महिलाओं की आवाज बनीं कृष्णा सोबती, जन्मदिन पर जानिए अनसुनी बातें

सोबती स्त्री की आजादी और न्याय की पक्षधर रहीं। अपनी रचनाओं में समय और समाज को केंद्र में रखा और एक औरत की जिंदगी की परतों को बेहद संजीदगी के साथ खोलने की कोशिश की।

Update: 2021-02-18 10:45 GMT
महिलाओं की आवाज बनीं कृष्णा सोबती, जन्मदिन पर जानिए अनसुनी बातें

लखनऊ: हिंदी की जानी मानी साहित्यकार कृष्णा सोबती (Krishna Sobti) का आज जन्मदिन है। कृष्णा सोबती का जन्म 18 फरवरी 1925 को हुआ था। साहित्य-संस्कृति के इतिहास में उन्होंने अपने नाम बहुत कुछ दर्ज किया है। सोबती हिंदी की प्रमुख गद्य लेखिका थीं। उनके लिखे अल्फाज मानो जिंदगी के अंधेरे में रोशनी बिखेरने का काम करते हैं।

मध्यमवर्गीय महिलाओं के लिए बनीं बोल्ड आवाज

पाकिस्तान में जन्मीं कृष्णा सोबती ने जमकर उपन्यास और कहानी विधा में लेखन किया। अपने लेखन के जरिए उन्होंने राजनीति और समाज की नब्ज टटोलने के साथ-साथ मध्यमवर्गीय महिला की बोल्ड आवाज बनकर सामने आईं। उन्हें राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर मुखरता से अपने विचार रखने के लिए भी जाना जाता था। अपनी रचनाओं के लिए कृष्णा सोबती को कई सम्मान भी मिले।

यह भी पढ़ें: पॉरी गर्ल ने मचाया धमाल: जाने कौन है ये लड़की, तेजी से हो रही गूगल सर्च

(फोटो- इंस्टाग्राम)

आजादी और न्याय की पक्षधर

सोबती स्त्री की आजादी और न्याय की पक्षधर रहीं। अपनी रचनाओं में समय और समाज को केंद्र में रखा और एक औरत की जिंदगी की परतों को बेहद संजीदगी के साथ खोलने की कोशिश की। 1950 में कहानी लामा से साहित्यिक सफर शुरू करने वाली सोबती हिंदी साहित्य को कई कालजयी रचनाएं दीं। उनके लिखी प्रमुख कृतियों में-

डार से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, यारों के यार तिन पहाड़, सूरजमुखी अंधेरे के, सोबती एक सोहबत, दिलोदानिश, ज़िंदगीनामा, समय सरगम, ऐ लड़की, बादलों के घेरे, हम हशमत शामिल हैं। कुछ साल पहले प्रकाशित बुद्ध का कमंडल लद्दाख और गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान भी उनके लेखन के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

यह भी पढ़ें: बम ब्लास्ट में खोया हाथ: फिर भी मालविका अय्यर नहीं मनी हार, बनीं सुपरवुमन

इन सम्मानों से किया गया सम्मानित

उन्हें कई सर्वश्रेष्ठ सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है। सोबती को देश के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा ‘ज़िंदगीनामा’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1996 में अकादमी के उच्चतम सम्मान साहित्य अकादमी फेलोशिप से भी नवाजा जा चुका है। इसके साथ ही उन्हें पद्मभूषण, व्यास सम्मान, शलाका सम्मान से भी सम्मानित किया गया। भले ही वो आज इस दुनिया में नहीं है, लेकिन लोगों के दिलों में सदियों तक उनका राज रहेगा।

यह भी पढ़ें: शिवाजी महाराज का UP से भी रहा इस तरह का नाता, बहुत कम लोगों जानते हैं ये बात

दोस्तों देश दुनिया की और को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलो करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

Tags:    

Similar News