Maharashtra: मराठा-ओबीसी या फिर फडणवीस, आसान नहीं भाजपा के लिए सरकार का चेहरा तय करना
Maharashtra Politics: अब यहां ये सवाल उठ रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद क्या भाजपा पहले की तरह मुख्यमंत्री पद पर देवेंद्र फडणवीस पर दांव लगाएगी या मराठा बनाम ओबीसी की नए सियासी समीकरण को साधने की कोशिश करेगी।
Maharashtra Politics: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया है। पार्टी चुनाव के नतीजे से गदगद है। पार्टी ने अकेले दम पर विधानसभा की 288 सीटों में से 132 पर जीत दर्ज किया है। बहुमत के लिए उसे केवल 13 सीटों की जरूरत है। ऐसे में देखा जाए तो जिस तरह से भाजपा ने यहां जबर्दस्त प्रदर्शन किया है। इससे तो दूसरे दल के लिए मुख्यमंत्री बनने की संभावनाएं न के बराबर ही रह गई है।
केवल 149 सीटों पर चुनाव लड़कर 90 फीसदी की विजयी स्ट्राइक रेट के साथ बीजेपी ने 132 सीटें जीती हैं। वह बहुमत से केवल 10 कदम दूर रह गई। इससे पहले पार्टी ने बिहार में 2010 के विधानसभा चुनाव में 102 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 91 सीटें जीती थी। तब भी पार्टी की जीत का स्ट्राइक रेट करीब 90 फीसदी ही था। लेकिन नब्बे फीसदी के स्ट्राइक रेट और बहुमत से मात्र 13 सीटें कम होने के बावजूद भी भाजपा के लिए महाराष्ट्र में सरकार का चेहरा तय करना और नई सरकार के गठन के लिए रोड़े को दूर करना आसान नहीं होगा।
अब यहां ये सवाल उठ रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद क्या भाजपा पहले की तरह मुख्यमंत्री पद पर देवेंद्र फडणवीस पर दांव लगाएगी या मराठा बनाम ओबीसी की नए सियासी समीकरण को साधने की कोशिश करेगी।
अचानक ओबीसी और मराठा सबसे अहम हो गए हैं
महाराष्ट्र भाजपा के सूत्रों के मुताबिक राज्य की वर्तमान राजनीति में अचानक ओबीसी और मराठा सबसे अहम हो गए हैं। हाल की में हुए लोकसभा चुनाव में मराठा आरक्षण के सवाल पर इन दोनों के बीच तालमेल बैठाने में नाकाम रहने की कीमत पार्टी को चुकानी पड़ी थी। अगर इस नई राजनीतिक परिस्थितियों को देखा जाए तो इसके कारण दूसरे कई राज्यों की तरह महाराष्ट्र में भी अब अगड़ा वर्ग की राजनीति की राह बहुत कठिन हो गई है। ऐसे में अब निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री पद का चेहरा तय करना भाजपा के लिए इस बार आसान नहीं होगा।
महायुति और एमवीए में इतना बड़ा अंतर क्यों?
बता दें कि कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में एमवीए सत्तारूढ़ महायुति पर काफी भारी पड़ा था। लेकिन अब यह बाजी पलट गई है। उस समय राज्य में दोनों गठबंधन को करीब-करीब समान वोट मिले थें लेकिन वहीं विधानसभा चुनाव में यह अंतर 15 फीसदी से अधिक का हो गया है। लोकसभा चुनाव के इतर इस बार महायुति के पक्ष में फिर से ओबीसी, मराठा और अगड़ा वर्ग का झुकाव देखा गया।
हिट हो गईं ये योजनाएं
जहां लोकसभा चुनाव के बाद शिंदे सरकार की महिला बुजुर्ग और युवा केंद्रित आधा दर्जन से अधिक योजनाएं हिट रहीं तो वहीं बटेंगे तो कटेंगे नारे का असर मूल रूप से शिवसेना (यूबीटी) से जुड़े मतदाताओं पर अधिक पड़ा। दूसरी ओर, अजीत पवार इस चुनाव में अपने चाचा शरद पवार पर भारी पड़े और काफी मजबूत बनकर उभरे हैं। वे एनसीपी शरद के वोट बैंक पर जोरदार तरीके से असर डालने में कामयाब रहे हैं।
नतीजों में हरियाणा की झलक
महाराष्ट्र के नतीजों में हरियाणा की झलक दिखने को मिली है। हाल की में हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे की झलक महाराष्ट्र में साफ तौर पर देखी जा सकती है। दोनों राज्यों में लोकसभा चुनाव के मुकाबले चार प्रतिशत ज्यादा मतदान हुआ। भाजपा के रणनीतिकारों की मानें तो उसके और संघ के प्रयासों के कारण 2024 लोकसभा चुनाव में निराशा में घर बैठे कार्यकर्ता इस बार जमीन पर उतरे और समर्थक मतदाताओं को मतदान केंद्र तक ले जाने में सफल रहे और इसी का नतीजा रहा की महाराष्ट्र में भाजपा की बमबम हो रही है।
सीएम पद पर कोई खींचतान नहीं
चुनाव नतीजों के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्रियों देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार ने मुख्यमंत्री पद को लेकर किसी तरह की खींचतान की बात से साफ इन्कार किया।
मिलकर तय करेंगे सीएम : शिंदे
मुख्यमंत्री शिंदे ने कहा कि महायुति के पास सबसे अधिक सीट जीतने वाली पार्टी का ही मुख्यमंत्री बनेगा, ऐसा कोई निश्चिम फॉर्मूला नहीं है। मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहिन योजना के कारण ही विधानसभा चुनाव में महायुति को प्रचंड बहुमत मिला है। मुख्यमंत्री के मुद्दे पर हम मिलकर बैठेंगे और तय करेंगे। हमने दो साल में जो काम किया और तीनों पार्टियों ने मिलकर जो फैसले लिए उसका नतीजा हमारे सामने है।