Indian Philosophy: मानव बुद्धि का विकास, दर्शन की शुरुआत

Indian Philosophy: मानव बुद्धि का विकास दर्शन की शुरुआत है, भारतीय दर्शन व्यावहारिक होने के साथ साथ आध्यात्मिक हो जाता है जबकि पाश्चात्य दर्शन विज्ञान परक सैद्धांतिक है

Newstrack :  Network
Update:2024-05-14 14:30 IST

Indian Philosophy

Indian Philosophy: आज जीवन के 47वर्ष बाद भारतीय दर्शन की पुस्तक को पुनः पढ़ने का सौभाग्य मिला। 1977-82तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छत्रछाया में प्रख्यात प्रोफेसर श्री शिवशंकर राय, प्रो. संगमलाल पाण्डेय,प्रो.जगदीश सहाय श्रीवास्तव, डा.डी.एन द्विवेदी,डा.रामलाल सिंह, डा.सी.एल त्रिपाठी आदि दर्शन के मूर्धन्य विद्वानों का आशीर्वाद और स्नेह मिला। जिनके ऋण से कभी उऋण नहीं हो पाऊंगा।उस समय दर्शन पढ़ने का ध्येय प्रतियोगी परीक्षाओं में मात्र सफलता प्राप्त करना था।पर आज जब उसी पुस्तक के पन्ने पलटे तो लगा कि दर्शन का ध्येय मात्र सफलता प्राप्त करना नहीं है,यह तो मानवजीवन की तमाम समस्याओं का समाधान है।

मानव विचारशील प्राणी है,अन्नत जिज्ञासाओं का स्वामी है,जीवन क्या है,मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, कहाँ जाऊंगा, सूर्य, चन्द्र, तारे और प्रकृति का विस्मय आदि रहस्यों को जानने का तर्क संगत ,ईश्वर ,जीव,मोक्ष,वेद को माने या न माने आदि प्रश्नों का समधान दर्शन है।मानव बुद्धि का विकास दर्शन की शुरुआत है।भारतीय दर्शन व्यावहारिक होने के साथ साथ आध्यात्मिक हो जाता है जबकि पाश्चात्य दर्शन विज्ञान परक सैद्धांतिक है, और एक के बाद एक शुरू होता है,जैसेसुकरात के बाद,प्लेटो और क्रमशः डेकार्ट, स्पिनोजा,लाक,बर्कले आदि।यह सभी पूर्व दार्शनिको की आलोचना कर आगे बढ़ते हैं ।दर्शन की चर्चा अन्नत है।मेरे दामाद जो कानपुर आई.आई.टी से बी.टेक और एम.टेक है,इस समय कनाडा में कार्य रत हैं,उनका दार्शनिक प्रेम जानकर मैं चौंक गया। इतनी व्यस्त जिन्दगी के बाबजूद उन्होंने यहाँ आते ही प्रोफेसर हरेन्द्र सिन्हा की पुस्तक भारतीय दर्शन की रूपरेखा अमेजन से मंगा डाली।और मुझे पुनः पढ़ने के लिए विवश कर दिया।

पुस्तक के प्रथम अध्याय का सारः काव्य रुपांतरण।

दर्शन क्या है?

दृश का अर्थ है देखना, दर्शन दृश का पूत।

मानव चिन्तन शील है, खोज करे अवधूत।।

अखिल सृष्टि दर्शन विषय,न जिज्ञासा का अन्त।

मानव मन खोजत फिरत, जीव आत्मा कन्त।।

तत्व ज्ञान की खोज में, है अनुभूति का महत्व।

दुख से छुटकारा मिले,और दर्शन हो देवत्व।।

मोक्ष प्राप्ति मूल है, दर्शन का उद्देश्य ।

वेद स्रोत हैं ज्ञान के, गीता है उपलक्ष्य।।


भारतीय दार्शनिक सम्प्रदाय।

सम्प्रदाय की दृष्टि से, दो हैं प्रमुख भेद।

एक आस्तिक के निकट,दूजा नास्तिक भेद।।


आस्तिक दर्शन।

षड्दर्शन हैं आस्तिक ,तीन नास्तिक बहुत।

कुछ वेदों को मानते,कुछ निंदा करते बहुत।।

न्याय वैशेषिक सांख्य योग,मीमांसा वेदांत।

इन्हें आस्तिक जानिए, जैन बुद्ध उपरांत ।।


नास्तिक दर्शन।

घोर नास्तिक जानिए, दर्शन है चार्वाक।

बुद्ध जैन पीछे चले , आगे हैं चार्वाक।।


ईश्वर और दर्शन।

दर्शन घूम रहा ईश्वर के, अविरल चारो ओर।

तर्क सीढियों पर चढकर, ये ढूंढ रहा है छोर।।

वेदों में ऋग्वेद मूल है, टीका उपनिषद सोपान।

पर और अपर ब्रह्म कैसे कर पायें पहचान ?

नेति नेति कहता कोई इसको न प्रत्यक्ष प्रमाण।

नहीं नास्तिक सत्य मानते ,ये सारे अनुमान।।

ईश्वर एक कल्पना है, ये सृष्टि स्वतः सृजित है।

मानव पाता भोग कर्म का,जो उसका अर्जित है।।

वेद बताते जग मिथ्या है,सत्य सिर्फ़ भगवान।

खुद को कुछ भगवान बताते जनता है हैरान।।

बाबा लेखराज में बैठा आकर शिव भगवान।

वृन्दावन में विराजमान है जगह जगह भगवान।।

आशाराम स्वयं को कहते मैं खुद हूँ भगवान ।

रामपाल व रहीम बताते, हम बढकर भगवान।।

लूट रहे सारे सब मिलकर, समझ रहे कमजोरी।

पढ़े लिखे भी हैं बौराये, अनपढ जनता भोरी।।


निष्कर्ष

दर्शन वेदों का दर्पण है, दार्शनिक दृष्टा उसके।

गीता सबका सार बताते, राजी जन हैं दुनिया के।।

रुकने वाली खोज नहीं है,चली आ रही युगों से।

जिसने जितना जाना उसको,पूछा है सिर्फ वेदों से।।

पश्चिम भी गीता को माने, पूरव उसपर धनुआ ताने।

जन मानस उसको पहचाने, गूंज रहे गीता के गाने।।


चार्वाक दर्शन।

चार्वाक दर्शन है ऐसा, और माने नहीं ब्रह्म है कैसा?

खाओ पिओ मौज उड़ाओ, कर्म करो मन चाहे जैसा।।

वेदों ने यह पाठ पढ़ाया,ईश्वर का बस भय दिखलाया।

मेहनत का धन लूट के खाया, सबने अपना ईश बनाया।।

पुरुषों की साजिश इसमें है, नारी को बंधक बनवाया।

पति परमेश्वर स्वयं बताया,घर में रहकर उसे सताया।।

पूजा पाठ का जतन बताया, सत्य नारायण कथा सुनाया।

लक्ष्मी को इतना डरपाया, चरणों को अपने दबवाया।।

महज बताकर उसे पूजनीय, छीन लिए सब हक उसके।

सीमित चौखट के अन्दर कर, मार दिये सपने उसके।।

उसे मर्यादा का पाठ सिखाया, शील का पहनाया गहना।

व्रत उपवास उसी के जिम्मे , गम खाये और खुश रहना।।

ईश्वर की रचना वेद नहीं,यह ऋषियों का है संविधान

यह घोर अविद्या का घर है,नारी का है नरकिस्तान।।

नारी बनी नर्तकी यहाँ पर, महज मनोरंजन साधन।

नीचे विश्वामित्र विराजें , उपर सोहे इन्द्रासन ।।

ईश्वर का अवतार दिखाये,सदा पुरुष योनि में है।

नारी उसकी जन्म दात्री, पर इतनी सीमित क्यों है।।

वेदों का उपहास उड़ाया, ईश्वर की सत्ता ठुकराया।

मौज करो प्यारे जीवन में,चार्वाक दर्शन सिखलाया।।


बौद्ध दर्शन।

दुःख क्या है क्या समाधान है कैसे होगा इसका अन्त?

इनका उत्तर चला खोजने , छोड़ छाड़ के वह भगवन्त।।

वैभब से बाहर निकला वह, दुख सबका देखा उसने।

बस प्रश्न का हल करने को, घूम घूम परखा उसने।।

कोई रोग शोक से पीड़ित,कोई बच्चे का है भूखा।

कहीं बाढ़ का है विनाश, तो कहीं भंयकर है सूखा।।

कैसे हों दुख दूर धरा के, चले त्याग कर घर परिवार।

कैसे होगा इसका निदान ,,लगा खोजने राजकुमार।।

त्रिपिटकों में लिखे सूत्र, पाली भाषा आधार बनी।

अनुयायी आगे विखर गये,जो सोचा वह न बात बनी।।

हीनयान और महायान बन गये प्रचारक अलग अलग।

शून्यवाद व क्षणिक वाद का राग अलापाअलग अलग।।

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