Sabse Khatarnak Bhediya: विलुप्त हो चुके ‘डायर वुल्फ' जैसे खतरनाक जीवों की वैज्ञानिक विधि से हो रही वापसी, एक वैज्ञानिक क्रांति या नैतिक चुनौती
Sabse Khatarnak Bhediya Dire Wolf: डायर वुल्फ, जो एक उत्तरी अमेरिका में पाया जाने वाला एक विशालकाय भेड़िया था, जिसे वैज्ञानिकों ने पुनर्जीवित करने का दावा किया है। आइए जानें इसके बारे में विस्तार से।;
Sabse Khatarnak Bhediya Dire Wolf (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Sabse Khatarnak Bhediya Dire Wolf: कल्पना कीजिए कि आप एक ऐसे जंगल में हैं जहां अचानक आपके सामने एक भेड़िया आता है। लेकिन यह कोई सामान्य भेड़िया नहीं, बल्कि 13,000 वर्ष पूर्व विलुप्त हुई प्रजाति का आदमखोर 'डायर वुल्फ' (Dire Wolf) है। लेकिन यह अब कोई कोरी कल्पना भर नहीं, वास्तव में ऐसा संभव हो सकता है। बल्कि वर्तमान समय में यह एक वैज्ञानिक उपलब्धि बन चुका है। अमेरिकी जैव प्रौद्योगिकी कंपनी Colossal Biosciences ने इस विलुप्त प्रजाति को पुनर्जीवित करने का दावा किया है। यह वैज्ञानिक चमत्कार न केवल जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology) में मील का पत्थर है, बल्कि यह नैतिकता, पारिस्थितिकी और भविष्य की दिशा में कई महत्वपूर्ण प्रश्न भी खड़े करता है। आइए जानते हैं विलुप्त जीवों के पुनर्जीवन जैसे चमत्कारिक लेकिन विवादास्पद वैज्ञानिक मुद्दे पर विस्तार से:-
डायर वुल्फ का परिचय (Dire Wolf Species)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
डायर वुल्फ (Aenocyon dirus) प्राचीन उत्तरी अमेरिका में पाया जाने वाला एक विशालकाय भेड़िया था। इसका शरीर आधुनिक ग्रे वुल्फ की तुलना में बड़ा और मजबूत होता था। यह शिकारी जीव हिम युग के अंत में, लगभग 13,000 साल पहले विलुप्त हो गया।
मुख्य कारणों में जलवायु परिवर्तन, बड़े शिकार की विलुप्ति और मानव हस्तक्षेप माने जाते हैं। डायर वुल्फ की हड्डियां अक्सर प्राचीन शिकारी जीवों के अवशेषों के साथ मिली हैं, जिससे स्पष्ट है कि वह पारिस्थितिकी तंत्र का एक अहम हिस्सा था।
कैसे हुआ डायर वुल्फ का पुनर्जीवन (How Did Dire Wolf Get Revived)?
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Colossal Biosciences ने डीएनए अनुक्रमण (DNA Sequencing) और जेनेटिक एडिटिंग तकनीकों जैसे CRISPR-Cas9 का प्रयोग कर डायर वुल्फ को ‘जैविक रूप से पुनर्निर्मित’ किया। आइए देखें इस प्रक्रिया के चरण:
1. डीएनए का पुनर्निर्माण
डायर वुल्फ के जीवाश्मों से प्राप्त Ancient DNA की मदद से वैज्ञानिकों ने इसके जीनोम की संरचना की। चूंकि समय के साथ इसका अधिकांश डीएनए क्षतिग्रस्त हो चुका था, वैज्ञानिकों ने आधुनिक ग्रे वुल्फ (Canis Lupus) के डीएनए का सहारा लिया। इसके अतिरिक्त, संरक्षित नमूनों और कृत्रिम डीएनए तकनीकों का भी उपयोग किया गया।
2. CRISPR तकनीक एक सटीक जेनेटिक एडिटिंग का युग
CRISPR-Cas9 जैसी आधुनिक जीन एडिटिंग तकनीकों की मदद से वैज्ञानिकों ने डायर वुल्फ के गुणसूत्रों को नए डीएनए में सम्मिलित किया। यह अत्यंत सटीक और संवेदनशील प्रक्रिया है, जिससे आनुवंशिक त्रुटियों को कम किया जा सकता है।
3. कृत्रिम गर्भाशय और भ्रूण विकास
संशोधित डीएनए को एक कृत्रिम भ्रूण में विकसित किया गया, जिसे फिर एक कृत्रिम गर्भाशय में पोषित किया गया। यह तकनीक अभी नवजात अवस्था में है, परंतु इसके सफल प्रयोग ने भविष्य की संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं।
क्या यह सच में डायर वुल्फ है (Is It Real Dire Wolf)?
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
पुनर्जीवित डायर वुल्फ के डीएनए की 90–95% समानता मूल प्रजाति से है। लेकिन कुछ वैज्ञानिक इसे पूर्ण डायर वुल्फ नहीं मानते। वे इसे “डायर वुल्फ-जैसा जीव” कहते हैं। इसका कारण है:
पारिस्थितिकी तंत्र की भिन्नता
इस पुनर्जीवित डायर वुल्फ की कृत्रिम प्रक्रिया में शामिल परिवर्तन है। इसलिए सवाल उठता है क्या हम एक जीव की आत्मा को सिर्फ उसके डीएनए से परिभाषित कर सकते हैं? हालांकि पुनर्जीवित जीव का डीएनए लगभग 90–95% डायर वुल्फ से मेल खाता है।
व्यवहार और पारिस्थितिकी
चूंकि डायर वुल्फ का पारिस्थितिक तंत्र आज वैसा नहीं है, इसका व्यवहार उस जैसे ही हो, यह सुनिश्चित नहीं है।
प्राकृतिक या कृत्रिम
क्या कृत्रिम रूप से बनाए गए जीव को वही दर्जा मिलना चाहिए जो प्रकृति में उत्पन्न जीव को मिलना चाहिए? ये सवाल उठता है।
नैतिक और वैज्ञानिक बहस
दार्शनिकों और वैज्ञानिकों के बीच विलुप्त हो चुके जीवों को क्लिनिकली पुनर्जीवन प्रदान करना एक बहस का मुद्दा बना हुआ है। भविष्य में इस तरह के शोधपूर्ण पुनर्जीवन की कीमत क्या होगी? साथ ही कई सवाल उठ खड़े हुए हैं, कि क्या हमें विलुप्त प्रजातियों को पुनर्जीवित करना चाहिए? यह सवाल नैतिकता के मूल में जाता है क्या प्रकृति के निर्णयों में हस्तक्षेप करना उचित है? कुछ इसे ‘मानव अहंकार’ मानते हैं, जबकि अन्य इसे ‘प्रकृति के प्रति दायित्व’ मानते हैं। क्या वर्तमान समय में ऐसे जीवों के लिए उपयुक्त वातावरण है? डायर वुल्फ जैसे शिकारी जीव को आधुनिक पारिस्थितिकी तंत्र में वापस लाना कितना जटिल साबित हो सकता है।
सबसे ज्यादा शिकार की अनुपलब्धता, आधुनिक पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन की संभावना, अन्य जीवों पर प्रभाव जैसी चुनौतियां सामने आ सकती हैं।
संसाधनों का न्यायसंगत उपयोग
इस प्रकार के शोध पर कुछ वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों का मत है कि क्या यह उचित नहीं कि हम अपने संसाधनों का उपयोग मौजूदा संकटग्रस्त प्रजातियों को बचाने में करें, बजाय अतीत को वापस लाने के? क्या यह वैज्ञानिक उपलब्धि हमारे भविष्य की दिशा तय करती है या हमें अंधेरे में धकेल सकती है? ‘सिर्फ कर सकते हैं’ का अर्थ यह नहीं कि हमें ‘करना चाहिए’।
आइए जानते हैं अब वैज्ञानिक विधि द्वारा अब तक कितने विलुप्त हो चुके जीवों को वापस लाने में सफलता हासिल हुई है:-
डीसंक्सन (De-Extinction) विज्ञान की नई लहर
डीसंक्सन वह प्रक्रिया है जिससे विलुप्त हो चुकी प्रजातियों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जाता है। इसमें तीन प्रमुख तरीके शामिल हैं:
क्लोनिंग
सलेक्टिव ब्रीडिंग और बैक-ब्रीडिंग
जीन एडिटिंग (CRISPR)
विलुप्त प्रजातियां जिन पर पुनर्जीवन का प्रयास जारी है।
1. वूली मैमथ (Woolly Mammoth)
स्थिति: 4000 वर्ष पूर्व विलुप्त
प्रयास: Colossal Biosciences द्वारा
विधि: एशियाई हाथी के डीएनए में मैमथ के जीन
2. डोडो (Dodo)
स्थिति: 17वीं शताब्दी में विलुप्त
प्रयास: Colossal द्वारा जीन संपादन
विधि: निकोबार पिजन का डीएनए
3. पासेंजर पिजन (Passenger Pigeon)
स्थिति: 1914 में विलुप्त
प्रयास: Revive & Restore संस्था
विधि: बैंड-टेल पिजन के डीएनए का उपयोग
4. पाइरेनीयन आइबेक्स (Pyrenean Ibex)
प्रयास: 2003 में क्लोनिंग, पर जीवित नहीं रह सका
विलुप्त जीवों के पुनर्जीवन की संभावनाएं और चेतावनियां (Possibilities and Warnings of Revival of Extinct Species)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
पारिस्थितिक बहाली: विलुप्त ‘कीस्टोन’ प्रजातियां संतुलन ला सकती हैं।
अनुवांशिक शोध: अनुकूलन, प्रतिरोध और विकास पर नई जानकारी
नैतिक क्षतिपूर्ति: मानव जनित विलुप्तियों के लिए जवाबदेही
चुनौतियां: पूरा जीनोम न मिलना, आवश्यक पर्यावरण का अभाव, नई बीमारियां और जैविक खतरे, अत्यधिक संसाधनों की मांग
विज्ञान और विवेक के बीच संतुलन जैसी चुनौतियां का सामना करना पड़ सकता है।
इस प्रकार इन विलुप्त हो चुके जीवों के पुनर्जीवन की संभावना के साथ डायर वुल्फ की वापसी सिर्फ एक वैज्ञानिक चमत्कार नहीं है यह एक चेतावनी है। यह दिखाता है कि हम क्या कर सकते हैं, लेकिन यह सवाल भी छोड़ता है कि क्या हमें ऐसा करना चाहिए? प्रौद्योगिकी की शक्ति हमारे हाथों में है, लेकिन उसका दिशा निर्धारण नैतिकता, पारिस्थितिकी और मानवीय विवेक से ही होना चाहिए। डीसंक्सन भविष्य का मार्ग हो सकता है, पर हमें तय करना है कि वह मार्ग संवेदनशीलता से युक्त हो या विनाश की ओर ले जाने वाला।