आखिर क्यों ! शी जिनपिंग अपनी अंतिम सांस तक सत्ता से चिपके रहेंगे

Update:2018-03-11 19:44 IST

बीजिंग : चीन ने रविवार को एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पदों के लिए दो कार्यकाल की सीमा समाप्त कर वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग को दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश पर अंतिम सांस तक शासन करने का अधिकार प्रदान किया।

चीन के प्रमुख नेता देंग शियोपिंग ने माओत्से तुंग की तरह चीन में एक व्यक्ति के सत्ता में बने रहने की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए राष्ट्रपति पद के लिए दो कार्यकाल की अधिकतम सीमा तय कर दी थी, जिसे 35 साल बाद चीन की संसद ने संविधानक संशोधन के जरिए समाप्त कर दिया।

चीनी संसद के 2,963 प्रतिनिधियों में से तीन मतदान से दूर रहे जबकि दो प्रतिनिधियों ने कम्युनिस्ट पार्टी की शक्तिशाली केंद्रीय समिति की ओर से फरवरी में प्रस्ताव प्रस्तावित संविधान संशोधन के विरूद्ध वोट डाले।

चीन की संसद ने देश में असली शासक पार्टी के आदेश को कभी ना नहीं कहा है।

ये भी देखें : राष्ट्रपति शी जिनपिंग को सत्ता में बनाए रखने के लिए एक नया प्रस्ताव

कार्यकाल की सीमा समाप्त होने से 64 वर्षीय शी जिनपिंग तब तक चीन के राष्ट्रपति बने रहेंगे जब तक वह अवकाश नहीं लेते या उनका निधन नहीं हो जाता या उनको सत्ता से हटाया नहीं जाता।

उनको पहले ही देश के अगले माओ की उपाधि मिल चुकी है। माओ पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के जनक थे। वे 1949 से 1976 तक चीन की सत्ता पर काबिज रहे।

इसके अलावा, विधायिका ने संविधान में चीनी स्वभाव के अनुरूप समाजवाद पर शी जिनपिंग के विचार को शामिल करने के लिए भी संशोधन को मंजूरी प्रदान की।

चीन के पर्यवेक्षकों का कहना है कि एक दलीय शासन प्रणाली वाले देश में एक व्यक्ति का शासन अच्छी तरह चल सकता है।

शी ने 2012 में कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव के तौर पर हू जिंताओ से उत्तराधिकार प्राप्त किया और एक साल बाद वह चीन के राष्ट्रपति बन गए। छह साल के शासन में शी ने चीन की सत्ता पर मजबूत पकड़ बनाई है। केंद्रीय समिति के 200 सदस्यों में अधिकांश उनके करीबी हैं।

शी की अध्यक्षता वाले चीन के सबसे शक्तिशाली निकाय 25 सदस्यीय पोलितब्यूरो में माना जाता है कि 14 उनके समर्थक हैं।

भ्रष्टाचार के घोर विरोधी और शी के विश्वस्त वांग किशान को उप राष्ट्रपति नियुक्त किया जा सकता है।

कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव के अलावा शी जिनपिंग चीन की सेना के सर्वोच्च निकाय 'केंद्रीय सैन्य आयोग' के भी अध्यक्ष हैं।

चीन में हालांकि पार्टी के महासचिव का पद राष्ट्रपति से ज्यादा शक्तिशाली है क्योंकि राष्ट्रपति आमतौर पर बाहरी दुनिया के साथ कार्य व्यापार करते हैं।

माओ ने 1954 में राष्ट्रपति का पद संभाला था और पांच साल बाद उन्होंने अपने पसंदीदा व्यक्ति लीयू शाओकी के लिए अपना पद त्याग दिया, जो कठपुतली राष्ट्रपति थे और माओ के सांस्कृतिक क्रांति के दौरान वह माओ के समर्थन से वंचित हो गए।

माओ ने 1975 में राष्ट्रपति का पद समाप्त कर दिया जिसे 1982 में फिर देंग ने पुनस्र्थापित किया, लेकिन राष्ट्रपति पद के लिए दो कार्यकाल की अधिकतम सीमा तय कर दी।

मौजूदा दौर के साथ-साथ निकट भविष्य में भी शी को चुनौती देने वाला कोई नेता नहीं दिख रहा है।

विरोधियों और उभरते हुए राजनेताओं को या तो नियमों के अनुरूप काम करने को बाध्य होना पड़ता है या भ्रष्टाचार के आरोपों में सलाखों के भीतर जाना पड़ता है।

शी के शासन काल में विरोध के लिए कोई जगह नहीं है और मीडिया व सिविल सोसायटी पर भारी प्रतिबंध है।

शी ने पिछले साल अक्टूबर में हुई पांच साल में एक बार होने वाली पार्टी की अहम बैठक में 2023 के बाद सत्ता में नहीं रहने की अपनी इच्छा जताई थी। हालांकि उन्होंने बैठक में अपने किसी उत्तराधिकारी का नाम नहीं बताया था। उनके पूर्ववर्ती हू और जियांग जेमिन ने परंपरागत रूप से अपने उत्तराधिकारियों की घोषणा की थी।

उनकी प्रमुख बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट के तहत चीन ने कई देशों में राजमार्गो, पत्तनों, रेलमार्गो के निर्माण पर अरबों डॉलर का निवेश किया है।

हालांकि भारत ने चीन की इस परियोजना का विरोध किया है लेकिन चीन का दावा है कि इसे 100 से अधिक देशों का समर्थन प्राप्त है।

शी के शासन में चीन ने दक्षिण एशिया में अपनी गहरी पैठ बनाई है जोकि भारत के प्रभाव का क्षेत्र है।

चीन पाकिस्तान में ढांचागत निर्माण परियोजनाओं पर 50 अरब डॉलर से अधिक खर्च कर रहा है और श्रीलंका का भी एक प्रमुख बंदरगाह 99 साल की लीज पर लिया है।

Tags:    

Similar News