नई दिल्ली: आरएलडी सुप्रीमो अजित सिंह का समय आज-कल कुछ ठीक नहीं चल रहा है। सूत्रों की मानें तो, चौधरी अजित सिंह पिछले हफ्ते 10 जनपथ सोनिया गांधी से मिलने गए थे। वे राज्यसभा सीट की जुगत में हैं लेकिन वहां भी बात नहीं बन पाई। नाखुश चौधरी ने मुलाकात के बाद मीडिया में कोई बयान नहीं दिया।
बीजेपी की चाल से अजित बेहाल
अजित, सोनिया से मिले और सोचा कि अब उनकी मोल-तोल की ताकत बढ़ जाएगी। लेकिन सोनिया से मुलाकात की भनक लगते ही बीजेपी ने एक कदम आगे बढ़ा दिया। बीजेपी ने साफ किया कि अजित सिंह बीजेपी ज्वाइन करें, उनकी पार्टी से समझौते पर वो राजी नहीं। वैसे भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बीजेपी के संजीव बाल्यान जैसे नेता अजित को साथ लेने का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि जाट हिन्दू के तौर पर बीजेपी के साथ हैं ही और अकेले होने पर चौधरी के पास मुस्लिम जाट समीकरण रहेगा नहीं। ऐसे में चौधरी अपने ही बुने जाल में उलझते दिख रहे हैं।
दर-दर भटकने को मजबूर
दरअसल, लोकसभा चुनाव में चौधरी की पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। खुद चौधरी और उनके बेटे जयंत भी चुनाव हार गए। अपने पिता चौधरी चरण सिंह के जमाने से लुटियन जोन में मिली कोठी भी खाली करनी पड़ गई। संसद की राजनीति से दूर हो गए। अब विधानसभा में इतनी सीटें नहीं कि राज्यसभा की एक सीट भी मिल सके, इसीलिए चौधरी दर-दर भटक रहे हैं।
बेटे के भविष्य को लेकर चिंता
चौधरी की दूसरी मुश्किल है बेटे जयंत चौधरी का भविष्य। चौधरी के सलाहकारों का मानना है कि आज भले ही पश्चिमी यूपी में पार्टी के पक्ष में दंगों के चलते माहौल न हो, लेकिन पार्टी का बेस वोट जाट और मुस्लिम है। वही आने वाले वक्त में पार्टी को दोबारा खड़ा करेगा। ऐसे में भविष्य के मद्देनजर पार्टी को बीजेपी के साथ नहीं जाना चाहिए।
सपा से भी नहीं बनी बात
सपा को चौधरी अजित सिंह ज्यादा मुफीद नहीं लगे। क्योंकि उसे लगता है कि आज के वक्त में जाट-मुस्लिम समीकरण चौधरी के हक में नहीं है। ऐसे में मुस्लिम सपा के साथ रह सकता है, लेकिन चौधरी के साथ जाने पर मुस्लिम खिसक सकता है। इसीलिए उसने अपनी सभी राज्यसभा सीटों का ऐलान कर दिया।
बसपा के समीकरण में अजित फिट नहीं
वहीं बसपा का भी मानना है कि, चौधरी के साथ जाने की बजाय वो दलित-मुस्लिम समीकरण का फायदा ले सकती है। कुल मिलाकर चौधरी साहब फिलहाल तो मझधार में खड़े हैं। लेकिन किसी भी वक्त करवट बदलने में माहिर चौधरी की अगली करवट किस तरफ होगी, ये शायद खुद चौधरी भी नहीं जानते, क्योंकि इस बार वो अपने सबसे बुरे सियासी वक्त से गुजर रहे हैं.