कारगिल विजय दिवस: राजनाथ सिंह युद्ध स्मारक पर नायकों को देंगे श्रद्धाजंलि
कारगिल विजय दिवस स्वतंत्र भारत के लिये एक महत्वपूर्ण दिवस है। इसे हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है। कारगिल युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई को उसका अंत हुआ। इसमें भारत की विजय हुई। इस दिन कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों के सम्मान हेतु मनाया जाता है।
जम्मू: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आज 'कारगिल विजय दिवस' के अवसर पर कारगिल का एक दिवसीय दौरा करने वाले हैं। बता दें कि, सिंह इस दौरान कारगिल शहीदों को नमन करने के बाद जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा हालात का जायजा भी लेंगे।
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बतौर रक्षा मंत्री अपने दूसरे जम्मू कश्मीर दौरे पर राजनाथ सिंह आज कारगिल भी जाएंगे। यहां वह भारत के सैन्य अभियान ‘‘आपरेशन विजय’’ की 20 वीं वर्षगांठ पर करगिल युद्ध स्मारक में शहीद जवानों को श्रद्धाजंलि अर्पित करेंगे।
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रक्षा मंत्री बनने के बाद राजनाथ सिंह पहली बार तीन जून को कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र गए थे। ऐसे में ये उनका दूसरा मौका है। आज सिंह कारगिल के द्रास में कारगिल शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए आ रहे हैं। देशभर में कारगिल विजय के 20 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में कार्यक्रमों का सिलसिला जारी है।
क्यों मनाया जाता है कारगिल विजय दिवस?
कारगिल विजय दिवस स्वतंत्र भारत के लिये एक महत्वपूर्ण दिवस है। इसे हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है। कारगिल युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई को उसका अंत हुआ। इसमें भारत की विजय हुई। इस दिन कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों के सम्मान हेतु मनाया जाता है।
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1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद भी कई सैन्य संघर्ष होता रहा। दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षण के कारण तनाव और बढ़ गया था। स्थिति को शांत करने के लिए दोनों देशों ने फरवरी 1999 में लाहौर में घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए। जिसमें कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का वादा किया गया था।
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मगर पाकिस्तान ने अपने सैनिकों और अर्ध-सैनिक बलों को छिपाकर नियंत्रण रेखा के पार भेजने लगा और इस घुसपैठ का नाम "ऑपरेशन बद्र" रखा था। इसका मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था। पाकिस्तान यह भी मानता है कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार के तनाव से कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में मदद मिलेगी।
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शुरू में इसे घुसपैठ मान लिया था और दावा किया गया कि इन्हें कुछ ही दिनों में बाहर कर दिया जाएगा। मगर नियंत्रण रेखा में खोज के बाद और इन घुसपैठियों के नियोजित रणनीति में अंतर का पता चलने के बाद भारतीय सेना को अहसास हो गया कि हमले की योजना बहुत बड़े पैमाने पर किया गया है।
इसके बाद भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय नाम से 2,00,000 सैनिकों को भेजा। यह युद्ध आधिकारिक रूप से 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ। इस युद्ध के दौरान 527 सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया।