VIDEO: ये पुल मांगता है जिंदगी, जान हथेली पर लेकर इसे पार करते हैं लोग

Update:2016-02-27 10:38 IST

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बागपत: राजधानी दिल्ली से महज 35 किलोमीटर दूर बागपत में एक ऐसा पुल है कि जिसे लोग मौत का पुल कहते हैं। अगर जरा सी चूक हुई तो समझो जिंदगी खत्म। रहतना गांव के लोगों की जिंदगी और मौत का फैसला ये पुल करता है। इस पुल से गुजरना इस इलाके के लोगों की मजबूरी है, जिसकी वजह से कई लोगों की जान तक जा चुकी है। यहां पर दो बल्लियों के सहारे गांव के लोगों ने जुगाड़ करके जैसे-तैसे पुल बनाया। ये पुल कृष्णा नदी के ऊपर से होकर गुजरता है। ये नदी काफी गहरी है, इसलिए अगर इस जुगाड़ के पुल से गिरे तो मौत पक्की है।

इस पुल से कोई पैदल गुजरता है तो कोई कंधे पर साइकिल उठाकर। इस पुल से गुजरकर रोज अपने खेत जाने वाले सतबीर बताते हैं,'' मेरा खेत पुल के उस पार है। रोज इसी तरह जाना पड़ता है। परिवार का पेट पालने के लिए जिंदगी को मौत की गोद में रखना ही पड़ता है। साइकिल को रोज अपने कंधे पर उठाकर ये पुल पार करता हूं। जैसे ही पुल से दूसरे किनारे के पास पहुंचता हूं, पहले साइकिल आगे की तरफ फेंकता हूं और फिर खुद धीरे से नीचे उतरता हूं। कई बार नदी में गिरते-गिरते भी बचा हूं।''

पुल पार करने के लिए लगती है लाइन

मौत के इस पुल को एक दो नहीं, बल्कि कई किसान पार करते हैं। कोई हाथ में फावड़ा तो कोई साइकिल लेकर अपनी बारी आने का इंतजार करता है। इस पुल को पार करने वाले कई किसान तो सालों से ये आस लगाए बैठे हैं कि कभी तो इस जुगाड़ के पुल की जगह असली पुल बनेगा। कभी तो जिंदगी को जान-बूझकर मौत के हवाले नहीं करना पड़ेगा। किसान यशपाल ने बताया कि बचपन से ही इस पुल को पार करके अपनी जिंदगी दांव पर लगा रहे हैं। परिवार के बड़े-बुुजुर्ग चले गए, लेकिन यहां पुल आज तक नहीं बन पाया है।

नीचे की स्लाइड्स में देखिए, कैसे जान हथेली पर लेकर पुल पार करते हैं लोग...

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बच्चे भी दांव पर लगाते हैं जान

सिर्फ बड़े ही नहीं, बच्चे भी इस खतरनाक पुल को पार करके स्कूल जाते हैं। करीब आधा दर्जन बच्चे इस पुल को बैठकर पार करते हैं, क्योंकि वो सपनों को पूरा करना चाहते हैं। पानी के ऊपर जंगली घास होने की वजह से पुल के नीचे ये अंदाजा लगाना मुश्किल है कि आखिर यहां पानी कितना गहरा होगा। इस पुल से गिरकर अब तक कई बच्चे अपनी जान गंवा चुके हैं। जब तक बच्चे घर नहीं लौट आते तब तक परिवार के लोगों को डर सताता रहता है।

क्यों पुल करते हैं पार ?

रहतना गांव के ज्यादातर किसानों के खेत गांव से दूसरी तरफ हैं। वहां तक जल्दी जाने का यही जुगाड़ है। अगर गांव के किसानों को कुछ सामान खरीदने के लिए बाजार जाना पड़ता है तो उन्हें 15 से 20 किलोमीटर दूर का सफर तय करना पड़ता है और वापिस लौटने में भी उतना ही समय लगता है। यानी एक दिन में करीब 30 किलोमीटर का चलना पड़ता है। वक्त बचाने के लिए लोग अपनी जिंदगी ही दांव पर लगा देते हैं। अकेले रहतना ही नहीं बल्कि आस-पास के आधा दर्जन गांव इससे प्रभावित होते हैं। दादरी, बिनौली, रहतना, रंछाड़, दाह, पुसार गांव के लोगों को मजबूरी में यहीं से आना-जाना पड़ता है। हालांकि इन गांवों में रास्ते दूसरे छोर पर भी हैं, लेकिन वो काफी लंबे हैं।

 

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