पेट्रोल पंपों पर घटतौली: HC ने राज्य सरकार को फटकारा, कहा- बातें नहीं, कार्यवाही करें

न्यायालय ने सख्त टिप्पणी करते हुए यहां तक कह दिया कि ऐसा लगता है कि सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों की इसमें मिलीभगत व सहयोग है। गत 25 मई को न्यायालय के आदेश के अनुपालन में मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने कोर्ट के समक्ष उपस्थित होकर सफाई दी थी।

Update:2017-05-31 02:54 IST
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लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने पेट्रोल पम्पों पर घटतौली के मामले में राज्य सरकार की नीयत पर गंभीर सवाल उठाये है। कोर्ट ने चीफ सेक्रेट्री से कहा कि कार्यवाही केवल नाम की न हो बल्कि ऐसी हो जो दिखे। कोर्ट ने 31 जुलाई को अगली सुनवाई तय करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि कृत कार्यवाही का ब्यौरा पेश किया जाय।

कोर्ट ने सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को भी जमकर लताड़ लगाई है और मुख्य सचिव द्वारा जारी किए गए 2 मई के शासनादेश को आपराधिक मामले की जांच में हस्तक्षेप करने वाला करार दिया।

अदालत सख्त

न्यायालय ने सख्त टिप्पणी करते हुए यहां तक कह दिया कि ऐसा लगता है कि सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों की इसमें मिलीभगत व सहयोग है। हालांकि न्यायालय ने आशा व विश्वास प्रकट करते हुए, राज्य सरकार व ऑयल कम्पनियों को प्रभावी कार्रवाई के लिए दो माह का समय दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति वीरेंद्र कुमार (द्वितीय) की खंडपीठ ने अशोक निगम व पवन बिष्ट की जनहित याचिका पर दिया।

कोर्ट ने मंगलवार का आदेश गत 25 मई की कार्यवाही के संबध में जारी किया। गत 25 मई को न्यायालय के आदेश के अनुपालन में मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने कोर्ट के समक्ष उपस्थित होकर सफाई दी थी। जिस पर न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था।

नीयत पर सवाल

न्यायालय ने 2 मई के शासनादेश पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि उक्त शासनादेश में जो निर्देश दिए गए हैं वे आपराधिक मामले की जांच में हस्तक्षेप करने वाले हैं जो उक्त शासनादेश के निर्माता को सह-अभियुक्त की श्रेणी में लाता है। न्यायालय ने कहा कि घटतौली के ये मामले संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आते हैं, ऐसे में समझ से बाहर है कि राज्य सरकार के अधिकारी ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करने से कैसे बच सकते हैं जबकि यह उनका दायित्व है।

न्यायालय ने याचिका के साथ लगाई गई मीडिया रिपोर्ट्स का जिक्र करते हुए कहा कि पेट्रोल पम्प मालिकों ने हड़ताल की और वे सरकार से कुछ शर्तें मनवाने में कामयाब हो गए। पहला, गड़बड़ी पकड़े जाने पर मात्र नोजल या डिवाइस सील होगी पूरा पम्प नहीं, दूसरा, न तो कोई कर्मचारी न मालिक गिरफ्तार किया जाएगा, कोई एफआईआर दर्ज नहीं होगी और पकड़े जाने पर इंक्वायरी बैठाई जाएगी जिसकी रिपोर्ट आने तक कोई कार्रवाई नहीं होगी।

दो माह का समय

हालांकि न्यायालय ने दो माह का समय देते हुए राज्य सरकार और ऑयल कम्पनियों पर भरोसा जताते हुए कहा कि अब वे मौखिक आश्वासन के बजाय प्रभावी कार्रवाई करें।

न्यायालय ने एसएसपी, एसटीएफ द्वारा आईजी एसटीएफ को 24 मई को लिखे पत्र का भी जिक्र अपने आदेश में किया। जिसमें कहा गया है कि 3 मई से 20 मई के दौरान चेकिंग में तमाम पम्पों पर गड़बड़ियां पकड़ी गईं। मात्र गड़बड़ी वाले वितरण इकाई को सील किया गया व कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई। न्यायालय ने कहा कि एसटीएफ ने अपराध की एक श्रृंखला को पकड़ा था। लेकिन पहले दिन यानि 27 अप्रैल की सफलता दोहराई नहीं जा सकी।

पहले दिन ही 23 गिरफ्तारियां हुई, समय बीतने के साथ चेकिंग पूरी तरह असफल होती गई। मुख्य सचिव भले कह रहे हों कि एसटीएफ के हाथ नहीं बंधे लेकिन 2 मई के शासनादेश की भाषा और संदेश साफ बता रही है। एसटीएफ के अधिकारियों को जिस निराशा और असहयोग का सामना करना पड़ रहा है, हम उसे समझ सकते हैं। न्यायालय ने ऑयल कम्पनियों को भी जिम्मेदारी का अहसास कराया।

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