चांद-सितारे वाले हरे झंडे को बैन करने की याचिका पर SC ने मांगा केंद्र से जवाब

Update: 2018-07-16 08:51 GMT

नई दिल्ली: चांद और सितारे वाले हरे झंडे पर बैन लगाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई। यूपी शिया वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिज़वी ने याचिका दायर कर इस पर बैन की मांग की है। रिज़वी का कहना है कि इस झंडे का इस्लाम से कोई संबंध नहीं है। दरअसल, ये पाकिस्तान की पार्टी मुस्लिम लीग का झंडा है। मुस्लिम इलाकों में इस तरह का झंडा फहराया जाना गलतफहमी और सम्प्रदायिक तनाव की वजह बनता है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से अपना पक्ष रखने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर अब दो हफ्ते बाद सुनवाई होगी।

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देश में पैदा होती है सांप्रदायिक तनाव की स्थिति

आज वसीम रिज़वी की तरफ से कोर्ट में पेश वरिष्ठ वकील एस पी सिंह ने कहा कि इस झंडे के चलते देश भर में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा होती रहती है। जस्टिस ए के सीकरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने कोर्ट में मौजूद एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वो इस मसले पर सरकार से निर्देश लें। जस्टिस सीकरी ने टिप्पणी कि, "कई बार सरकार के लिए किसी मसले पर कदम उठाना मुश्किल होता है। इस बात का डर होता है कि लोग उसके कदम को दुर्भावनावश उठाया हुआ मान लेंगे। अब ये मामला कोर्ट में है. अगर आपको इस मसले पर कुछ कहना है तो कह सकते हैं। "

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जिन्ना की मुस्लिम लीग का झंडा

याचिका में कहा गया है कि साल 1906 में ढाका में इसे मुस्लिम लीग के झंडे के तौर पर डिजाइन किया गया था। बंटवारे के बाद पाकिस्तान ने इसमें मामूली बदलाव कर इसे राष्ट्रीय ध्वज बनाया, अब भी पाकिस्तान मुस्लिम लीग कायदे-आज़म नाम की पार्टी इसी झंडे का इस्तेमाल करती है।

झंडा लगाने वालों पर कार्रवाई हो

रिज़वी के मुताबिक, कट्टर और पाकिस्तान परस्त लोगों ने भ्रम फैलाया है कि ये इस्लामिक झंडा है। ज़्यादातर लोगों को सच्चाई पता नहीं है. उनके मकानों में कुछ स्वार्थी लोग ये झंडा लगा जाते हैं। वो इसे धार्मिक झंडा समझ कर लगा रहने देते हैं. मुस्लिम बस्तियों में भी यहां वहां इस झंडे को लगा दिया जाता है।

झंडे का इस्लाम से रिश्ता नहीं

रिज़वी की याचिका में कहा गया है कि इस झंडे का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है। पैगंबर मोहम्मद जब मक्का गए, तब उनके हाथ में सफेद झंडा था. मध्य युग में भी इस्लामिक फौजों के अलग-अलग झंडे होते थे। चांद तारे वाले हरे झंडे का साल 1906 से पहले कोई वजूद नहीं था।

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