SC में सुनवाई: चुनाव आयोग और केंद्र के खिलाफ अवमानना कार्यवाही हो या नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उस याचिका पर सुनवाई की तारीख 14 मार्च को निर्धारित की थी, जिसके तहत शीर्ष न्यायालय के 25 सितंबर 2018 के फैसले के कथित उल्लंघन को लेकर केंद्र और चुनाव आयोग के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया गया है।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उस याचिका पर सुनवाई की तारीख 14 मार्च को निर्धारित की थी, जिसके तहत शीर्ष न्यायालय के 25 सितंबर 2018 के फैसले के कथित उल्लंघन को लेकर केंद्र और चुनाव आयोग के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया गया है।
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दरअसल, मामला ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने उक्त फैसले में सभी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से पहले चुनाव आयोग के समक्ष अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि बताने का निर्देश दिया था। जिसमें पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पिछले साल सितंबर में सर्वसम्मति से कहा था, कि सभी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से पहले चुनाव आयोग के समक्ष अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि की घोषणा करनी होगी। साथ ही, शीर्ष न्यायालय ने उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि के बारे में भी प्रिंट और लेक्ट्रानिक मीडिया के जरिए व्यापक रूप से प्रचार करने को कहा था।
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लेकिन चुनाव आयोग ने ना तो प्रमुख अखबारों और समाचार चैनलों की सूची प्रकाशित की, और ना ही उम्मीदवारों द्वारा आपराधिक पृष्ठभूमि की घोषणा किए जाने के समय को स्पष्ट किया। जिसके चलते उम्मीदवारों ने उन्हें कम लोकप्रिय अखबारों में प्रकाशित कराया और न्यूज चैनलों पर उस वक्त चलवाया जब उन्हें दर्शक नहीं देखा करते हैं।
गौरतलब है कि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर अवमानना याचिका सुनवाई के लिए एक उपयुक्त पीठ के समक्ष 14 मार्च की तारीख को सूचीबद्ध की है । पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना भी शामिल थे। पीठ ने निर्देश दिया कि याचिका की एक प्रति चुनाव आयोग के सचिव को भेजी जाए, ताकि उपयुक्त पीठ के समक्ष अगली सुनवाई के दौरान उसका (आयोग का) प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके।
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आरोप यह भी लगाया गया है कि राजनीतिक दलों ने विधानसभा चुनावों के दौरान ब्यौरा वेबसाइटों और अखबारों में प्रकाशित नहीं करवाया, ना ही उसे न्यूज चैनलों पर चलवाया। लेकिन चुनाव आयोग ने उनके खिलाफ कुछ नहीं किया। याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग ने चुनाव चिह्न आदेश एवं चुनाव आचार संहिता में संशोधन किए बगैर 10 मार्च को लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी। जबकि इस सिलसिले में शीर्ष न्यायालय के पिछले साल के फैसले का अनुपालन किया जाना जरूरी था।