Indian Army Hero: कैसे इफ्तिखार भट्ट बनकर सेना के इस बहादुर जवान ने हिज्बुल के दो आतंकियों का खात्मा किया

Indian Army Hero Major Mohit Sharma: मेजर मोहित शर्मा ने एक अंडरकवर एजेंट के रूप में दुश्मनों के गढ़ में घुसकर महत्वपूर्ण ऑपरेशन को अंजाम दिया था। आइए जानें इसकी पूरी कहानी।;

Update:2025-03-10 13:29 IST

Indian Army Hero Major Mohit Sharma Story (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Indian Army Hero Major Mohit Sharma: भारत के इतिहास में कई वीर योद्धाओं ने अपने अदम्य साहस और बलिदान से देश की रक्षा की है। उन्हीं में से एक नाम है मेजर मोहित शर्मा, जो भारतीय सेना (Indian Army) के विशेष बलों (Para SF) के एक जांबाज अधिकारी थे। उनकी वीरता, नेतृत्व क्षमता और देशभक्ति के उदाहरण आज भी हर भारतीय के दिल में बसे हुए हैं। उन्होंने अपने जीवन की परवाह किए बिना कई गुप्त अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और दुश्मन के इलाके में घुसकर न केवल महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी जुटाई, बल्कि कई आतंकवादियों का भी सफाया किया। उनका जीवन साहस, शौर्य और राष्ट्रभक्ति की मिसाल है, जिसे इतिहास कभी नहीं भुला सकता।

मेजर मोहित शर्मा का प्रारंभिक जीवन – Early Life Of Major Sharma

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

मेजर मोहित शर्मा का जन्म 13 जनवरी 1978 को रोहतक, हरियाणा (Rohtak, Hariyana) में एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मेरठ (Meerut) जिले के रसना गाँव से संबंधित था। उनके पिता राजेंद्र प्रसाद शर्मा और माता सुशीला शर्मा (Rajendra Sharma & Sushila Sharma) थीं। वे अपने परिवार में दूसरे पुत्र थे। घर में उन्हें प्यार से ‘चिंटू’ कहा जाता था, जबकि उनके एनडीए बैच के साथी उन्हें ‘माइक’ नाम से पुकारते थे।

मोहित शर्मा ने अपनी स्कूली शिक्षा दिल्ली पब्लिक स्कूल, गाजियाबाद (Gaziabad) से पूरी की और 1995 में 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) की प्रवेश परीक्षा दी। उसी समय, उन्होंने श्री संत गजानन महाराज कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, शेगांव, महाराष्ट्र (Shegaon, Maharashtra) में भी दाखिला लिया। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान उन्होंने भोपाल में एसएसबी साक्षात्कार पास किया और दिसंबर 1995 में एनडीए में शामिल हो गए, जहां से उनके सैन्य करियर की शुरुआत हुई।

सैन्य करियर की शुरुआत - Major Mohit Sharma Military Career

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

मेजर मोहित शर्मा ने 1995 में इंजीनियरिंग छोड़कर अपने सपने को साकार करने के लिए राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में प्रवेश लिया। प्रशिक्षण के दौरान उन्होंने तैराकी, मुक्केबाजी और घुड़सवारी में विशेष कौशल दिखाया। उनकी घुड़सवारी असाधारण थी । अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के चलते वे घुड़सवारी के चैंपियन बने। इसके अलावा, वे फेदरवेट श्रेणी में मुक्केबाजी प्रतियोगिता के विजेता भी रहे।

मोहित शर्मा 1998 में भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) में शामिल हुए, जहाँ उन्हें बटालियन कैडेट एडजुटेंट के रूप में नियुक्त किया गया। इस दौरान उन्हें भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन से मिलने का अवसर मिला। दिसंबर 1999 में, उन्होंने लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन प्राप्त किया, जिससे उनके सैन्य जीवन की औपचारिक शुरुआत हुई।

उनकी पहली तैनाती 5वीं बटालियन द मद्रास रेजिमेंट (5 मद्रास) में हैदराबाद में हुई। तीन साल की सफल सेवा के बाद, उन्होंने 38 राष्ट्रीय राइफल्स (RR) में भी अपनी सेवाएँ दीं, जहाँ उनके साहस और उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें "चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ प्रशंसा पत्र" से सम्मानित किया गया।

पैरा स्पेशल फोर्स में प्रवेश - Major Mohit Sharma In Para Special Forces

दिसंबर 2002 में, उन्होंने पैरा (विशेष बल) में शामिल होने का विकल्प चुना। कठिन प्रशिक्षण और कड़े परीक्षणों को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद, वे जून 2003 में एक प्रशिक्षित पैरा कमांडो बने। 11 दिसंबर 2005 को, उनकी उत्कृष्ट सेवा को देखते हुए उन्हें "मेजर" के पद पर पदोन्नति दी गई।

वीरता और कर्तव्य परायणता - Bravery and Dedication

मार्च 2004 में, कश्मीर में एक महत्वपूर्ण सैन्य अभियान में उनकी बहादुरी को देखते हुए उन्हें ‘सेना पदक’ से सम्मानित किया गया। इसके बाद उन्हें बेलगाम में प्रशिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया, जहाँ उन्होंने दो वर्षों तक कमांडो प्रशिक्षण की जिम्मेदारी निभाई।

अंडरकवर एजेंट के रूप में मेजर मोहित शर्मा- Major Sharma as Undercover Agent

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

2004 में, मेजर मोहित शर्मा की तैनाती कश्मीर घाटी में की गई, जहाँ उस समय हिज्बुल मुजाहिदीन (Hizbul Mujahideen) आतंकवादी संगठन सबसे अधिक सक्रिय था। यह संगठन भारतीय सेना पर लगातार हमले कर रहा था। सेना को खुफिया सूचना मिली कि अबू तरारा और अबू सजार नामक दो आतंकवादी इन हमलों के मास्टरमाइंड थे।

गुप्त मिशन की योजना- Secret Mission Plan

मेजर मोहित शर्मा को इन आतंकियों का सफाया करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। उन्होंने एक साहसिक योजना बनाई, जिसके तहत वे एक अंडरकवर एजेंट बनकर आतंकियों के समूह में शामिल होने वाले थे। उन्होंने अपने बाल और दाढ़ी बढ़ा ली और अपनी पहचान छुपाने के लिए अपना नाम बदलकर "इफ्तिखार भट्ट" (Iftikhar Bhatt) रख लिया।

अपने नए रूप में, उन्होंने आतंकियों से संपर्क किया और उन्हें यह भरोसा दिलाया कि वे भारतीय सेना से बदला लेना चाहते हैं, क्योंकि सेना ने उनके भाई को मार दिया था। उन्होंने आतंकियों को एक नई हमले की योजना भी बताई, जिससे आतंकियों को उन पर विश्वास हो गया और उन्होंने उन्हें अपने गिरोह में शामिल कर लिया।

गुप्त ऑपरेशन और जानकारी एकत्र करना - Secret Operation and Intelligence Gathering

अगले दो हफ्तों तक, मेजर मोहित शर्मा आतंकियों के साथ रहे और उनकी ठिकानों, हथियारों और रणनीतियों की गुप्त रूप से जानकारी इकट्ठा करते रहे। इसी दौरान, उन्हें पता चला कि पाकिस्तान से तीन और आतंकी उनकी मदद के लिए आने वाले हैं।

आतंकियों का सफाया - Elimination of Terrorists

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

एक दिन, जब मेजर शर्मा आतंकियों के लिए ‘कावा’ (कश्मीरी चाय) बना रहे थे, तब आतंकियों को उन पर शक होने लगा। उन्होंने उनसे सख्ती से पूछा कि वे असल में कौन हैं। इस पर मेजर शर्मा ने पूरी दृढ़ता के साथ जवाब दिया कि उन्होंने पहले ही अपनी पूरी कहानी बता दी है और अगर उन पर भरोसा नहीं है, तो वे उन्हें गोली मार सकते हैं।

उनके आत्मविश्वास और निडरता को देखकर आतंकियों ने अपने शक को छोड़ दिया। लेकिन मेजर शर्मा को एहसास हो गया कि अब उन्हें जल्द से जल्द कार्रवाई करनी होगी। जैसे ही आतंकवादी कावा पीने के लिए मुड़े, मेजर शर्मा ने अपनी पिस्तौल निकाली और उन पर गोलियों की बौछार कर दी। दोनों आतंकी मौके पर ही ढेर हो गए।

यह ऑपरेशन भारतीय सेना की बहादुरी और रणनीतिक कुशलता का एक बेहतरीन उदाहरण बना और मेजर मोहित शर्मा की वीरता को हमेशा याद किया जाएगा।

अंतिम मिशन और शहादत - Final Mission and Martyrdom

(पोटो साभार- सोशल मीडिया)

अक्टूबर 2008 में, मेजर मोहित शर्मा को जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में आतंकवादियों के खिलाफ एक और महत्वपूर्ण अभियान में भाग लेने का आदेश मिला। उन्होंने कई सफल अभियानों का नेतृत्व किया, लेकिन 21 मार्च 2009 का दिन उनकी वीरता की अंतिम परीक्षा साबित हुआ।

उस दिन, मेजर मोहित शर्मा अपनी टीम के साथ आतंकवादियों का पीछा कर रहे थे, जब वे अचानक भारी गोलीबारी में फंस गए। स्थिति अत्यंत कठिन थी, लेकिन उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मनों पर हमला किया। उनकी रणनीति और साहस ने आतंकवादियों को कमजोर कर दिया, और वे कई आतंकियों को मार गिराने में सफल रहे। इस ऑपरेशन में मेजर मोहित शर्मा ने घायल होने के बावजूद 4 आतंकियों को मारकर अपने 2 साथियों की जान बचाई थी।

हालांकि, इस वीरतापूर्ण संघर्ष के दौरान वे गंभीर रूप से घायल हो गए। अपने अंतिम क्षणों तक उन्होंने अपने साथियों का मार्गदर्शन किया और बहादुरी से लड़ते हुए देश के लिए शहादत प्राप्त की।

उनका बलिदान भारतीय सेना के इतिहास में एक अमर गाथा बन गया, और वे हमेशा साहस, निडरता और राष्ट्रभक्ति के प्रतीक के रूप में याद किए जाएंगे।

अमर वीरता का सम्मान - Honor of Immortal Bravery

तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल मेजर मोहित शर्मा की पत्नी मेजर रिशिमा शर्मा को अशोक चक्र प्रदान करते हुए (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

कुपवाड़ा ऑपरेशन के दौरान मेजर मोहित शर्मा ने जो सर्वोच्च बलिदान दिया, उसके लिए भारत सरकार ने उन्हें 26 जनवरी 2010 को देश के सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया। यह सम्मान उन्हें मरणोपरांत प्रदान किया गया, जो शांति काल में सर्वोच्च सैन्य अलंकरण माना जाता है।

इसके अलावा, उनकी अदम्य साहस और वीरता के लिए उन्हें पहले ही "सेना मेडल" से भी नवाजा गया था। उनका यह बहादुरी भरा अभियान "ऑपरेशन रक्षक" के नाम से जाना जाता है, जिसने भारतीय सेना के शौर्य और बलिदान की एक अमर गाथा लिखी।

सम्मान और विरासत - Honor and Legacy

मेजर मोहित शर्मा (Major Mohit Sharma) की बहादुरी को हमेशा याद किया जाता रहेगा। उनके सम्मान में कई संस्थानों और सड़कों का नाम रखा गया है। गाजियाबाद में उनके नाम पर "मेजर मोहित शर्मा राजकीय इंटर कॉलेज" स्थापित किया गया है। उनके नाम पर स्कूलों और संस्थानों में स्मृति समारोह आयोजित किए जाते हैं। इसके अलावा, उनकी वीरता पर आधारित कई कहानियाँ और वृत्तचित्र भी बनाए गए हैं।

Tags:    

Similar News