गोमती रिवर फ्रंट की बुनियाद में ही भरा है भ्रष्टाचार का मसाला, जानिए क्या है गड़बड़झाला ?
पर्यावरणविद कहते हैं कि गोमती नदी में मुख्यत: विभिन्न भूमिगत जल स्रोतों से पानी रिचार्ज होता रहता है और राजधानी की एक बड़ी आबादी भी पीने योग्य जल के लिए इसी पर निर्भर है। ऐसे में नदी के 'वाटर-वे' में पक्के निर्माण से भूगर्भ जल के सोतों की राह बंद हो सकती है और नदी की इकोलॉजी प्रभावित होगी।
राजकुमार उपाध्याय
लखनऊ: गोमती रिवर फ्रंट परियोजना की बुनियाद ही अनियमितताओं पर खड़ी है। रिवर बेड में छेड़छाड़ से पहले जरूरी वैधानिक स्वीकृतियों को दरकिनार कर दिया गया। गंगा बाढ नियंत्रण आयोग (जीएफसीसी) ऐसी ही एक एजेंसी है, तटबंधों से जुड़े 12.5 करोड़ रूपये से अधिक के प्रोजेक्ट पर उसकी अनुमति जरूरी होती है। रिवर फ्रंट के मामले में आयोग से तकनीकी स्वीकृति नहीं ली गई।
परियोजना की वित्तीय गड़बड़ियों पर पहले से सवाल उठते रहे हैं। अधिग्रहीत की गई जमीन के मुआवजे पर भी हंगामा हुआ। मामला कोर्ट की दहलीज तक भी पहुंचा है। पर आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि जमीन के नाम पर अभी तक कोई भुगतान नहीं हुआ है।
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तकनीकी मंजूरी की उपेक्षा
वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक पर्यावरण में इंजीनियरिंग कर चुके पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी उस समय सिंचाई विभाग का ध्यान इस तरफ खींचा था और पत्र लिखकर साफ कहा था कि रिवर फ्रंट से जुड़े पर्यावरणीय व अन्य वैधानिक अनापत्ति प्रमाण पत्र (क्लीयरेंस) लेना सुनिश्चित किया जाय। पर सत्ता के नशे में चूर विभागीय अफसरों ने इसका भी ख्याल नहीं रखा।
जीएफसीसी पटना के सदस्य अरूण कुमार सिन्हा का कहना है कि 12.5 करोड़ से ज्यादा बजट की परियोजनाओं का अनुमोदन आयोग से लेना जरूरी होता है। उनका कहना है कि गोमती रिवर फ्रंट से जुड़ी कोई परियोजना उनके पास नहीं आई है। विभागीय जानकार कहते हैं कि आयोग किसी भी तटबंध से जुड़ी परियोजनाओं का अध्ययन करता है। कम से कम पिछले 50 वर्षों तक का 'वाटर फ्लो' देखा जाता है। उसके बाद किसी परियोजना को तकनीकी मंजूरी दी जाती है। पर गोमती रिवर फ्रंट के मामले में ऐसा नहीं हो सका है।
सरकार को पढ़ाई पट्टी
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक तत्कालीन अधिकारियों ने परियोजना की जीएफसीसी से अनुमति लेना जरूरी नहीं समझा। उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि यह बाढ़ बचाव कार्य नहीं है। इसलिए इसे आयोग के पास भेजा जाना जरूरी नहीं है। एनजीटी से भी अनुमति लेने की जरूरत नहीं बताई गई थी। यह भी तर्क दिया गया कि पूर्व में आयोग से अनुमति के बाद बांध बनाया गया था।
जानकारों का कहना है कि बाढ के समय नदी का जलस्तर 10-12 मीटर बढ़ता देखा गया है। इस दौरान पानी तटबंध के दोनों किनारों को पार कर 250 से 450 मीटर चौड़ाई तक फैल जाता है। अब जब नदी गहरी कर दी गई है और उसके दोनों किनारों पर डायफ्राम बना दिया गया है। किनारों पर मिटटी भर दी गई है। ऐसे में हाई फ्लड लेवल को देखते हुए परियोजना का अनुमोदन जीएफसीसी के कराया जाना चाहिए था।
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'वाटर-वे' में पक्के निर्माण से भूगर्भ जल की राह में रोड़े
पर्यावरणविद कहते हैं कि गोमती नदी में मुख्यत: विभिन्न भूमिगत जल स्रोतों से पानी रिचार्ज होता रहता है और राजधानी की एक बड़ी आबादी भी पीने योग्य जल के लिए इसी पर निर्भर है। ऐसे में नदी के 'वाटर-वे' में पक्के निर्माण से भूगर्भ जल के सोतों की राह बंद हो सकती है और नदी की इकोलॉजी प्रभावित होगी।
इंजीनियरों ने इसका भी दिया जवाब
वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक परियोजना के निर्माण के समय ही यह बात उठी थी कि वाटर-वे में किसी पक्के निर्माण से भूगर्भ जल स्रोत प्रभावित होंगे। तब तत्कालीन इंजीनियरों ने तर्क दिया कि डायफ्राम वाल में जगह जगह सूराख कर दिए जाएंगे। ताकि यदि भूगर्भ जल या बरसात का पानी आए तो उन्हीं सूराख के जरिए वह नदी में पहुंच सके। फिर इसको मंजूरी दे दी गई।
ब्लैकलिस्टेड कम्पनी से कराया काम
रिवर फ्रंट योजना में काम कराने वाली कंपनी दूसरे प्रदेशों में ब्लैकलिस्टेड है। इसको लेकर सिंचाई विभाग के अंदरखाने ही आवाज उठी। पर उसको दबा दिया गया। सूत्रों के अनुसार मेट्रो के सलाहकार ई. श्रीधरन ने भी एक बार इस कम्पनी पर सवाल उठाए थे। जिम्मेदारों पर उसका भी कोई असर नहीं हुआ।
पीएमजी से नहीं होती थी मॉनीटरिंग
अखिलेश सरकार में अहम योजनाओं की नियमित मॉनीटरिंग के लिए प्रोजेक्ट मॉनीटरिंग ग्रुप (पीएमजी) का गठन किया गया था। यह ग्रुप दो दर्जन से अधिक परियोजनाओं की निगरानी करता था। इसकी नियमित समीक्षा बैठकें होती थीं। पर गोमती रिवर फ्रंट इसमें शामिल नहीं था।
सिंचाई विभाग की जिम्मेदारी तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के चाचा व मंत्री शिवपाल सिंह के पास थी।
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95 फीसदी धनराशि खर्च, 60 प्रतिशत काम भी नहीं हुआ पूरा
परियोजना के लिए आवंटित धनराशि 1513 करोड़ रुपए का 95 प्रतिशत यानि 1435 करोड़ रुपए अब तक खर्च किया जा चुका है, जबकि इसका 60 प्रतिशत कार्य भी अभी तक पूरा नहीं हुआ है। अधिकारियों ने परियोजना की पुनरीक्षित लागत 2448 करोड़ रुपए भी प्रस्तुत की है।
मिट्टी का कितना काम हो रहा जिम्मेदार नहीं दे पा रहे जवाब
परियोजना में गोमती नदी के किनारे 8.1 किमी की लम्बाई में सौंदर्यीकरण का काम चल रहा है। नदी के किनारों की तरफ करीब 16 मीटर लम्बी डायफ्राम खड़ी की गई है। कंक्रीट की यह दीवार 11 मीटर बेड के नीचे है और करीब 5 मीटर उपर की तरफ है। अधिकारियों का कहना है कि नदी में दो से तीन मीटर सिल्ट की खुदाई की गई है। हाल के दिनों में देखा गया कि नदी के दोनों तरफ मिटटी के टीले ही टीले थे। पर उस मिट्टी का क्या हुआ। मिट्टी का कितनी मात्रा में काम हुआ। इसके मद में कितना भुगतान किया गया है, इसकी किसी को कोई जानकारी नहीं है। अधिकारियों का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी रिवर फ्रंट निरीक्षण के दौरान यह सवाल पूछे थे, पर अफसरों के पास इसका कोई जवाब नहीं था।
किनारों पर भरी गई मिट्टी
शारदा सहायक के तत्कालीन मुख्य अभियंता एसएन शर्मा का कहना है कि अब उन्हें वहां से हटे तीन से चार महीने हो गए हैं। कितनी मिट्टी का काम हुआ और कितनी मिट्टी हटाई गयी। यह सब रिकॉर्ड में होगा। मुझे अभी याद नहीं है। उनका कहना है कि नदी से जो मिट्टी निकाली गई। वह किनारों पर लाकर भरी गई।
लोकल और ट्रांसपोर्टेड मिट्टी के नाम पर हुआ खेल
लोकल और ट्रांसपोर्टेड मिट्टी के काम के नाम पर जमकर खेल हुआ। विभागीय अभियंताओं के मुताबिक जब मिट्टी एक सीमित दूरी से लायी जाती है तो उसे 'लोकल' मिट्टी का काम कहते हैं पर जब इसकी दूरी बढ़ती है तो वह 'ट्रांसपोर्टेड' मिट्टी के काम की श्रेणी में आता है। इंजीनियरों का कहना है कि इसी की आड़ में घपलों का खेल खेला गया। यही कारण है कि मिट्टी के काम का कोई लेखा जोखा सिंचाई विभाग के अफसरों के पास नहीं है।
रिवर फ्रंट डेवलपमेंट के काम
लखनऊ में गोमती नदी के दोनों तटों पर हार्डिंग पुल से लामार्टिनियर स्कूल तक सौंदर्यीकरण का काम कराया जाना है। यहां 300 कारों की पार्किंग, प्लाजा, मनोरंजन का स्थान, म्यूजिकल फाउंटेन, एम्फी थियेटर, स्टेडियम, फ्लोटिंग फाउंटेन, रबर डैम, वाकिंग ट्रैक, साइकिल ट्रैक, जॉगिंग ट्रैक व ग्रीनरी का प्रावधान है। इसके अलावा नदी के दोनों किनारों पर बेंचेज लगानी हैं। तट के किनारे हाईमास्ट लाइट, स्ट्रीट लाइट व बोलार्ड लाइट लगेंगी। दो मंदिरों का नदी से बचाव का काम होना है। ओपन मार्केट, बच्चों के खेलने की जगह भी बनाई जा रही है। पुलिस चेक पोस्ट का निर्माण भी प्रस्तावित है।
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13 करोड़ की लगी हैं हाईमास्ट लाइटें
परियोजना के विदयुत कनेक्शन, बिजली बिल, सब स्टेशन व डीजी सेट के मद में अब तक 8.50 करोड़ रूपये खर्च हो चुके हैं। पर अब इसके लिए और 28 करोड़ की जरूरत बताई जा रही है। परियोजना के कई कामों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त धनराशि की मांग की गई है। रबर डैम के काम में अब तक 49.61 करोड़ खर्च हो चुके हैं। अब उसकी लागत बढकर 83.60 करोड़ हो गई है। पहले एम्फी थियेटर की लागत 5 करोड़ थी जो अब बढ़कर 9 करोड़ हो गई है। पहले वाटर बस सिर्फ 4.08 करोड़ की आनी थी। अब अभियंता इसके लिए अतिरिक्त चार करोड़ की जरूरत बता रहे हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि रिवर फ्रंट में अब तक 13 करोड़ रूपयों की हाई मास्ट लाइटें लग चुकी हैं। इसके अलावा विभाग 19 करोड़ की अतिरिक्त मांग कर रहा है। इसी तरह योजना में लगे म्यूजिकल फाउंटेन की कीमत 45 करोड़ रूपये है। इसके लिए भी 36 करोड़ की जरूरत बताई जा रही थी। पर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने अधिकारियों को इस पर पुन: विचार करने को कहा है।
लागत बढने के साथ इंजीनियरों की बढती है कमाई
जानकारों के मुताबिक परियोजनाओं की लागत बढने से इंजीनियरों की कमाई बढती है। अभियंता नियत समय पर परियोजना पूरी नहीं करते हैं और बाद में बढती महंगाई व अन्य चीजों का हवाला देकर बढी हुई लागत का प्रस्ताव आगे बढा देते हैं। अफसरों की मिलीभगत से इसे पास भी करा लिया जाता है। इस तरह जतना की गाढ़ी कमाई का धन सीधे भ्रष्टाचारियों की जेबों में चला जाता है।
रिवरबेड में निर्माण नियमों के खिलाफ
पर्यावरणीय नियमों के अनुसार रिवरबेड में पक्का निर्माण नियमों के खिलाफ है। इसके विपरीत गोमती नदी के दोनों तटों पर रिटेनिंग वाल बनाकर नदी को संकरा कर दिया गया है। सिंचाई विभाग ने भी 1989 में एक सर्कुलर जारी कर साफ किया था कि फ्लड लाइन में निर्माण नहीं किया जा सकता।
रूप सिंह यादव पर जमकर बरसी कृपा
लखनऊ खंड शारदा नहर लखनऊ के अधिशासी अभियंता रूप सिंह यादव पर सरकार की कृपा जमकर बरसी। सिंचाई विभाग में उनकी तूती बोलती थी। अधिशासी अभियंता के साथ उन्हें अपने खंड के अधीक्षण अभियंता का चार्ज भी दिया गया था। परियोजना उन्हीं के अधिकार क्षेत्र में रहे, इसके लिए उन्हें सिर्फ दोहरा चार्ज ही नहीं दिया गया, बल्कि गोमती रिवर फ्रंट से जुड़े काम उन्हीं के प्रशासनिक नियंत्रण में रहें, इसका पूरा इंतजाम किया गया।
इनकी योग्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने टुकड़ों में काफी काम कराए। ढेरों कामों को अधिशासी अभियंता के तौर पर प्रस्ताव आगे बढ़ाया और खुद ही अधीक्षण अभियंता के रूप में पास कर दिया। मानो विभाग में यादव सरीखे योग्य इंजीनियरों की कमी हो गई। जब वह बीते दिसम्बर में सेवानिवृत्त हो चुके हैं तो अब उनकी जगह चार्ज पाए नये अफसरों को कुछ सूझ ही नहीं रहा।
अभी नही हैं अभिलेख
लखनऊ खंड शारदा नहर लखनऊ के अधिशासी अभियंता सुरेन्द्र यादव का कहना है कि एक जनवरी को उन्होंने चार्ज लिया है। अभी उनके पास कोई अभिलेख नहीं है। मिट्टी के कामों के बारे में पूछे जाने पर कहा कि इस बारे में कोई सूचना भी अभी नहीं मांगी गई है। इसलिए अभी तक इसको तैयार नहीं किया गया है।
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घपले की शंका हो तो जांच होनी चाहिए
लखनऊ खंड शारदा नहर लखनऊ के पूर्व अधिशासी अभियंता रूप सिंह यादव का कहना है कि नदी के दोनों तरफ बैंक डेवलप किए गए थे। इसके लिए जितनी मिट्टी की आवश्यकता थी, उतनी मिट्टी नदी से निकाली गई। तय किया गया कि बाहर से लाने के बजाए नदी की मिट्टी का ही प्रयोग किया जाए। योजना में घपले-घोटाले को लेकर अगर कोई शंका हो तो इसकी जांच होनी चाहिए।
शहर में प्रवेश के बाद नदी का पानी होता है गंदा
गोमती नदी में प्रवाह की लगातार कमी हो रही है। सीतापुर बाईपास से शहीद पथ तक गोमती नदी में कुल 37 नाले गिरते हैं। गोमती के दायीं तरफ के नालों (सीस गोमती) से 660 एमएलडी और बायीं तरफ यानि ट्रांस गोमती की तरफ से आने वाले नालों से 513 एमएलडी गंदा पानी गोमती में गिरता है। नगर निगम और जल निगम सिर्फ 401 एमएलडी सीवेज के पानी का शोधन कर सकते हैं। इनकी भी हालत कितनी ठीक है, यह विवेचना का विषय है।
उधर शहर में प्रवेश करने के बाद नदी का पानी इतना गंदा हो जाता है कि जलीय जीव इसमें जीवित नहीं रह सकता। जबकि राजधानी में प्रवेश करने से पहले नदी के पानी में ऑक्सीजन 10 मिलीग्राम प्रति लीटर होती है।
पूर्व मंत्री और प्रमुख सचिव दीपक सिंघल ने विदेशों में जाकर देखे रिवर फ्रंट
पूर्व सिंचाई एवं जल संसाधन मंत्री व प्रमुख सचिव, सिंचाई दीपक सिंघल ने जापान का दौरा किया। टोक्यो और ओसाका जैसे शहरों में बने रिवर फ्रंट का अध्ययन किया। साथ ही विभिन्न देशों के रिवरफ्रंट के बारे में भी अध्ययन किया। इसके बाद सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग को गोमती नदी के तट पर एक विश्वस्तरीय रिवरफ्रंट बनाने के निर्देश दिए गए।
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कैबिनेट से पास कराया गया प्रोजेक्ट
उसके तुरंत बाद प्रोजेक्ट को दो महीने में तैयार कर कैबिनेट से पास भी करा लिया गया और बजट के तौर पर 656 करोड़ रूपये आवंटित कर दिए गए। इस तरह फरवरी 2014 में गोमती तटबंध परियोजना का खाका खींचा गया। मार्च 2014 में कुड़ियाघाट के पास नदी का पानी रोकने के लिए अस्थाई डैम बनाया गया। पांच जनवरी 2015 को बैराज का गेट खोलकर परियोजना की नींव रखी गई। फिर तलहटी से काम शुरू हुआ। मार्च 2015 में नदी के दोनों तरफ डायफ्राम बनाने के लिए गैमन इंडिया कंपनी से अनुबंध किया गया।
अभी भी अधूरे हैं यह काम
वर्ष 2014 में परियोजना की लागत 656 करोड़ थी जो 2016 तक पुनरीक्षित होकर 1513 करोड़ हो गई। इसके बावजूद अभी तक ढेरों काम अधूरे हैं। वर्तमान में सिंचाई विभाग ने इसकी पुनरीक्षित लागत 2448 करोड़ बताई है। देखा जाए तो रबर डैम का काम पूरा नहीं हो पाया है। वाटर वाल, लेजर लाइट, सीवेज ट्रंक लाइन, साइकिल ट्रैक, जॉगिंग ट्रैक और अंडरपास का काम अब तक अधूरा है। इसके अलावा स्टेडियम व अन्य संबंधित काम भी पूरे नहीं हो पाए हैं।
...तो अभी और बढेगी लागत
मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने परियोजना को ‘नमामी गंगे’ से जोड़ने के निर्देश दिए हैं। साथ ही दोनों तरफ बन रहे डाइफ्राम वॉल को कलाकोठी तक बढ़ाने को कहा है। इसके अलावा गंदे नालों को टैप करने के लिए दोनों तरफ बनाए जा रहे इंटरसेप्टिक ड्रेन का काम अधूरा छोड़ दिया गया है। अब चूंकि पहले से शेष कामों को पूरा करने के लिए विभाग ने अतिरिक्त धनराशि की मांग की है और योजना का विस्तार भी किया जाना है। ऐसे में एक बार फिर परियोजना की लागत बढ़नी तय मानी जा रही है।
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दूसरे मद में खर्च किया गया पैसा
विभागीय अधिकारियों के मुताबिक शुरूआत में परियोजना की लागत 656 करोड़ रूपये थी। पर मूल काम अधूरा रह गया क्योंकि उसकी जगह अन्य मदों पर पैसा खर्च कर दिया गया। यही कारण है कि परियोजना अभी तक अधूरी है। अब यह विवेचना का विषय है कि किस मद की धनराशि का किस मद में भुगतान किया गया।
गोमती रिवर फ्रंट के व्यय का विवरण मद लागत (करोड़ में) व्यय
डायाफ्रम वाल 462.86 601.93
इंटरसेप्टिंग ड्रेन 265.50 337.32
ड्रेजिंग 35.5697 35.57
जल उपलब्ध कराना 61.01 83.55
पैदल पुल 21 ....
निशातगंज पुल के पास
पैदल पुल 9.32 ....
मस्जिद के पास पैदल
पुल 9.32 ....
म्यूजिकल फाउंटेन
वाटर शो 45 45
गोमती बैराज व रेलवे
पुल पर इन्टरसेंप्टिंग
ड्रेन व अंडरपास 14.17 6.07
चार विदयुत कनेक्शन 4.88 8.50
पैसेंजर बोट 2.52 4.08
गांधी सेतु के आस
पास फाउंटेन 3.08 5.06
फ्लोटिंग फाउंटेन 0.99 ...
एसएस रेलिंग 12.40 12.40
डायाफ्राम वाल की
डिजाइन व ड्राइंग 1.23 1.23
100 केवीए डीजी सेट 0.12 ...
सेण्टेज चार्जेज 90.35 14. 42
भूमि अर्जन 72.81 ...
पुलों का इल्यूमिनेशन 13.04 13.04
तटों का सौंदयीकरण 300 180.83
तटों पर हाईमास्ट 10.28 13.20
रबर डैम 49.61 60.87
आनुषांगिक व्यय व
अन्य 8.1670 14.21
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सिंचाई विभाग का तर्क
परियोजना के पर्यावरणीय क्लीयरेंस के संबंध में प्रकरण एसईएसी (स्टेट लेवल इन्वायरनमेंट इम्पैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी) तीन सितम्बर 2016 की बैठक में प्रस्तुत किया गया था। समिति ने पाया कि परियोजना का बिल्ट अप एरिया 11865 वर्ग मीटर है जो कि 20 हजार वर्ग मीटर से कम है। अत: यह प्रकरण ईआईए (इनवायरनमेंटल इम्पैक्ट एसेसमेंट) नोटिफिकेशन 2006 की परिधि में नहीं आता है। आईआईटी रूड़की से पर्यावरण की वेटिंग कराई गई है।
अध्ययन के बाद 1:25 वर्ष फ्रीक्वेंसी की बाढ की स्थिति को देखते हुए डायाफ्राम वाल का प्रयोजन किया गया। जिससे नदी चैनलाइज होकर बह सके। 900 मीटर ड्रेन कई महीनों से कनेक्ट नहीं होने के कारण निर्माण की गई 32 किमी ड्रेन का उपयोग नहीं हो पा रहा है। हैदर कैनाल को छोड़कर शेष 28 नालों का पानी गोमती में गिर रहा है। रेलवे की एनओसी नहीं मिल पाने के कारण पूरे नाले नहीं जुड़ पाये हैं। अगले एक माह में रबर डैम का काम पूरा हो जाएगा। गंदे पानी को रोकने और साफ जल लाने का काम मई के अंत तक पूरा हो जाएगा।
उच्च स्तरीय समिति की हो चुकी हैं 23 बैठकें
रिवर फ्रंट के कामों की समीक्षा के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति गठित है। आवास, नगर विकास, पर्यटन, लखनऊ के मंडलायुक्त, जिलाधिकारी, नगर आयुक्त, प्रबंध निदेशक जल निगम, प्रमुख अभियंता एवं विभागाध्यक्ष सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग के अधिकारी इसके सदस्य हैं। समिति की अब तक 23 बैठकें हो चुकी हैं। इसके बावजूद अनियमितताओं की बुनियाद पर खड़ी इस परियोजना पर किसी ने उंगली नहीं उठाई।
पर्यावरणविद सीबी पाण्डेय का कहना है कि यह ठेकेदारों द्वारा प्रेरित एक परियोजना है। यह नदी के स्वास्थ्य और पर्यावरण से घोर खिलवाड़ है। जिस प्रदेश में स्वास्थ्य और शिक्षा की कमी हो। वहां इस परियोजना के जरिए 1400 करोड़ की लूट की गई। इससे नदी का पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ा है। सवाल यह है कि बिल्ट अप एरिया कैसे कैलकुलेट किया गया।