मॉनसून सत्र में उपसभापति पद के लिए विपक्ष एक बार फिर दिखाएगा ताकत

Update:2018-06-30 13:35 IST

नई दिल्ली: राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन का कार्यकाल आज 30 जून को समाप्त होते ही इस पद के चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। अब सभी दलों की निगाह 18 जुलाई से शुरू होने वाले मॉनसून सत्र में होने वाले राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव पर लगी है।

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उपचुनावों में विपक्ष की एकता ने बीजेपी को धूल चटाई थी और अब इस चुनाव को भी 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले विपक्षी एकता के तौर पर देखा जा रहा है।

विपक्षी दलों को एकजुट होने का मिला था फायदा

कर्नाटक के नाटकीय घटनाक्रम ने विपक्षी दलों को एकजुट होने का मौका दिया था। वहीं, जम्मू कश्मीर में पीडीपी से दोस्ती टूटने की वजह से बीजेपी की राह थोड़ी कठिन हो गई है। पिछले 41 साल से उपसभापति का पद कांग्रेस के पास है लेकिन इस बार संख्या बल उसके साथ नहीं है।

विपक्ष एकजुट होकर सत्ता पक्ष को मात देने की स्थिति में है लेकिन इसके लिए कांग्रेस समेत 16 विपक्षी दलों को एकजुट होना होगा। इनमें गैर-यूपीए, गैर-एनडीए वाले बीजेडी और तृणमूल भी हैं लेकिन दो खेमों में बंटे विपक्ष को ऐसे प्रत्याशी की जरूरत होगी, जिस पर सभी सहमत हों।

बीजेपी के सामने है ये चुनौती

वहीं, बीजेपी के सामने एनडीए के घटक दलों को एकजुट रखने की चुनौती है। साथ ही उन दलों का समर्थन भी हासिल करना होगा, जो चार साल के दौरान एनडीए और यूपीए दोनों से दूरी बनाए हुए हैं।

मिली जानकारी के अनुसार तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुखेंदू शेखर राय उपसभापति पद के प्रत्याशी हो सकते हैं और कांग्रेस उनका समर्थन कर सकती है। कांग्रेस अगर टीएमसी प्रत्याशी का समर्थन करती है तो अपनी धुर विरोधी ममता बनर्जी के साथ बातचीत के रास्ते खोल सकती है।

टीआरएस और टीडीपी को नहीं होगी कोई परेशानी

विपक्षी दलों में सबसे बड़ा दल होने के बावजूद किसी गैर कांग्रेसी उम्मीदवार को समर्थन करने के पीछे कांग्रेस की मंशा ये हो सकती है कि ज्यादा से ज्यादा गैर बीजेपी दलों को एक साथ लाया जाए।

कांग्रेस के इस दांव से तेलंगाना और आंध्र में कांग्रेस के विरोधी टीआरएस और टीडीपी को भी कोई परेशानी नहीं होगी। दोनों दल पहले से ही इस मामले को लेकर टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी के संपर्क में हैं।

245 सदस्यीय राज्यसभा में कांग्रेस सदस्यों की संख्या 51 ही रह गई है। ऐसे में कांग्रेस के पास अपना उम्मीदवार जिता पाने के लिए पर्याप्त संख्याबल नहीं है इसलिए कांग्रेस की कोशिश किसी ऐसे विपक्षी उम्मीदवार का समर्थन करने की है जिसके साथ ज्यादा से ज्यादा गैर बीजेपी दलों को इकट्ठा किया जा सके।

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