Siachen Day 2025: सियाचिन ग्लेशियर, सियाचिन दिवस क्यों मनाया जाता है , बर्फीले गुलाबों की घाटी और दुनिया का सबसे ऊँचा युद्धस्थल को जानते हैं
Siachen Day 2025: अप्रैल 1984 में भारत ने ऑपरेशन मेघदूत के अंतर्गत इस पूरे क्षेत्र पर अपना रणनीतिक कब्जा जमा लिया। यह क्षेत्र तब से भारत के प्रशासनिक नियंत्रण में है।;
Siachen Day 2025 (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Siachen Day 2025: सियाचिन ग्लेशियर (Siachen Glacier) को दुनियाभर में सबसे ऊंचाई पर स्थित युद्धस्थल (Highest Battlefield In The World) के तौर पर जाना जाता है। यह भारत-पाकिस्तान की नियंत्रण रेखा (LoC) के पास स्थित है और प्राकृतिक व सामरिक दोनों दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह भारत का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गैर-ध्रुवीय ग्लेशियर है, जो लगभग 78 किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इससे बड़ा ग्लेशियर केवल ताजिकिस्तान में स्थित फेदचेन्को ग्लेशियर है।
नाम और स्थान की विशेषता
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
हिमालय की पूर्वी काराकोरम पर्वतमाला में स्थित यह ग्लेशियर केवल सैन्य संघर्षों की वजह से नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक और भौगोलिक विशेषताओं के कारण भी खास है। 'सियाचिन' शब्द की उत्पत्ति तिब्बती भाषा की 'बाल्टी' बोली से हुई है। इसमें ‘सिया’ का अर्थ है गुलाब और ‘चिन’ का अर्थ है बिखरा हुआ। इस प्रकार ‘सियाचिन’ का अर्थ होता है—‘गुलाबों से बिखरी हुई जगह’।
हालांकि यह नाम इसकी वर्तमान हालत से पूरी तरह विपरीत है, क्योंकि आज यह इलाका बर्फ, तूफानों और बर्फीले रेगिस्तान के लिए जाना जाता है, जहां जीवन की कल्पना भी मुश्किल है। औसतन 18,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर की एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है, जबकि दूसरी तरफ चीन की सीमा (अक्साई चिन) है। यही वजह है कि भारत के लिए इस क्षेत्र में सेना की उपस्थिति रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है।
सियाचिन का इतिहास और सेना की तैनाती (Siachen History And Army Deployment)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
1984 से पहले तक यह क्षेत्र वीरान और निर्जन माना जाता था। यहाँ किसी भी देश की सैन्य उपस्थिति नहीं थी। यह स्थान सत्तर के दशक में हुए शिमला समझौते में भी सीमांकन से बाहर रह गया था। लेकिन जैसे-जैसे पाकिस्तान ने इस इलाके में अपनी गतिविधियाँ बढ़ाईं, भारत ने 13 अप्रैल, 1984 को ‘ऑपरेशन मेघदूत’ (Operation Meghdoot) के तहत पहली बार यहाँ अपने सैनिकों की तैनाती की। तब से आज तक भारत के सैनिक साल भर इस बेहद कठिन और जोखिमभरे युद्धक्षेत्र में देश की सुरक्षा में लगे हुए हैं।
मौसम और जीवन की कठिनाई (Siachen Weather and Hardship of Life)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
सियाचिन की सर्दी का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यहाँ रात के समय तापमान -70 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। यह तापमान इतना जानलेवा होता है कि सैनिकों को विशेष रूप से डिजाइन किए गए मल्टी-लेयर कपड़े पहनने पड़ते हैं, फिर भी जीवन के लिए संघर्ष बना रहता है।
नींद में मौत का डर: सैनिक यदि रात में गहरी नींद में चले जाएं तो जान का खतरा होता है। उन्हें समय-समय पर शरीर को हिलाना-डुलाना पड़ता है ताकि शरीर सुचारु रूप से काम करता रहे और फेफड़े सक्रिय रहें।
कम ऑक्सीजन: समुद्र तल से बहुत ऊँचाई पर होने के कारण यहाँ ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम होता है। फेफड़ों तक केवल 30 प्रतिशत ऑक्सीजन ही पहुँच पाती है, जिसके कारण सैनिकों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है।
बर्फ की चकाचौंध: दिन के समय सूरज की रोशनी बर्फ पर इतनी तेज़ी से चमकती है कि बिना चश्मे के देखने पर आंखों की रोशनी तक जा सकती है। इससे बचने के लिए सैनिक विशेष प्रकार के चश्मे पहनते हैं।
बर्फीली आँधी: रात में यहाँ 100 से 200 किमी/घंटा की रफ्तार से बर्फीली आँधियाँ चलती हैं। यदि शरीर का कोई हिस्सा सीधी हवा के संपर्क में आ जाए, तो हाइपोथर्मिया और फ्रॉस्टबाइट का खतरा तुरंत बन जाता है।
पारिस्थितिक जीवन और जीव-जंतु
सियाचिन ग्लेशियर का अधिकांश हिस्सा मानव और वनस्पति जीवन के लिए अनुपयुक्त है। यहाँ की सतह बर्फ से ढकी होती है और हर तरफ ऊँची-नीची खाइयाँ फैली होती हैं। हालांकि, नीचे की ओर आने पर कुछ दुर्लभ हिमपर्वतीय जीव देखने को मिलते हैं, जैसे-
बर्फीला चीता (Snow Leopard)
सफेद भालू (Polar Bear Type)
पहाड़ी बकरी की विशेष प्रजातियाँ (Mountain Goat/Ibex)
NJ9842 और नियंत्रण रेखा
NJ9842, वर्ष 1949 के कराची युद्धविराम समझौते के अनुसार, भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी सहमति से सीमांकित अंतिम बिंदु है। यही वह बिंदु है जहाँ से शिमला समझौते (1972) के अनुसार नियंत्रण रेखा (LoC) समाप्त होती है। इसके आगे का क्षेत्र, विशेषकर सियाचिन ग्लेशियर, उस समय बिना सीमांकन के छोड़ दिया गया था।
सियाचिन ग्लेशियर का पहला आधिकारिक सर्वेक्षण (First Official Survey of Siachen Glacier)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
भारत सरकार की ओर से सियाचिन ग्लेशियर का पहला वैज्ञानिक सर्वेक्षण जून 1958 में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के सहायक भूविज्ञानी वी.के. रैना ने किया था। यह सर्वेक्षण अंतर्राष्ट्रीय भू-भौतिकीय वर्ष (IGY) की पहल के तहत किया गया, जिसका उद्देश्य हिमालय की ग्लेशियर प्रणालियों का गहन अध्ययन करना था।
GSI की टीम ने इस ग्लेशियर में तीन महीने तक रुककर व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन और मापन किए।
भारत के लिए यह सर्वेक्षण क्यों था महत्वपूर्ण
1958 में किया गया यह सर्वेक्षण भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण था। क्योंकि इससे यह प्रमाणित हुआ कि भारत न केवल इस क्षेत्र से परिचित था, बल्कि उसका इस पर वैज्ञानिक और रणनीतिक जुड़ाव भी रहा है। यह वही क्षेत्र है, जो बाद में भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा विवाद और सैन्य संघर्ष का मुख्य केंद्र बन गया।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया और बाद की स्थिति
1958 में जब भारतीय वैज्ञानिक दल ने सियाचिन में शोध किया, उस समय पाकिस्तान की ओर से किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं आई। इसका कारण 1949 के कराची समझौते के तहत दोनों देशों द्वारा यथास्थिति बनाए रखने की सहमति हो सकती है।
हालांकि, अगस्त 1983 में पाकिस्तान ने यथास्थिति को चुनौती दी और NJ9842 से लेकर काराकोरम दर्रे तक नियंत्रण रेखा को एकतरफा रूप से बढ़ा दिया। इससे भारत की सुरक्षा को खतरा महसूस हुआ, जिसके चलते अप्रैल 1984 में भारत ने ऑपरेशन मेघदूत के अंतर्गत इस पूरे क्षेत्र, विशेषकर साल्टोरो रिज, पर रणनीतिक कब्जा जमा लिया। यह क्षेत्र तब से भारत के प्रशासनिक नियंत्रण में है।
पाकिस्तान के दावे और ऐतिहासिक समझौतों की व्याख्या
पाकिस्तान की ओर से इस क्षेत्र पर दावा, कराची युद्धविराम और शिमला समझौते की विभिन्न व्याख्याओं पर आधारित है। परंतु भारत की स्थिति स्पष्ट रही है – NJ9842 के बाद कोई सीमा तय नहीं हुई थी और इस क्षेत्र में पहला औपचारिक अध्ययन भारत ने ही किया था।
सियाचिन ग्लेशियर का भौगोलिक परिचय (Geographical Introduction of Siachen Glacier)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
स्थिति: सियाचिन ग्लेशियर हिमालय की पूर्वी काराकोरम रेंज में स्थित है और NJ9842 के उत्तर-पूर्व में पड़ता है।
लंबाई और दिशा: यह ग्लेशियर लगभग 78 किलोमीटर लंबा है और इसका फैलाव उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर है।
उद्गम स्थल: इसका उद्गम बिंदु इंदिरा कोल वेस्ट है, जो कि 6,115 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
अंतिम बिंदु: ग्लेशियर 3,570 मीटर की ऊँचाई पर एक कोल (निचला बिंदु) तक फैला हुआ है।
नदी प्रणाली: यह नुब्रा नदी का स्रोत है, जो आगे जाकर श्योक नदी में मिलती है।
अंतर्राष्ट्रीय तुलना
सियाचिन ग्लेशियर को ध्रुवीय क्षेत्रों से बाहर का दूसरा सबसे लंबा ग्लेशियर माना जाता है। इससे बड़ा ग्लेशियर केवल ताजिकिस्तान में स्थित फेडचेंको ग्लेशियर है। इसके अलावा, सियाचिन हिमालय की उस भौगोलिक रेखा पर स्थित है, जो भारतीय उपमहाद्वीप को यूरेशियन प्लेट से अलग करती है। इस क्षेत्र को अकसर वैज्ञानिक भाषा में ‘तीसरा ध्रुव’ (Third Pole) भी कहा जाता है।
सियाचिन ग्लेशियर विश्व का सबसे ऊँचा युद्धक्षेत्र है, जहाँ भारतीय सैनिक 18,000 फीट से भी अधिक ऊँचाई पर तैनात रहते हैं। यह ग्लेशियर पूर्वी काराकोरम रेंज में स्थित है और लगभग 78 किलोमीटर लंबा है, जिससे यह गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर बनता है। सियाचिन का नाम ‘रोधक’ या ‘काले गुलाबों की भूमि’ के लिए प्रयोग होने वाले स्थानीय शब्द से लिया गया है।
सियाचिन की रणनीतिक स्थिति इसे अत्यंत संवेदनशील बनाती है, क्योंकि यह भारत, पाकिस्तान और चीन की सीमाओं के संगम के पास स्थित है। 1949 के कराची समझौते और 1972 के शिमला समझौते में NJ9842 तक ही LOC को सीमांकित किया गया था, जिससे NJ9842 के आगे का क्षेत्र विवादित रह गया। इसी क्षेत्र पर अधिकार स्थापित करने हेतु भारत ने 1984 में ‘ऑपरेशन मेघदूत’ चलाया और आज तक वह सियाचिन पर नियंत्रण बनाए हुए है।
यहाँ मौसम बेहद विकट होता है – तापमान -60°C तक गिर सकता है और बर्फीली हवाएँ 150 किमी/घंटा की रफ्तार से चलती हैं। सैनिकों को फ्रॉस्टबाइट, ऑक्सीजन की कमी और हिमस्खलन जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। दरअसल, 1984 से अब तक सियाचिन में 1000 से अधिक सैनिक शहीद हो चुके हैं, जिनमें अधिकांश की मौतें युद्ध नहीं, बल्कि मौसम संबंधी कारणों से हुई हैं।
भारत की सबसे ऊँची सैन्य पोस्ट
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
सियाचिन पर भारत की सबसे ऊँची सैन्य पोस्ट 'बाना पोस्ट' है, जो लगभग 22,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है और इसका नाम परमवीर चक्र विजेता सूबेदार मेजर बाना सिंह के नाम पर रखा गया है। वहाँ पहुँचने के लिए सैनिकों को भारी वजन (35-40 किलो) उठाना पड़ता है, जिसमें ऑक्सीजन सिलेंडर, हथियार, भोजन और साजो-सामान शामिल होता है। इतनी ऊँचाई पर काम करना इतना कठिन होता है कि सैनिकों को हर 15-20 दिन में रोटेशन पर वापस बुला लिया जाता है।
इस दुर्गम स्थान पर रसद पहुँचाना भी एक महंगा और कठिन कार्य है। हैलिकॉप्टर ही एकमात्र साधन हैं, जो ऊँचाई तक पहुँच सकते हैं और यह दुनिया की सबसे ऊँची हैलिकॉप्टर सप्लाई सेवा मानी जाती है। हर दिन लगभग ₹6-7 करोड़ की लागत केवल सियाचिन में सेना की आपूर्ति और सुरक्षा व्यवस्था पर खर्च होती है। वहाँ कोई गाँव या रनवे नहीं है – पूरा इलाका पूरी तरह से सेना के नियंत्रण में है।
भूगोल की दृष्टि से भी सियाचिन महत्वपूर्ण है। यह ग्लेशियर इंदिरा कोल वेस्ट से निकलता है, जो लगभग 6,115 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और यहीं से नुब्रा नदी का उद्गम होता है, जो आगे चलकर श्योक नदी में मिलती है। यह पूरा क्षेत्र ‘तीसरे ध्रुव’ के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहाँ बर्फ की मात्रा अंटार्कटिका और आर्कटिक के बाद सबसे अधिक है।
वर्षों से पर्यावरणविद और अंतरराष्ट्रीय संगठन सियाचिन को ‘पीस पार्क’ (शांति उद्यान) बनाने का प्रस्ताव देते रहे हैं, ताकि इसे युद्धमुक्त क्षेत्र घोषित किया जा सके। लेकिन भारत इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता क्योंकि उसे डर है कि अगर सेना वहाँ से हटेगी, तो पाकिस्तान उस स्थान पर कब्जा कर लेगा, जैसा कि कारगिल युद्ध में देखने को मिला था।