Mewar Queen Hadi Rani Story: मेवाड़ की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाली वीर रानी की प्रेरणादायक कहानी

Mewar Ki Veer Rani Hadi Rani Ki Kahani: हाड़ी रानी, राजस्थान की एक वीर और साहसी रानी थीं, जिन्होंने मेवाड़ की रक्षा के लिए अपना सिर काटते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। उनका अद्वितीय बलिदान आज भी राजस्थान के गौरवमयी इतिहास में अमर है।;

Written By :  Shivani Jawanjal
Update:2025-01-30 17:00 IST

Mewar Queen Hadi Rani Story and History (Photo Credit - Social Media)

Mewar Ki Veer Rani Hadi Rani Story: राजस्थान,(Rajasthan) जिसे "राजाओं की भूमि" कहा जाता है, भारत का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य है। इसकी ऐतिहासिक जड़ें प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ी हैं, जो दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक थी। राजस्थान का नाम "राजाओं का स्थान" इस कारण पड़ा क्योंकि यहाँ पर विभिन्न राजपूत राजवंशों ने लंबे समय तक शासन किया।

यह क्षेत्र अपनी वीरता, गौरवशाली युद्धों और शौर्य गाथाओं के लिए प्रसिद्ध है। मेवाड़, मारवाड़, आमेर और शेखावाटी जैसे क्षेत्र राजस्थानी संस्कृति और इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राजपूत योद्धाओं जैसे महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान और रानी पद्मिनी की कहानियाँ यहाँ की मिट्टी में आज भी जीवित हैं। राजस्थान का इतिहास शौर्य और बलिदान की गाथाओं से भरा है।


राजस्थान के ऐतिहासिक पन्नों में एक कहानी ऐसी भी दर्ज है, जिस पर विश्वास करना कठिन है। यह कहानी है राजस्थान की एक प्रसिद्ध राजपूत रानी, हाड़ी रानी(Hadi Rani) की, जिनके बलिदान की गाथा आज भी राजस्थान के इतिहास में जीवित है। हाड़ी रानी ने अपने पति और राज्य के सम्मान के लिए जो त्याग किया, वह नारी शक्ति और राजपूत गौरव का प्रतीक बन गया। और उनकी यह अमर गाथा हमेशा के लिए अमर हो गई।

आइये जानते है हाड़ी रानी की कहानी।

हाड़ी रानी का परिचय


हाड़ी रानी राजस्थान की हाड़ा चौहान राजपूत(Hada Chauhan Rajput)की पुत्री और मेवाड़ के सलूंबर के सरदार राव रतन सिंह चूड़ावत(Rao Ratan Singh Chudavat) की पत्नी थीं। उनका विवाह सेनापति रतन सिंह से कुछ ही समय पहले हुआ था। मेवाड़ के महाराणा राज सिंह प्रथम ने जब औरंगजेब की सेना के खिलाफ युद्ध के लिए रतन सिंह को बुलाया, तो यह उनके लिए यह कठिन समय था, क्योकि तब उनके सामने कर्तव्य और नवविवाहिता पत्नी का मोह था।

क्या थी हाड़ी रानी की शौर्य गाथा ?

हाड़ी रानी की इस किंवदंती को सुनकर कोई भी भावविभोर हो सकता है। यह कहानी राजपूती शौर्य, त्याग और अदम्य साहस का प्रतीक है। जब मेवाड़ के महाराणा राज सिंह प्रथम ने मुगलों के खिलाफ विद्रोह का आह्वान किया, तब औरंगजेब ने किशनगढ़ पर आक्रमण की योजना बनाई, तब सेनापति रतन सिंह चूड़ावत अपने धर्म और कर्तव्य की पुकार पर रणभूमि में जाने के लिए तैयार हुए। उनकी हाल ही में शादी हुई थी,इसीलिए उनके मन में अपनी पत्नी, हाड़ी रानी के प्रति प्रेम और नई शादी का मोह था जो उन्हें अपनी पत्नी हाड़ी रानी को अकेला छोड़ने के विचार से दुविधा में डाल रहा था।


लेकिन राजपूत धर्म और राष्ट्र रक्षा के कर्तव्य को प्राथमिकता देते हुए वे युद्ध के लिए तैयार हुए। और उन्होंने अपनी पत्नी से एक निशानी मांगी जो रणभूमि में उनकी प्रेरणा बन सके । हाड़ी रानी ने यह महसूस किया कि उनके प्रति यह मोह रतन सिंह के कर्तव्य निर्वहन में बाधा बन सकता है। और इसीलिए हाड़ी रानी ने अपने पति को एक ऐसी निशानी देने का निर्णय लिया, जिसके विचार से ही मन कांप उठे। रानी ने पति के राजपूत धर्म को सर्वोपरि रखते हुए, अपना सिर काटकर थाल में रखवा दिया और उसे कपड़े से ढककर अपने सेवक के माध्यम से राजा के पास भेज दिया।

रतन सिंह का रानी के लिए संदेश

रतन सिंह युद्धभूमि की ओर प्रस्थान कर चुके थे, लेकिन उनका मन रानी में अटका हुआ था, जिससे वह विचलित हो रहे थे। अंततः उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने आधे मार्ग से अपने विश्वस्त सैनिक को रानी के पास भेजा। उन्होंने रानी को फिर से स्मरण कराया कि वह उन्हें भूलें नहीं और आश्वासन दिया कि वह अवश्य लौटेंगे। रानी ने संदेशवाहक को आश्वस्त कर वापस भेज दिया।

दूसरे दिन एक और संदेशवाहक आया और वही बात दोहराई। तीसरे दिन एक और संदेशवाहक पहुंचा, जो इस बार रानी के लिए सरदार का पत्र लेकर आया था। पत्र में लिखा था: "प्रिय, मैं यहां शत्रुओं से डटकर लड़ रहा हूं। अंगद के समान पैर जमाकर उन्हें रोके हुए हूं। मजाल है कि वे जरा भी आगे बढ़ सकें। यह सब तुम्हारे रक्षा कवच का प्रताप है। लेकिन तुम्हारी बहुत याद आ रही है। कृपया पत्रवाहक के साथ तुम्हारी कोई प्रिय निशानी भेज देना, ताकि उसे देखकर मेरा मन हल्का हो सके।"

रानी का पति को आखरी संदेश

हाड़ी रानी पत्र पढ़कर गहरी सोच में पड़ गईं। उन्हें विचार आया कि यदि युद्ध के बीच उनके पति का मन उनकी यादों में उलझा रहा तो वह शत्रुओं से कैसे लड़ पाएंगे और विजय कैसे प्राप्त करेंगे? इस सोच के साथ, उन्होंने एक दृढ़ निर्णय लिया। रानी ने सैनिक से कहा, "वीर, मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशानी दे रही हूँ। इसे थाल में सजाकर सुंदर वस्त्र से ढककर अपने सेनापति के पास पहुंचा देना। ध्यान रखना, इसे कोई और न देखे, केवल वे ही इसे खोलें। साथ में मेरा यह पत्र भी उन्हें दे देना।"

हाड़ी रानी के पत्र में लिखा था:"प्रिय, मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशानी भेज रही हूँ। तुम्हारे मोह के सभी बंधनों को काट रही हूँ। अब निश्चिंत होकर अपने कर्तव्य का पालन करो। मैं स्वर्ग में तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी।"


सेवक ने कांपते हाथों से थाल हाड़ा सरदार को दिया। थाल में पत्नी का सिर देखकर सरदार हतप्रभ होकर उसे देखता रह गया। उनके मुंह से केवल इतना निकला, "उफ्फ, हाय रानी! तुमने यह क्या कर डाला? संदेही पति को इतनी बड़ी सजा दे दी। खैर, अब मैं भी तुम्हारे पास आने वाला हूं।"

रणभूमि में शौर्य का परिचय

रानी के बलिदान ने सरदार के मोह के सारे बंधन तोड़ दिए। उन्होंने रानी के सिर को अपने बालों से बांधा और शत्रु पर टूट पड़े। उन्होंने रणभूमि में अद्वितीय शौर्य का प्रदर्शन किया। सरदार ने युद्ध में ऐसी वीरता दिखाई कि उसकी मिसाल मिलना मुश्किल था। वे जीवन की आखिरी सांस तक लड़े और औरंगजेब की सहायक सेना को आगे बढ़ने से रोक लिया। अंततः मुगल बादशाह को मैदान छोड़कर भागना पड़ा। और इसतरह अपने शौर्य से उन्होंने युद्ध में जीत हासिल की ।


लेकिन जब युद्ध समाप्त हुआ तो, पत्नी के वियोग से आहत रतन सिंह में अब जीवित रहने की इच्छा नहीं रही। अतः उन्होंने भी अपना सिर काटकर अपनी जीवन यात्रा समाप्त कर दी।

सलूंबर का हाड़ी रानी महल, जहां जीवित है बलिदान की कहानियाँ


आज भी मेवाड़ के लोग हाड़ी रानी के बलिदान को श्रद्धा और सम्मान के साथ याद करते हैं। उनकी वीरता और समर्पण की गाथा आज भी जीवित है, और उनकी एक प्रतिमा सलूंबर में स्थित हाड़ी रानी महल में देखी जा सकती है। यह महल आज पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन चुका है, जहाँ आने वाले लोग इसकी भव्यता को देखकर हाड़ी रानी की महानता और बलिदान की कहानी का एहसास कर सकते हैं। महल में उनकी प्रतिमा के पास एक बोर्ड भी लगाया गया है, जिस पर हाड़ी रानी के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है, जिससे लोग उनके जीवन और बलिदान को जान सकते हैं।

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