वैक्सीन की खोज : इंतजार अगले साल का
“कोरोना वायरस से पूरी दुनिया जूझ रही है। ढाई लाख से ज्यादा लोगों की जान ले चुके इस वायरस से बचने का अब सबसे प्रभावी तरीका वैक्सीन ही होगा। कई अलग-अलग तरह की वैक्सीन के नाम भी सुनने में आए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने तो दावा भी कर दिया है कि इस साल के अंत तक अमेरिका कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार करने में कामयाब हो जाएगा। सच्चाई यही है कि अभी सफर लंबा है।“
लखनऊ: कोरोना वायरस को काबू में करने के लिए अब उम्मीद वैक्सीन पर ही टिकी हुई है। इस साल की शुरुआत से ही दवा कंपनियां और शोध संस्थान कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में लगे हुए हैं। दुनियाभर में वैक्सीन बनाने के कम से कम 115 प्रोजेक्ट चल रहे हैं। फिलहाल तीन तरह की वैक्सीन बनाने पर काम चल रहा है। इनमें लाइव वैक्सीन, इनएक्टिवेटेड वैक्सीन और डीएनए अथवा आरएनए वैक्सीन (जीन बेस्ड वैक्सीन) बनाने की कोशिश चल रही हैं।
करोड़ों डोज़ की होगी जरूरत
हर किसी के मन में यही सवाल है कि आखिर वैक्सीन बनकर तैयार कब होगी? चुनौती ये भी है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार होने के बाद इसकी करोड़ों डोज की एक साथ जरूरत होगी। इस मांग को पूरा करने के लिए करोड़ों की संख्या में ही इस वैक्सीन का उत्पादन किया जाएगा।
वैक्सीन बनाने की लंबी प्रक्रिया
वैक्सीन तैयार हो जाना ही काफी नहीं है। सबसे पहले किसी भी वैक्सीन के प्रयोगशाला में टेस्ट होते हैं फिर इनको जानवरों पर टेस्ट किया जाता है, इसके बाद अलग-अलग चरणों में इनका परीक्षण इंसानों पर किया जाता है। फिर अध्ययन करते हैं कि क्या ये सुरक्षित हैं, इनसे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी है और क्या ये प्रायोगिक रूप से काम कर रही हैं? जब ये सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं तो इन्हें बनाने की परेशानियां सामने आती हैं। पूरी दुनिया के लिए वैक्सीन उपलब्ध करवाना एक बड़ी चुनौती है। फिलहाल दुनिया की किसी एक कंपनी के पास इतनी क्षमता नहीं है कि वह सबको वैक्सीन उपलब्ध करवा दे।
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हर कंपनी कर रही कोशिश
दवाई कंपनियां अपनी तैयारी में कोई कमी नहीं रखना चाह रही हैं। इसलिए जिन वैक्सीन का ट्रायल शुरू हो रहा है वो उन्हें बड़े पैमाने पर बनाने की तैयारी भी कर रही हैं। हर कंपनी हर संभावित वैक्सीन के लिए अपनी क्षमता बढ़ा रही है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि कोई भी वैक्सीन विकसित होकर सारे चरणों को सफलतापूर्वक पार करने के बाद 2021 तक ही दुनिया के लिए उपलब्ध हो पाएगी।
क्या फर्क है वैक्सीनों में?
- कोई भी वायरस जिंदा नहीं होता है। वो परजीवी होता है यानी दूसरे के ऊपर जिंदा रहने वाला। ऐसे में कोई वायरस जब इंसानी शरीर में प्रवेश कर जाता है तब जिंदा हो जाता है और अपनी संख्या तेजी से बढ़ाता है। ये कोशिकाओं को खत्म करने लगते हैं जिससे शरीर को नुकसान पहुंचता है।
- किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए शरीर में रोग प्रतिरोधक तंत्र होता है। जब भी कोई बाह्य वायरस शरीर में प्रवेश करता है तो ये तंत्र सक्रिय होकर उस वायरस का मुकाबला करने वाले एंटी बॉडी शरीर में पैदा करता है। ये एंटी बॉडी उस वायरस से मुकाबला कर उसके असर को खत्म कर देते हैं।
किस किस तरह की वैक्सीन
वैक्सीन का पूरा खेल एंटीबॉडी का है जो शरीर स्वयं बनाता है। लेकिन शरीर को ऐसा करने के लिए एक ‘ट्रिगर’ की जरूरत होती है जो काम वैक्सीन करती है।
लाइव वैक्सीन
लाइव वैक्सीन की शुरुआत एक वायरस से होती है लेकिन ये वायरस हानिकारक नहीं होते। इनसे बीमारियां नहीं होती हैं लेकिन ये शरीर की कोशिकाओं के साथ अपनी संख्या को बढ़ाते हैं। इससे शरीर का रोग प्रतिरोधक तंत्र सक्रिय हो जाता है। इस तरह की वैक्सीन में बीमारी वाले वायरस से मिलते जुलते जेनिटिक कोड और उस तरह की प्रोटीन वाले वायरस होते हैं जो शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाते। जब किसी व्यक्ति को इस तरह की वैक्सीन दी जाती है तो इन 'अच्छे' वायरसों के चलते बुरे वायरसों से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाती है। ऐसे में जब बुरा वायरस शरीर में प्रवेश करता है तो शरीर के प्रतिरोधक तंत्र के कारण वह कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाता। ऐसी वैक्सीन को वेक्टर वैक्सीन भी कहा जाता है। इस तरह की वैक्सीन चेचक में काम आती है। इबोला की सबसे पहले बनी वैक्सीन भी वेक्टर वैक्सीन है। टीबी की बीसीजी वैक्सीन भी इसकी तरह की होती है।
इनएक्टिवेटेड वैक्सीन
इस तरह की वैक्सीन में कई वायरल प्रोटीन और इनएक्टिवेटेड या मृत वायरस होते हैं। बीमार करने वाले वायरसों को पैथोजन या रोगजनक कहा जाता है। लेकिन इनएक्टिवेटेड वैक्सीन के वायरस रोगजनक शरीर में जाकर अपनी संख्या नहीं बढ़ा सकते लेकिन शरीर इनको बाहरी आक्रमण ही मानता है और इसके विरुद्ध शरीर में एंटीबॉडी विकसित होने लगते हैं। इनएक्टिवेटेड वायरस से बीमारी का कोई खतरा नहीं होता। सो शरीर में विकसित हुए एंटीबॉडी में असल वायरस आने पर भी बीमारी नहीं फैलती। ये एक बहुत ही भरोसेमंद तरीका है। बड़े पैमाने पर फैली कई बीमारियों को काबू करने के लिए इस तरीके को अपनाया गया है। इन्फ्लुएंजा, पोलियो, काली खांसी, हेपेटाइटिस बी और टिटनेस से बचने के लिए इस तरीके का उपयोग होता है।
जीन आधारित वैक्सीन
इनएक्टिवेटेड वैक्सीन की तुलना में जीन आधारित वैक्सीन का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इनका उत्पादन तेजी से किया जा सकता है। कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार होने के बाद इसकी करोड़ों डोज की एक साथ जरूरत होगी। जीन आधारित वैक्सीन इस मांग को पूरा कर सकती है। ऐसी वैक्सीन में कोरोना वायरस के डीएनए या एम-आरएनए की पूरी जेनेटिक सरंचना मौजूद होगी। इन पैथोजन में से जेनेटिक जानकारी की महत्वपूर्ण संरचनाएं नैनोपार्टिकल्स में पैक कर कोशिकाओं तक पहुंचाई जाती हैं। ये शरीर के लिए नुकसानदायक नहीं होती और जब ये जेनेटिक जानकारी कोशिकाओं को मिलती हैं तो वह शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र को सक्रिय कर देती हैं जिससे बीमारी को खत्म किया जाता है।
धन की जरूरत
दुनियाभर में वैक्सीन बनाने में खर्च हो रही रकम और एक संभावित वैक्सीन बन जाने पर उसके बड़े स्तर पर उत्पादन के लिए जरूरी धनराशि को इकट्ठा करने के लिए अलग-अलग अभियान चल रहे हैं। यूरोपीय संघ ने इस काम के लिए डोनर्स कॉन्फ्रेंस कर 7.4 अरब यूरो इकट्ठा किए हैं। लेकिन दुनिया भर में वैक्सीन को उपलब्ध कराने के लिए और धन की जरूरत होगी। इबोला के बाद गरीब देशों को ऐसी किसी और महामारी से बचाने के लिए विश्व आर्थिक फोरम ने 2016 में कॉइलेशन ऑफ एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशन (सेपी) नाम की संस्था बनाई थी। इसका काम ऐसी महामारियों से लड़ने के लिए शोध करना है।
भारत और नॉर्वे की सरकार ने भी बिल और मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन, विश्व आर्थिक फोरम और ब्रिटिश वेकलम ट्रस्ट के साथ वैक्सीन निर्माण के लिए हाथ मिलाया है। वैक्सीन बनाने के लिए कई देशों ने अंतरराष्ट्रीय कोष के गठन में हिस्सेदारी की है। इनमें जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, इथियोपिया, जापान, सऊदी अरब, नीदरलैंड्स और स्विटजरलैंड भी शामिल हैं। सेपी भी आठ अलग-अलग वैक्सीन बनाने की कोशिश कर रही कंपनियों की सहायता कर रहा है।
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ट्रंप का बड़ा दावा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि इस साल के अंत तक अमेरिका कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार करने में कामयाब हो जाएगा। उन्होंने कहा है कि इस वैक्सीन को बनाने की कोशिश में पूरी दुनिया के शीर्ष वैज्ञानिक और चिकित्साकर्मी लगे हुए हैं और यदि कोई दूसरा देश अमेरिकी शोधकर्ताओं और रिसर्च को पीछे छोड़ देता है तो मुझे खुशी होगी। उन्होंने कहा कि मुझे इस बात की चिंता नहीं है कि वैक्सीन कौन बनाता है। मुझे सिर्फ इस महामारी से लड़ने के लिए एक वैक्सीन की चाहत है जो प्रभावी तरीके से काम करती हो।
ट्रायल में लगता है कुछ समय
उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य है कि हम अभी तक टेस्टिंग के बहुत करीब नहीं पहुंचे हैं क्योंकि जब ट्रायल शुरू होता है तो इसमें कुछ समय लगता है। लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि हम इसे जल्द ही पूरा कर लेंगे। ट्रंप ने कहा कि अमेरिका के वैज्ञानिकों को पता है कि उन्हें क्या और कैसे करना है।
चीन ने की है भारी लापरवाही
ट्रंप इस वायरस के संक्रमण के लिए शुरू से ही चीन पर हमला बोलते रहे हैं। उन्होंने हाल में दावा किया था कि दुनिया भर की अर्थव्यवस्था को तबाह करने वाले कोरोना वायरस की उत्पत्ति चीन के वुहान शहर की एक लैब से ही हुई है। उन्होंने यह भी दावा किया था कि मेरे पास इसके सबूत भी हैं और समय आने पर इस बात का खुलासा किया जाएगा। अभी अमेरिका इस बात की गहराई से जांच पड़ताल में जुटा है और जल्दी ही सबकुछ खुलकर सामने आ जाएगा।
भारत की 3 कंपनियों ने तैयार की वैक्सीन
भारत की तीन बड़ी दवा निर्माता कंपनियों ने कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार कर ली हैं जिनको क्लीनिकल ट्रायल करने की स्वीकृति भी मिल गई है। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया डॉ. वीजी सोमानी ने बताया कि इन सभी कंपनियों को कहा गया है कि वैक्सीन को फास्टट्रैक के तहत बनाया जाए ताकि जल्द से जल्द कोरोना वायरस से पीड़ित लोगों को बचाया जा सके। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि ग्लेनमार्क, केडिला हेल्थकेयर और सीरम इंस्टिट्युट ऑफ इंडिया ने कोरोना वायरस से लड़ने वाले वैक्सीन तैयार कर लिए हैं। टीके शुरूआती शोध में ये कोरोना वायरस के खिलाफ बेहद असरदार मिले हैं। अब कंपनियों को कहा गया है कि भारत में अस्पतालों की निशानदेही कर इन टीकों को मरीजों पर प्रयोग करके देखें।
इजरायल का भी दावा
इजरायल ने दावा किया है कि देश के डिफेंस बायोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ने कोरोना वायरस का टीका बना लिया है। रक्षा मंत्री बेन्नेट ने बताया कि कोरोना वायरस वैक्सीन के विकास का चरण अब पूरा हो गया है और शोधकर्ता इसके पेटेंट और व्यापक पैमाने पर उत्पादन के लिए तैयारी कर रहे हैं। इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू के कार्यालय के अंतर्गत चलने वाले बेहद गोपनीय इजरायल इंस्टीट्यूट फॉर बायोलॉजिकल रीसर्च के दौरे के बाद बेन्नेट ने यह ऐलान किया। रक्षा मंत्री के मुताबिक यह एंटीबॉडी मोनोक्लोनल तरीके से कोरोना वायरस पर हमला करती है। रक्षा मंत्री ने कहा, डिफेंस इंस्टीट्यूट अब इस टीके को पेटेंट कराने की प्रक्रिया में है। इसके अगले चरण में शोधकर्ता अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से व्यवसायिक स्तर पर उत्पादन के लिए संपर्क करेंगे।