शिमला। हिमाचल प्रदेश के मंडी संसदीय क्षेत्र में प्रदेश की राजनीति के के दो बड़े दिग्गज हैं - पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम। अब तक हुए लोकसभा चुनावों में वीरभद्र सिंह और सुखराम के परिवार ने आठ बार चुनाव जीत कर रिकार्ड बनाया है। रिकार्ड राजनीतिक दल बदल-बदल कर चुनाव लडऩे का भी रहा है। वर्ष 1971 से 2013 तक के उपचुनावों के बीच दोनों परिवारों ने बदल-बदल कर चुनाव लड़े हैं।
मंडी सीट पर राज परिवारों के बाद कांग्रेस से टिकट लेने में सुखराम परिवार सबसे आगे रहा है। कभी यहां सेन परिवार का बोलबाला हुआ करता था, तो कभी वीरभद्र सिंह परिवार का लेकिन सुखराम के खानदान ने इन दोनों परिवारों को मात दे दी। सुखराम ने 1984 में कांग्रेस का टिकट पाने में वीरभद्र परिवार को पीछे छोड़ दिया था। उस वर्ष कांग्रेस हाइकमान ने सुखराम को मैदान में उतारा और वह जीत भी गए। वर्ष 1989 के चुनाव में सुखराम भाजपा के महेश्वर सिंह से चुनाव हार गए लेकिन 1991 और 1996 के चुनाव में फिर से टिकट पाने में न सिर्फ कामयाब हुए बल्कि दोनों चुनाव भी जीते। यही वजह है कि आज सुखराम अपने पोते आश्रय शर्मा के राजनीतिक सफर में उस्ताद बन कर उभरे हैं।
राज परिवार का दबदबा
मंडी सीट पर अब तक 12 चुनावों में राजपरिवार को ही जीत मिली। पहली बार कांग्रेस से 1952 में राजकुमारी अमृत कौर जीतीं। उसके बाद 1957 से लेकर 1967 तक सेन परिवार का कब्जा रहा। फिर 1980 में वीरभद्र सिंह मंडी की सियासत में कूदे। १९८९ में भाजपा के महेश्वर सिंह ने कांग्रेस की जीत पर बे्रक लगाते हुए जीत दर्ज की थी। उसके बाद महेश्वर सिंह ने 1998 और 1999 के चुनाव में कांग्रेस को पराजित किया। वर्ष 2004, 2009 के आम चुनाव और 2013 के उप चुनाव में वीरभद्र और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह की राजनीति चमकती रही।
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टिकट दिलाने में दोनों दिग्गज बराबर
परिवार के सदस्यों को कांग्रेस से टिकट दिलाने में वीरभद्र सिंह और सुखराम दोनों बराबरी से कामयाब रहे हैं। अधिकांश बार वीरभद्र्र सिंह को ही कांग्रेस से चुनाव लडऩे का मौका मिला। तीन बार वह अपनी पत्नी को टिकट दिलाने में सफल हुए। इसी तरह सुखराम के परिवार से सुखराम स्वयं तीन बार चुनाव जीते हैं। इस बार अपने पोते आश्रय शर्मा को कांग्रेस से टिकट दिलाने में भी सफल हुए।
सुखराम के बेटे ने छोड़ी पार्टी
प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के साथ चल रही तनातनी के बीच राज्य के ऊर्जा मंत्री अनिल शर्मा ने पद से इस्तीफा दे दिया। असल में विवाद मंत्री के पिता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम और शर्मा के बेटे आश्रय शर्मा के कांग्रेस में शामिल होने के बाद शुरू हुआ। आश्रय मंडी से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। मुख्यमंत्री तथा ऊर्जा मंत्री शर्मा के बीच पिछले कुछ दिनों से वाकयुद्ध चल रहा था। मुख्यमंत्री कार्यालय को भेजे अपने इस्तीफे में अनिल शर्मा ने लिखा, 'मेरे भविष्य को लेकर निर्णय लेने में मुख्यमंत्री असमर्थ रहे। मेरे और मेरे परिवार के खिलाफ टिप्पणी के बाद मैंने पूरी बुद्धिमत्ता से इस्तीफा देने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को विकास संबंधी मुद्दों पर बात करनी चाहिए और शर्मा परिवार को अपने भविष्य के बारे में निर्णय करने को लेकर छोड़ देना चाहिए। अनिल शर्मा ने दो दिन पूर्व ही कहा था, 'मुख्यमंत्री कोई भी बन सकता है] लेकिन नेता कोई-कोई ही बन सकता है। इस पर सीएम ठाकुर ने पलटवार करते हुए कहा था, 'अनिल शर्मा को अपने मुख्यमंत्री पर ही भरोसा नहीं है तो उन्हें मंत्री बने रहने का भी अधिकार नहीं। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा था कि अनिल शर्मा अपने पिता पंडित सुखराम के साथ उनके पास आए थे। इस बीच, मुख्यमंत्री ने कहा कि अनिल शर्मा पर्दे के पीछे अपने बेटे के लिए काम कर रहे थे जो पार्टी को किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है।
यूं तो अनिल शर्मा के मंत्री पद से इस्तीफे को लेकर काफी दिनों से कयास लगाए जा रहे थे, हालांकि, अनिल शर्मा लगातार यही कह रहे थे कि वह मंत्री मंडल से इस्तीफा नहीं देंगे, लेकिन सोशल मीडिया में उनके नाम से जारी पोस्टर और साईगलू की जनसभा के बाद उनको त्यागपत्र देने का ठोस बहाना मिल गया। अनिल शर्मा इससे पहले वीरभद्र मंत्रीमंडल में दो बार मंत्री रह चुके हैं। वह 1993 में राजनीति में आए थे और पहली बार विधायक बनते ही उन्हें वीरभद्र मंत्री मंडल में युवा सेवाएं एवं खेल तथा वन राज्य मंत्री बनाया गया। इसके बाद भाजपा-हिविकां गठबंधन सरकार में वह राज्यसभा सांसद बने। 2007 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर विधायक और 2012 में कांग्रेस की सरकार में कांग्रेस में ग्रामीण विकास, पंचायतीराज एवं पशुपालन मंत्री बनें, लेकिन वीरभद्र सिंह और पंडित सुखराम में टकराव के बाद पिछले विधानसभा चुनावों में वह भाजपा के हो गए, जबकि अब हालात यह है कि उनके पिता और पुत्र कांग्रेस में जा चुके हैं और अनिल शर्मा के लिए भी अब यही सुखद रास्ता बचा था। अनिल शर्मा ने कुछ महीने एक बयान में कहा था कि वह पावर मिनिस्टर विद-आउट पावर हैं।