Hariyali Teej 2024: पहली बार रख रहीं हरियाली तीज का व्रत? तो ध्यान रखें ये बातें, न करें इन्हे नज़रअंदाज़

Hariyali Teej 2024: हरियाली तीज का त्योहार इस साल 7 अगस्त 2024 को है। आइये जानते हैं कि इस व्रत को करते समय आपको किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

Newstrack :  Network
Update: 2024-08-03 01:15 GMT

Hariyali Teej 2024 (Image Credit-Social Media)

Hariyali Teej 2024: हरियाली तीज त्योहार सुहागिनों के लिए बेहद महत्वपर्ण दिन होता है इस दिन वो अपने पति की लम्बी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखतीं हैं। वहीँ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान् शिव को पति के रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने हरियाली तीज पर ही संकल्प किया था। उन्होंने इस समय ही निर्जला व्रत रखा था। ऐसे में हरियाली तीज माँ पार्वती को समर्पित है। वहीँ इस पर्व पर महिलाएं झूला भी झूलतीं हैं।

सावन के महीने में मनाया जाने वाला त्यौहार हरियाली तीज हर साल सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर किया जाता है। ये त्योहार सुहागिनों के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। वहीँ अगर आप इस व्रत को पहली बार करने जा रहीं हैं तो कुछ बातों का विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। इन बातों को ध्यान रखने से आपको इस व्रत का पूरा फल मिलेगा।

हरियाली तीज व्रत के कुछ विशेष नियम हैं जिन्हे समझ लेना बेहद आसान है। दरअसल हरियाली तीज का व्रत निर्जला ही रखा जाता है। लेकिन अगर आप निर्जला व्रत रखने के लिए फिट फलहारी भी कर सकतीं हैं। साथ ही इस दिन हरे रंग का विशेष महत्त्व है जैसा की इस त्योहार के नाम से भी स्पष्ट हो रहा है। ऐसे में आप अपने श्रृंगार में हरा रंग ज़रूर शामिल कर लें। जैसे- हरी चूड़ियां, हरी साड़ी, बिंदी आदि। इस त्यौहार पर मेहँदी का भी काफी महत्त्व है तो ऐसे में इस दिन मेहँदी ज़रूर लगवाएं। इससे माँ पार्वती की आपपर विशेष कृपा प्राप्त होगी।

हरियाली तीज पर माता पार्वती को श्रृंगार का सामान अर्पित करना चाहिए। अगर आपने भी ये व्रत किया है तो माता पार्वती को 16 श्रृंगार की चीज़ें अर्पित करें। इससे माँ पार्वती अति प्रसन्न रहतीं हैं और साधक को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देती है।

वहीँ याद रखें कि इस दिन आप किसी भी तरह के नकारात्मक विचार अपने मन में न आने दें। न ही किसी तरह के वाद विवाद में पड़े। इसके अलावा आपको किसी बड़े-बूढ़े व्यक्ति का अपमान भी नहीं करना चाहिए था। कहते हैं कि ऐसा करने पर आपका व्रत पूर्ण नहीं होता। साथ ही इसका फल भी नहीं मिलता था।

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