Bharat Ki Pahli Mahila Pilot: ये हैं भारत की पहली महिला पायलट, जानिए कैसे पर्दा प्रथा और अशिक्षा जैसी कुरीतियों को कुचलकर किया अपना सपना सच

Bharat Ki Pahli Mahila Pilot Sarla Thakral: आज हम आपको भारत की पहली महिला पायलट सरला ठकराल के बारे में बताने जा रहे हैं आइये जानते हैं कैसे उन्होंने पर्दा प्रथा और अशिक्षा जैसी कुरीतियों को कुचलकर अपने पायलट बनने के ख्वाब को साकार किया।;

Report :  Jyotsna Singh
Update:2025-01-31 18:05 IST

Bharat Ki Pahli Mahila Pilot Sarla Thakral Biography

Bharat Ki Pahli Mahila Pilot Sarla Thakral: जिस साड़ी के पल्लू से हमारे देश में महिलाएं सर से लेकर अपने चेहरे को ढक कर पर्दा प्रथा की परंपरा निभाती आईं हैं, यहां तक कि आज के आधुनिक समय में भी महिलाएं अक्सर इसी रूप में नजर आ जाती हैं। इसी देश में सरला ने पहली बार साड़ी पहनकर जब उड़ान भरी तो यह साबित कर दिया कि महिलाओं के लिए साड़ी कोई बंधन नहीं बल्कि इसके जरिए वो अपने राष्ट्र का गौरव भी बन सकती हैं। अपने जज्बे से अपने देखे ख्वाबों को पूरा होते देख सकती हैं। सरला ठुकराल उस समय की युवा महिलाओं के लिए एक रोलमॉडल बनकर उभरी थीं, जो ऊंची उड़ान भरने की ख्वाहिश रखती थीं। सिर्फ पायलट ही नहीं सरला एक उम्दा चित्रकार भी थीं। आज देश में कई ऐसी महिलाएं हैं, जो महिला सशक्तिकरण का जीता जागता उदाहरण हैं। आज हर क्षेत्र में महिलाएं आगे हैं। लेकिन ऐसी कुछ महिलाएं आजादी के समय से देश का गौरव बढ़ा रही हैं। जिनमें 1947 में डोमेस्टिक एयरलाइन उड़ाने वाली प्रेम माथुर, पहली भारतीय कमर्शियल पायलट बनी थीं। दुर्बा बनर्जी, 1956 में इंडियन एयरलाइन्स की पहली महिला पायलट बनीं और पद्मावती बंदोपाध्याय, साल 2002 में एयर वाइस मार्शल के पद पर पदोन्नत होने वाली पहली महिला ऑफिसर थीं। इन महिलाओं ने एक ऐसे करियर को चुना, जो पुरुषों के लिए ही अच्छा समझा जाता था। इन सबके बीच एविएशन में करियर बनाने वाली एक महिला को भुलाया नहीं जा सकता। हम बात कर रहे हैं एविएशन पायलट लाइसेंस पाने वाली और एयरक्राफ्ट उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला सरला ठकराल की। जानें सरला ठकराल के जीवन से जुड़े कुछ रोचक किस्सों के बारे में-

हासिल किया था पायलट का लाइसेंस

सरला ठकराल का जन्म साल 1914 में दिल्ली में हुआ था। वह अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद आगे पढ़ने के लिए लाहौर, पाकिस्तान चली गईं थीं। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एविएशन में अपना करियर बनाने की सोची। उस समय में जब उड़ना ही एक चमत्कार हुआ करता था, तब महिला होते हुए भी सरला ठकराल ने एक इतिहास रच दिया था। जिनके योगदान के चलते भारत का सीना पूरी दुनिया के सामने गर्व से चौड़ा हो जाता है। महज 21 साल की उम्र में सरला ठकराल को 1936 में पायलट का लाइसेंस मिला था।


शादी के बाद उड़ाया पहला एयरक्राफ्ट

सरला की शादी बहुत ही कम उम्र में हो गई थी। वह जब 16 साल की थी, तब उनकी शादी पी.डी शर्मा से हुई। सरला के लिए सबसे अच्छा ये था कि शादी जिस परिवार में हुई थी उस परिवार में 9 सदस्य थे और सभी पायलट थे। उनके पति ने ही उन्हें विमान उड़ाने की ट्रेनिंग लेने के लिए कहा था। उनके परिवार में सभी बेहद खुश थे कि वह पायलट बनने की तैयारी कर रही हैं। उनके सपने को पंख उनके पति और उनके ससुर ने ही दिए थे, जिसकी बदौलत वह आगे तक पहुंची थीं।

दुनिया में भारतीय परिधान साड़ी को दिलाया था सम्मान


साड़ी जो एक वक्त में सिर्फ महिलाओं के शरीर को ढकने के साथ पर्दा प्रथा के लिए भी जानी जाती थी, सरला ने इस भारतीय परिधान को पूरी दुनियां में सम्मान दिलाने का काम किया था। ऐसे समय में जब कॉकपिट में केवल पुरुष चेहरे ही देखे जा सकते थे, सरला आत्मविश्वास से भरे भारत का चेहरा थीं। इतना ही नहीं, वह कोई पारंपरिक पायलट की पोशाक नहीं बल्कि हमेशा साड़ी पहनकर उड़ान भरती थीं।सरला की ट्रेनिंग ऐसे फ्लाइंग क्‍लब में हुई जहां उनसे पहले कभी कोई लड़की नहीं देखी गई थी। फ्लाइंग स्कूल के लिए भी यह एक अजीब स्थिति थी। हालांकि, धीरे-धीरे लोगों को वहां मौजूद दूसरे पायलट व अधिकारियों को अपने साथी के तौर पर देखने की आदत होती गई और वह सहजता के साथ ट्रेनिंग लेते रहीं। ट्रेनिंग से जुड़े हर सवाल का जवाब उनकी जुबान पर रहता था। महज आठ घंटे के अंदर ही सरला के ट्रेनर को उन पर विश्वास हो गया था कि वह बहुत जल्द एक एक्सपर्ट पायलट के तौर पर खुद को साबित करने वाली हैं।

एयरमेल पायलट का लाइसेंस प्राप्त करने वाले पहले भारतीय थे सरला के पति

सरला के पति पी.डी. शर्मा भी एक पायलट थे और वह अपनी एयरमेल पायलट का लाइसेंस प्राप्त करने वाले पहले भारतीय थे, जो कराची और लाहौर के बीच उड़ान भरते थे। उन्होंने सरला की उड़ने की इच्छा को पहचाना और उसे इसे आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। इसी तरह सरला ने भी 1000 घंटे से अधिक फ्लाइंग करके ’ए’ लाइसेंस प्राप्त किया था। इस लाइसेंस से वह कमर्शियल प्लेन उड़ा सकती थीं।

पहली उड़ान के वक्त तक बन चुकी थी एक बच्चे की मां

उन्होंने ऐसे समय में इस सपने को पूरा किया जब विमानन केवल पुरुषों के लिए था। उनमें सीखने की काफी ललक थी, इसलिए उन्होंने जल्दी ही अपनी ट्रेनिंग पूरी कर ली थी और इसके तुरंत बाद उन्हें उड़ान भरने के लिए मंजूरी दे दी गई थी। सरला ने एक ब्रिटिश दो सीटों वाले पर्यटक और जिप्सी मॉथ के रूप में पहचाने जाने वाले ट्रेनिंग एयरक्राफ्ट से सीखना शुरू किया था। लाइसेंस के लिए उन्होंने 1,000 घंटे की उड़ान का समय पूरा किया। सरला ने 1936 में अपना लाइसेंस पाकर देश के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया। जब सरला ने अपनी पहली उड़ान भरी, तब वह न सिर्फ शादीशुदा थीं बल्कि उनकी चार साल की बेटी भी थी।

24 साल में विधवा हो गई थीं सरला

मात्र 24 साल में विधवा हो गई थीं सरला। साल 1939 में एक प्लेन क्रैश में सरला के पति की मृत्यु हो गई थी। पति की मृत्यु के कुछ समय बाद, उन्होंने कमर्शियल पायलट के लाइसेंस के लिए ट्रेन होना चाहा, इसके लिए उन्होंने आवेदन भी किया था, लेकिन तभी दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया था और इस दौरान सारी सिविल ट्रेनिंग स्थगित कर दी गई थीं। अपने बच्चे के परवरिश के लिए उन्होंने यह सपना छोड़, लाहौर का मायो स्कूल ऑफ आर्ट्स में दाखिला लिया और यहां से फाइन आर्ट्स में डिप्लोमा किया। पार्टीशन के बाद वह दिल्ली शिफ्ट हो गई थीं।

आर.पी. ठकराल से की दूसरी शादी

सरला आर्य समाज की प्रबल समर्थक थीं। जब वह दिल्ली आईं, तब यहां वह आर.पी. ठकराल से मिलीं, चूंकि आर्य समाज पुनर्विवाह को प्रोत्साहित करता है, तो उनके लिए आर.पी. ठकराल से शादी करना आसान हो गया था। साल 1948 में उन्होंने दूसरी शादी की।

एक बेहतरीन पायलट के साथ बनी सफल उद्यमी



 एक बेहतरीन पायलट के साथ सफल उद्यमी बनने तक का सफर अपने भीतर मौजूद हुनर के दम पर सफलतापूर्वक तय किया। उन्होंने अपने बाद के वर्षों में नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के लिए कॉस्टयूम ज्वेलरी मेकिंग, साड़ी डिजाइनिंग, पेंटिंग और डिज़ाइनिंग में सफलतापूर्वक काम किया। वह माती के नाम से पहचानी जाने लगीं और एक सफल पायलट बनने के बाद, एक सफल बिजनेस वुमन बनीं। वह अपने काम में इतनी अच्छी थीं कि उन दिनों उन्होंने कॉटेज एम्पोरियम के साथ-साथ अपने डिजाइन को नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा तक में भेजे थे।उनके कई ग्राहकों में एक नाम फ्रीडम फाइटर विजयलक्ष्मी पंडित का भी था। साल 2008 में उनका देहांत हो गया था।

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