हुक्कापाती का नहीं सुना नाम तो जान ले कैसा है यह रिवाज, इसके बिना अधूरा है रौशनी का त्योहार

दीपावली के दिन हर तरफ साफ-सफाई के साथ दीयों की रौशनी से हर कोना जगमगा उठता है।  दीपावली के दिन लक्ष्मी-गणेश पूजन के साथ, कई जगहों पर ताश खेलने की परंपरा है तो साथ में पटाखें फोड़कर खुशी जाहिर की जाती है। इसी तरह दीपावली पर रात में एक परंपरा होती है हुक्कापाती की।

Update:2019-10-27 07:34 IST

जयपुर : दीपावली के दिन हर तरफ साफ-सफाई के साथ दीयों की रौशनी से हर कोना जगमगा उठता है। दीपावली के दिन लक्ष्मी-गणेश पूजन के साथ, कई जगहों पर ताश खेलने की परंपरा है तो साथ में पटाखें फोड़कर खुशी जाहिर की जाती है। इसी तरह दीपावली पर रात में एक परंपरा होती है हुक्कापाती की। जो बिहार के कोसी उसके आसपास के क्षेत्र में होती है। इन क्षेत्रों में दीपावली के दिन हुक्कापाती का खास महत्व है।

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यहां जूट की संठी लकड़ी की बनी हुक्कापाती के बिना दीपावली पर्व अधूरा है। इसके अनुसार, लोग घर के एक कोने में जलाकर हुक्कापाती को 'लक्ष्मी घर दलिदर बाहर' शब्द का उच्चारण करते हर पूजा घर समेत पूरे घर में घुमाया जाता है। दीपावली के दिन इसे जलाकर लोग हुक्कापाती खेलते हैं। इसके बाद घर के बाहर खेत व सड़क पर हुक्कापाती रखकर 5 बार लांघा जाता है। यह पंरम्परा सालों से चली आ रही है।इस दिन घर में दीये जलाने और पूजा करने के बाद हुक्कापाती खेला जाता है। हुक्कापाती निकाले लोग घर से बाहर नहीं निकलते हैं। दीपावली पर हुक्कापाती को जरूर खरीदा जाता है। कुछ जगहों पर लोग खुद बनाते है तो कुछ बाजार से लाते हैं।

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यह पटुआ से बनता बै इसलिए दीपावली पर पदुआ की लकड़ी की मांग बढ़ जाती है। लकड़ी से हुक्कापाती बिहार के जदिया मीरगंज आदि जगहों से बाहर जाता है। इसकी कीमत पांच से दस रूपये तक होती है। कोसी और आसपास के इलाकों में दीपावली पर हुक्का-पाती जलाने का रिवाज अधिक पाया जाता है। इस बार बाजारों में अधिक मांग थी। हुक्का-पाती को जलाकर लोग दिवाली की रात में अंतिम परंपरा निभाते हैं औरदुख दारिद्रय को भगाते है।

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