीजा था कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आनन फानन में जीएसटी की दरों में बदलाव किया। वो व्यापारी वर्ग को संजोने की कवायद ही थी।

राहुल की अति सक्रियत भले ही इस चुनाव में कोई खास असर न दिखा सके। लेकिन यदि कांग्रेस मजबूत होती है तो आने वाले चुनावों में उसकी जमीन और मजबूत होगी। ये बात राहुल भी जानते हैं। इसीलिए वो ज्यादा से ज्यादा समय गुजरात को दे रहे हैं।

राज्य में इस समय युवाओं का वोट पर 65 फीसदी कब्ज़ा है। जो फिलहाल राहुल के निशाने पर है। ऐसा हम किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो नहीं कह रहे। आप स्वयं देख सकते हैं कि राहुल जब किसी सभा या रैली में होते हैं तो वहां युवाओं की तादात सबसे अधिक होती है। जबकि मोदी या शाह की रैली या जनसभा में इनका प्रतिशत कम रहता है। कांग्रेस के साथ युवा नेता के तौर पर जहां हार्दिक अल्पेश और जिग्नेश हैं।

वहीं राहुल भी युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। ऐसे में बीजेपी को इस चतुर्भुज को किसी भी हाल में तोड़ना होगा। क्योंकि राहुल को यदि छोड़ भी दिया जाए तो 18 से 36 वाले आयुवर्ग में ये तिकड़ी काफी दखल रखती है। राज्य के सभी विश्वविद्यालय और महाविद्यालय में इनकी टीम काम कर रही और उन्हें बड़े पैमाने पर समर्थन भी मिल रहा है। गांधीनगर से लेकर नई दिल्ली तक बीजेपी नेता मंथन में लगे हैं कि युवाओं के बीच ऐसा कौन सा मुद्दा लेकर जाए की वो पार्टी उम्मीदवार को वोट करें और उनकी नाराजगी दूर हो सके।

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इसके साथ ही बीजेपी इसबार चुनाव में एक ही चेहरा एक ही निशान कमल का नारा लगा रही है। ताकि वोटर्स को ये संदेश दिया जा सके कि मोदी का चेहरा याद रखो और कमल के फूल पर बटन दबाओ।

बीजेपी 22 साल से सत्ता पर काबिज है। भले ही सरकार ने राज्य में बहुत कुछ किया हो। लेकिन वो सब कुछ नहीं कर सकती। चुनाव में एंटी इनकम्बैंसी फैक्टर जरूर रहता है। ये फैक्टर इस बार गुजरात में भी देखने को मिल रहा है। इसीलिए बीजेपी अपने कई सिटिंग विधायक के टिकट काट माहौल को पक्ष में करने का मन बना चुकी है।

पार्टी विधायक भी इस बात को मान चुके हैं। ऊंझा से विधायक नारायण पटेल ने अमित शाह को पत्र लिख आगाह किया है कि भले ही टिकट काट दें। लेकिन किसी बाहरी को टिकट ना दें। स्थानीय नेता को ही टिकट दिया जाए वर्ना कार्यकर्ता उसका विरोध करेंगे।

मंदिर इफेक्ट

उमिया माता और खोडलधाम माता मंदिर पाटीदारों की कुलदेवी के मंदिर हैं। गुजरात में पाटीदार समाज राजनैतिक तौर पर काफी जागरूक माना जाता है। गुजरात की राजनीति पर करीबी नजर रखने वालों के मुताबिक राज्य के कुल मतदाताओं में 19 प्रतिशत की भागीदारी रखने वाला पाटीदार बीजेपी का परंपरागत वोटर रहा है। लेकिन हार्दिक पटेल के उदय ने उससे ये वोटर कुछ हद तक झटक लिया है। ये बात कांग्रेस अच्छे से जानती है कि यदि पाटीदार बीजेपी से नाराज हो उसके पाले में आ जाए तो भले ही उसकी सरकार ना बने लेकिन राज्य में वापसी का सपना तो सच हो सकता है। इसीलिए कांग्रेस ने हार्दिक को अपने पाले में कर लिया।

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गुजरात में पटेलों के दो समुदाय हैं। एक कड़वा और दूसरे लेउवा। कड़वा दक्षिण गुजरात में हैं। जबकि लेउवा उत्तर मध्य गुजरात में रहते हैं। कड़वा पटेल खोडलधाम माता मंदिर में आस्था रखते हैं। यहां जिन देवी को पूजा जाता है उनका नाम है खोडियार माता। लेउवा पटेल उमिया माता में आस्था रखते हैं। राज्य का पाटीदार समाज इन दोनों मंदिरों से जुड़ा हुआ है।

हार्दिक पटेल खोडलधाम और उमिया माता धाम की संस्थाओं के दम पर पटेलों को अपने साथ जोड़ने में सफल साबित हो सके हैं। सूत्रों के मुताबिक इन दोनों मंदिरों की संस्थाओं के पदाधिकारी हार्दिक के खुले समर्थन में हैं। और हार्दिक के किसी भी कार्यक्रम से पहले यहां से उसके समर्थन में बाकायदा ऐलान किया जाता है। इसके बाद उस कार्यक्रम में नजर आती है हजारों की भीड़।

 

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