Mother Teresa: यूरोप में जन्मी मदर टेरेसा ने भारत को बनाया अपनी कर्मभूमि, 68 सालों तक दी मानवता की शिक्षा
Mother Teresa Nibandh Hindi: मदर टेरेसा का नाम सुनते ही जेहन में उसे विदेशी महिला का ख्याल आता है जिसके लिए भारतीयों के दिलों में अपार श्रद्धा है। टे
Mother Teresa Nibandh Hindi: मदर टेरेसा (Mother Teresa) का नाम सुनते ही जेहन में उसे विदेशी महिला का ख्याल आता है जिसके लिए भारतीयों के दिलों में अपार श्रद्धा है। टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मेसिडोनिया की राजधानी स्कोप्जे (Macedonian capital Skopje) में एक अलबेनियाई परिवार में हुआ था। उनके जन्म के एक दिन बाद उनका बपतिस्मा हुआ, जो ईसाईयों के बीच एक धार्मिक प्रकिया थी। इसलिए मदर टेरेसा अपना जन्मदिन 27 अगस्त को ही मनाती थीं। टेरेसा ने अपनी पूरी जिंदगी गरीबों, वंचितों, बेसहारों और गंभीर रोगों से जूझ रहे लोगों की सेवा में झोंक दिया था।
इन देशों से गुजरी टेरेसा
साल 1950 में भारत आने से पहले वह दुनिया के कई देशों में समय गुजार चुकी थीं। ऑटोमन, सर्बिया, बुल्गेरिया और युगोस्लाविया के बाद भारत उनका पांचवां और पसंदीदा ठिकाना था। एकबार जब टेरेसां यहां आईं तो यहीं की होकर रह गईं। मात्र 18 साल की उम्र में घर- परिवार को अलविदा कहने वाली टेरेसा ने कोलकाता आने के बाद मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी। उन्होंने कोलकाता में कई आश्रम, स्कूल, गरीबों के लिए रसोई और अनाथों के लिए घर बनवाए।
मदर टेरेसा का परिवार
मदर टेरेसा की माता का नाम द्राना बोयाजू और पिता का नाम निकोला बोयाजू था। उनके पिता एक कृषक थे जो बाद में खेती-किसानी छोड़कर भवन निर्माण के कार्य में लग गए। टेरेसा का परिवार आर्थिक रूप से मजबूत था। मदर टेरेसा अपने माता-पिता की चौथी संतान थीं। टेरेसा के दो बहन और एक भाई थे, जो इनसे बड़े थे।
टेरेसा के कई उपनाम
मदर टेरेसा का बचपन का नाम एग्नेस गौंझा बोनास्क्यू था। बाद में उसने अपना नाम छोड़ दिया और टेरेसा नाम चुन लिया। गरीबों के प्रति उनके सेवाभाव को देखते हुए उन्हें मदर टेरेसा के नाम से पुकारा जाने लगा। ममतामयी मां, गरीबों की मसीहा, विश्व जननी, मदर मैरी सहित कई अनगनित नामों से जाना जाता है। मदर टेरेसा गंदी बस्तियों में झोपड़ी में रहकर गरीबों की सेवा में लगी रहती थीं। इस पर पश्चिमी दुनिया के लोग उन्हें 'गटर का संत' कहकर उनपर तंज कसा करते थे। जिसका एकबार टेरेसा ने शानदार जवाब दिया था। उन्होंने कहा था, जख्म भरने वाले हाथ प्रार्थना करने वाले होंठ से कहीं अधिक पवित्र होते हैं।
मदर टेरेसा को मिले कई पुरस्कार
मदर टेरेसा की ख्याति दुनियाभर में फैल चुकी थी। ईसाईयों की सर्वोच्च संस्था वेटिकन सिटी ने भी उनके कामों को मानते हुए उन्हें संत की उपाधि प्रदान की। साल 1979 में मानवता की सेवा में टेरेसा के उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। टेरेसा ने इस पुरस्कार के साथ मिले 1 करोड़ से अधिक रूपये को भी दान कर दिया था। इसके अलावा उन्हें टेम्पटन प्राइज, ऑर्डर ऑफ मेरिट और पद्म श्री से नवाजा गया। साल 1980 में भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से उन्हें सम्मानित किया।
मदर टेरेसा पर लगने वाले आरोप
प्रशंसकों की तरह मदर टेरेसा के आलोचक भी कम नहीं थे। उनके साथ काम कर चुके कुछ लोगों ने उनपर और उनकी संस्था पर कई गभीर आरोप लगाए हैं। आज भी देश में मदर टेरेसा को लेकर एक पक्ष खासा आक्रमक रहता है। मदर टेरेसा के कोलकाता स्थित सेवाघर में काम कर चुके ब्रिटिश भारतीय लेखक डॉ अरूप चटर्जी ने उनपर एक किताब लिखी - मदर टेरेसा : दि अनटोल्ड स्टोरी'। इस किताब में उन्होंने टेरेसा की जमकर आलोचना की। उन्होंने कहा कि सेवाघर में इलाज के लिए सेहतमंद तकीकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। उन्होंने संस्था को मिलने वाले डोनेशन में भी गड़बड़ी के आरोप लगाए थे।
वहीं, ब्रिटिश अमेरिकी लेखक और पत्रकार ने क्रिस्टोफर हिचेन्स ने भी अपनी किताब 'द मिशनरी पोजिशन: मदर टेरेसा इन थ्योरी एंड प्रैक्टिस' में उनपर मरीजों के धर्मांतरण का आरोप लगाया था। उन्होंने किताब में लिखा कि टेरेसा की संस्थाओं में मरनासन्न मरीजों से पूछा जाता था कि क्या वे सीधे स्वर्ग जाना चाहते हैं। मरीजों के हां को उनके धर्म परिवर्तन के लिए मंजूरी माना जाता था। यही वजह है कि आज देश में एक धड़ा उन्हें खलनायक के तौर पर देखता है।
टेरेसा ने इमरजेंसी का किया था समर्थन
मदर टेरेसा की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से काफी निकटता थी। इंदिरा गांधी ने जब देश पर इमरजेंसी थोपा था तो देशभर में विरोध हो रहा था। मगर तब टेरेसा ने इसके समर्थन में बयान दिया था। उन्होंने तब कहा था, लोग इससे खुश हैं, उनके पास अधिक रोजगार है, विरोध और स्ट्राइक भी कम हो रहे हैं। उनके इस बयान से उस दौरान उनके समर्थक भी दंग थे।
5 सितंबर 1997 को मदर टेरेसा ने कोलकाता में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके निधन के बावजूद उन्हें आलोचनाओं का शिकार होना पड़ रहा है। लेकिन आज तक उनपर लगे आरोपों की न तो जांच हुई और न ही पुष्टि।