भगवद्गीता ( अध्याय - 1 ) पुष्पिका ( भाग - 5 ), जानें श्रीकृष्णार्जुनसंवाद

Bhagavad Gita: हम सभी इस तथ्य से अवगत हैं कि श्री कृष्ण ज्ञानी हैं, तो अर्जुन जिज्ञासु है। श्री कृष्ण सारथी हैं, तो अर्जुन रथी है। श्री कृष्ण गुरु हैं, तो अर्जुन शिष्य है। श्रीकृष्ण भगवान हैं, तो अर्जुन भक्त है। श्री कृष्ण परमात्मा हैं, तो अर्जुन जीवात्मा है एवं श्रीकृष्ण नारायण हैं, तो अर्जुन नर है।

Update:2023-03-24 23:38 IST

Bhagavad Gita: पुष्पिका में "योगशास्त्रे" के पश्चात् "श्रीकृष्णार्जुनसंवादे" लिखा गया है। श्री कृष्ण ने तत्वज्ञान का उपदेश अर्जुन को संवाद शैली में प्रदान किया है, अतः "श्रीकृष्ण - अर्जुन संवाद" का उल्लेख किया गया है।

हम सभी इस तथ्य से अवगत हैं कि श्री कृष्ण ज्ञानी हैं, तो अर्जुन जिज्ञासु है। श्री कृष्ण सारथी हैं, तो अर्जुन रथी है। श्री कृष्ण गुरु हैं, तो अर्जुन शिष्य है। श्रीकृष्ण भगवान हैं, तो अर्जुन भक्त है। श्री कृष्ण परमात्मा हैं, तो अर्जुन जीवात्मा है एवं श्रीकृष्ण नारायण हैं, तो अर्जुन नर है ।

विचारणीय विषय यह है कि संवाद को ज्ञानी - जिज्ञासु, सारथी - रथी, गुरु - शिष्य, भगवान -भक्त संवाद के रूप में नहीं लिखा गया और न ही परमात्मा - जीवात्मा एवं नारायण - नर संवाद के रूप में लिखा गया है। महर्षि वेदव्यास जी ने बड़ी सरलता से मात्र श्री कृष्ण - अर्जुन संवाद के रूप में भगवद्गीता को प्रकट किया। इसे भी समझने की जरूरत है।

पुष्पिका के अंतर्गत पहले ही यह बता दिया गया कि यह भगवान की गीता है। श्री कृष्ण का परिचय भगवान के रूप में दे दिया गया। भगवान जिसको ज्ञान देंगे, वह तो भक्त होगा ही।

ब्रह्मविद्या का उल्लेख कर श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के क्रमशः परमात्मा एवं जीवात्मा के रूप में उन दोनों के आध्यात्मिक स्तर का प्रकटीकरण कर चुके हैं। ब्रह्मज्ञान का प्रकटीकरण गुरु - शिष्य परंपरा का ही परिणाम होता है - यह हम जानते हैं। आध्यात्मिक संवाद ज्ञानी एवं जिज्ञासु के मध्य ही हुआ करता है।

श्रीकृष्ण - अर्जुन संवाद लिखकर वेदव्यास जी ने हम सभी पर काफी उपकार किया है तथा बड़ी चतुराई से हम सब पर यह छोड़ दिया है कि श्री कृष्ण - अर्जुन संवाद को ऊपरिलिखित संवादों में से किस संवाद के रूप में हम ग्रहण करते हैं ? साधारण पाठक तो भगवद्गीता को धृतराष्ट्र - सञ्जय संवाद के रूप में ही लेते हैं, जिसके अंतर्गत श्रीकृष्ण - अर्जुन संवाद है।

महाभारतकार वेदव्यास जी ने श्रीकृष्ण - अर्जुन संवाद के पहले किसी प्रकार का विशेषण नहीं लगाया है। परन्तु भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण इस संवाद को "धर्म्यं संवाद" अर्थात् धर्ममय संवाद की संज्ञा देते हैं, तो संजय इस संवाद को "अद्भुतम्" अर्थात् विचित्र संवाद कहकर इसकी विशेषता को प्रकट करते हैं।

वास्तव में संपूर्ण भगवद्गीता में श्रीकृष्ण - अर्जुन का संवाद प्रश्नोत्तरीपरक, जगत कल्याणकारी, सर्व - आनंदमयी, धर्ममय, अद्भुत, गूढ़ एवं रहस्यमयी संवाद है, जिसे गहनता से एवं एकाग्रता से अध्ययन करने वाला वह गीता-प्रेमी ही समझ सकता है, जिस पर भगवान श्री कृष्ण की भगवत् - कृपा हो।

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