वाराणसी: वैसे तो नए साल का जश्न पूरी दुनिया में एक जनवरी को मनाया जाता है। लोग नए साल पर एक दूसरे से गले मिल कर आने वाले साल का स्वागत करते हैं। रात भर डीजे बजाकर लोग शैंपेन पीकर नाचते-गाते हैं। लेकिन हिंदू परंपरा के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी 8 अप्रैल से विक्रमी संवत 2073 का शुभारम्भ होगा और हिंदी नववर्ष की शुरुआत।
हिंदू परंपरा में इस दिन को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। नवसंवत्सर शुभारम्भ के इस मौके को काशी के लोगों ने विदेशी मेहमानों के साथ मनाया। उनको चंदन का तिलक लगाकर तुलसी का पौधा दिया।
अंग्रेजों ने लगाए भारत माता की जय के जयकारे
-नव वर्ष के इस शुभ मौके पर घाट पर घूम रहे विदेशी मेहमानों को तुलसी के पौधे दिये गए।
-इसके माध्यम से प्रकृति को संरक्षित रखने का संदेश दिया।
-विदेशी मेहमानों ने लोगों के सोंच की तारीफ की।
-साथ में अंग्रेजों ने नए साल की बधाई दी।
-इस अवसर पर अंग्रेजों ने स्थानीय लोगों के साथ भारत माता की जय के नारे भी लगाए।
सादगी से होता है नए साल का स्वागत
-स्थानीय निवासी अनूप जायसवाल ने बताया कि हमारे हिंदू रीति रिवाज में नए साल का जश्न पश्चिमी देशों के अंदाज में नहीं मनाया जाता है।
-यहां बेहद सादगी और पर्यावरण संरक्षण के संकल्प के साथ नए साल का स्वागत किया जाता है।