TRIPLE TALAQ: कोर्ट के फैसले के बाद दो गुटों में बंटा मुस्लिम समाज

Update:2016-12-09 10:28 IST

लखनऊ: ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर हाईकोर्ट के फैसले को लेकर मुस्लिम समुदाय दो समुदाय में बंटा नजर आया। शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने जहां इस फैसले का स्वागत किया है वहीं सुन्नी पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसकी स्टडी कर इसके खिलाफ अपील करने का मन बना लिया है।

बोर्ड असहमत

-ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के एक्जीक्यूटिव मेंबर मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने फैसले से असहमति जताई है.

-मौलाना ने कहा- हम मुल्क के हर कानून और अदालत का सम्मान करते हैं। पर उसी कानून ने हमें यह हक दिया है कि किसी फैसले से हम इत्तेफाक नहीं रखते तो उसके खिलाफ अपील करें। ऐसे में साफ है कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की हमारी लीगल कमेटी इस फैसले की स्ट़डी करेगी और उसके खिलाफ अपील करेगी।

बोर्ड असंवैधानिक

-मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को अनकॉन्स्टीट्यूशनल कहे जाने पर मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने कहा कि क्या इसका मतलब यह लगाया जाय कि हमे संविधान से ऊपर मानकर यह फैसला दिया गया है।

-उन्होंने कहा कि हकीकत यह है कि हमने हमेशा कानून के दायरे में काम किया है। हमारा कोई कदम असंवैधानिक है ही नही।

-मौलाना ने कहा कि हमारे देश का कानून ही हमें हक देता है कि हम पर्सनल लॉ को फॉलो करें। असंवैधानिक होने की कोई स्थिति है ही नहीं।

शिया बोर्ड सहमत

-वहीं ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि इस फैसले का हम स्वागत करते हैं।

-उन्होंने कहा कि यह फैसला बिलकुल मुनासिब है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिलकुल सही कहा है कि कोई भी संस्था कानून से ऊपर नहीं है।

-यासूब अब्बास के मुताबिक जैसे सती प्रथा को रोका गया उसी तरह ट्रिपल तलाक को खत्म किया जाना चाहिए।

-मौलाना ने कहा कि जिस तरह सती प्रथा में बेगुनाह लड़कियों की जिंदगी तबाह होती थी, उसी तरह ट्रिपल तलाक भी जिंदगियां तबाह कर रहा है।

-यासूब अब्बास ने कहा, हम इस फैसले का न सिर्फ स्वागत करते हैं, बल्कि इसको तुरंत कडाई से लागू करने की गुजारिश भी कर रहे हैं।

-इस मुद्दे को लेकर जहां इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आ गया है, वहीं सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर चल रहे केस में इस फैसले का कितना असर पड़ेगा, अब यह एक बड़ा मुद्दा है।

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क्‍या कहा था कोर्ट ने

हाईकोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार देते हुए इसे महिलाआें के साथ क्रूरता बताया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में गुरुवार 8 दिसंबर को कहा कि तलाक मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन करता है। कोर्ट ने कहा कि कोई पर्सनल लॉ बोर्ड संविधान से ऊपर नहीं है।

तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के साथ क्रूरता है। यह समाज और देश के हित में नहीं है। हालांकि मुस्लिम समुदाय के सभी वर्ग तीन तलाक को मान्यता नहीं देते किन्तु एक बड़ा मुस्लिम समाज तीन तलाक स्वीकार कर रहा है।

कोर्ट ने कहा है कि पवित्र कुरान में पति और पत्नी के बीच सुलह के सारे प्रयास विफल होने की स्थिति में ही तलाक का नियम है, किन्तु कुछ लोग कुरान की मनमानी व्याख्या करते हैं। पर्सनल लॉ संविधान द्वारा प्रदत्त वैयक्तिक अधिकारों के ऊपर नहीं हो सकता। हालांकि शादी व तलाक की वैधता पर कोर्ट ने कोई फैसला नहीं दिया किन्तु 23 साल की लड़की से 53 साल की उम्र में शादी की इच्छा रखने वाले पुरूष द्वारा दो बच्चों की मां को तलाक देने को सही नहीं माना।

कोर्ट ने कहा दूसरी शादी के लिए पहली पत्नी को तीन तलाक देकर हाईकोर्ट से सुरक्षा की गुहार नहीं की जा सकती। कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए नवविवाहित पति-ंपत्नी की सुरक्षा की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने श्रीमती हिना व अन्य की याचिका पर दिया है।

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क्या कहा मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के एक्जीक्यूटिव मेंबर मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली के मुताबिक हम मुल्क के हर कानून और अदालत का सम्मान करते हैं। पर उसी कानून ने हमें यह हक दिया है कि किसी फैसले से हम इत्तेफाक नहीं रखते तो उसके खिलाफ अपील करें। ऐसे में साफ है कि हमारी आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की लीगल कमेटी इस फैसले को स्टडी करेगी और उसके खिलाफ अपील करेगी।

मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड को अनकांस्टीट्यूशनल कहे जाने पर क्या कहा

मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली का कहना है कि क्या इसका मतलब यह लगाया जाए कि हमे संविधान से ऊपर मानकर यह फैसला दिया गया है। जबकि हकीकत है कि हमने हमेशा कानून के दायरे में काम किया है। हमारा कोई कदम असंवैधानिक है ही नहीं। ऐसे में हमारे देश का कानून ही हमें हक देता है कि हम पर्सनल ला को फालो करें तो असंवैधानिक होने की कोई स्थिति है ही नहीं।

ज़फ़रयाब जिलानी ने क्या कहा ?

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के लीगल अड्वाइज़र और बोर्ड के सदस्य ज़फ़रयाब जिलानी के मुताबिक़, अगर इलाहबाद हाई कोर्ट का फ़ैसला ओरल है या यह ओरल ऑब्ज़र्वेशन है तो उसकी कोई अहमियत नहीं है। अगर यह रिटेन है तो उसे देखकर अगर कुछ लीगल क़दम उठाने कि कोई ज़रूरत पड़ी तो क़दम उठाया जाएगा। वरना मामला सप्रीम कोर्ट में चल रहा है ऐसे में ये फ़ैसला रिटेन है तो कैसे आया ये देखने वाली बात होगी। उन्होंने ये भी कहा की इस मामले में चार फ़ैसले पहले ही सप्रीम कोर्ट दे चुका है।

क्या कहा मौलाना यासूब अब्बास ने

ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर आल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि इस फैसले का हम स्वागत करते हैं। यह फैसला बिल्कुल मुनासिब है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिल्कुल सही कहा है कि कोई भी संस्था कानून से ऊपर नहीं है। यासूब अब्बास के मुताबिक जैसे सती प्रथा को रोका गया उसी तरह ट्रिपल तलाक को खत्म किया जाना चाहिए जिस तरह सती प्रथा में बेगुनाह लड़कियों की जिंदगी तबाह होती थी उसी तरह ट्रिपल तलाक भी जिंदगियां तबाह कर रहा है। ऐसे में हम इस फैसले का न सिर्फ स्वागत करते हैं बल्कि इसको तुरंत कड़ाई से लागू करने की गुजारिश भी कर रहे हैं।

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