Hawai Jahaj Kisne Banaya: जाने भारत के पहले विमान निर्माता शिवकर बापूजी तलपड़े के बारे में

First Aircraft Maker Of India: शिवकर बापूजी तलपड़े एक भारतीय वैज्ञानिक थे, जिन्होंने 1895 में वैदिक ग्रंथों पर आधारित 'मरुतसखा' नामक विमान का सफल परीक्षण किया।;

Update:2025-03-07 13:47 IST

India First Aircraft Maker Shivkar Bapuji Talpade Biography 

India First Aircraft Maker History: भारतीय वैज्ञानिक और आविष्कारक शिवकर बापूजी तलपड़े का नाम इतिहास में एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दर्ज है, जिन्होंने विमान निर्माण के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया था। 19वीं शताब्दी में, जब दुनिया में हवाई यात्रा की शुरुआत भी नहीं हुई थी, तब शिवकर तलपड़े ने अपने शोध और प्राचीन भारतीय ग्रंथों के आधार पर एक विमान का निर्माण किया था। उनके इस योगदान को भारतीय विज्ञान के एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में देखा जाता है। इस लेख में हम शिवकर बापूजी तलपड़े के जीवन, उनकी खोज, उनके विमान 'मरुतसखा' और उनके योगदान को विस्तार से जानेंगे।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा – Early life of Shivkar Bapuji Talpade

शिवकर बापूजी तलपड़े(Shivkar Bapuji Talpade) का जन्म 1864 ईस्वी में महाराष्ट्र के मुंबई (तब बॉम्बे) में हुआ था। वे एक मराठी परिवार में पैदा हुए थे, जो शिक्षा और संस्कृति से गहराई से जुड़ा हुआ था। तलपड़े ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में पूरी की और वे संस्कृत भाषा के अच्छे ज्ञाता बने। इसके साथ ही, वे वैदिक ग्रंथों और प्राचीन भारतीय विज्ञान में गहरी रुचि रखते थे।

भारतीय ग्रंथों में विज्ञान और तकनीकी ज्ञान की प्रचुरता को देखकर उन्होंने वैमानिकी (Aviation) में रुचि लेनी शुरू कर दी। ऋग्वेद, उपनिषद, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में विमानों के उल्लेख ने उनके मन में एक गहरी छाप छोड़ी। विशेष रूप से, उन्होंने 'विमानिका शास्त्र' नामक ग्रंथ से प्रेरणा ली, जिसे महर्षि भारद्वाज द्वारा लिखा गया माना जाता है। इस ग्रंथ में विभिन्न प्रकार के विमानों का उल्लेख किया गया है, जिनमें 'शक्तियान', 'पुष्पक विमान' आदि शामिल हैं।

वैज्ञानिक अनुसंधान और विमान निर्माण - Scientific research and aircraft construction

शिवकर बापूजी तलपड़े ने अपने शोध कार्य के दौरान यह समझा कि भारतीय ग्रंथों में दिए गए ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ मिलाकर एक वास्तविक विमान बनाया जा सकता है। उन्होंने विशेष रूप से संस्कृत विद्वान सुब्रय्या शास्त्री से विमान निर्माण की तकनीक पर गहन अध्ययन किया। उनके अनुसार, प्राचीन भारतीय विमान उड़ाने के लिए पारंपरिक ईंधन के बजाय सौर ऊर्जा और पारे के मिश्रण का उपयोग करते थे।

कई वर्षों के शोध और प्रयासों के बाद, 1895 में शिवकर तलपड़े ने 'मरुतसखा' नामक एक विमान का सफल निर्माण किया। यह विमान उन्होंने मुंबई के चौपाटी समुद्र तट पर सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया था।

'मरुतसखा' की ऐतिहासिक उड़ान-The historic flight of 'Marutsakha'

22 जून 1895 को मुंबई(Mumbai)के चौपाटी में हजारों लोगों की उपस्थिति में 'मरुतसखा'(Marutsakha) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। यह विमान बिना किसी आधुनिक तकनीक के, पूरी तरह से भारतीय वैज्ञानिक ज्ञान और वैदिक ग्रंथों पर आधारित था। माना जाता है कि इसने 1500 फीट (450 मीटर) तक की ऊँचाई तक उड़ान भरी और कुछ समय तक हवा में रहने के बाद नीचे उतर गया।

इस ऐतिहासिक क्षण के दौरान, कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे, जिनमें प्रसिद्ध समाज सुधारक बाल गंगाधर तिलक भी शामिल थे। कहा जाता है कि तिलक ने इस उपलब्धि को देखकर तलपड़े की बहुत प्रशंसा की थी।

हालांकि, उस समय भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था और अंग्रेजों को भारतीय वैज्ञानिक प्रगति पसंद नहीं थी। इसलिए, तलपड़े को अपने प्रयोगों को जारी रखने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

मरुतसखा के बाद, संघर्ष और असफलताएँ - Struggles and Failures


हालांकि 'मरुतसखा' की उड़ान सफल रही थी, लेकिन यह प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ सका। इसके पीछे कई कारण थे:

• ब्रिटिश सरकार का विरोध:- अंग्रेजों को भारतीयों द्वारा विकसित कोई भी नई तकनीक पसंद नहीं थी। वे नहीं चाहते थे कि भारत विज्ञान और तकनीक में आगे बढ़े।

• वित्तीय संकट:- तलपड़े के पास अपने शोध कार्य को जारी रखने के लिए पर्याप्त धन नहीं था। किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिलने के कारण यह परियोजना ठप हो गई।

• तकनीकी सीमाएँ:- उस समय विमान तकनीक अभी शुरुआती दौर में थी, और बिना पर्याप्त संसाधनों के इसे पूर्ण विकसित करना कठिन था।

• राइट ब्रदर्स की सफलता:- 1903 में, अमेरिकी वैज्ञानिक राइट ब्रदर्स (Wilbur & Orville Wright) ने आधुनिक हवाई जहाज का सफल परीक्षण किया, जिसे आधिकारिक रूप से पहली नियंत्रित उड़ान माना गया। इस कारण शिवकर तलपड़े का योगदान दुनिया के सामने ज्यादा नहीं आ सका।

तलपड़े का जीवन और निधन-Death & Legacy

शिवकर बापूजी तलपड़े ने अपनी पूरी जिंदगी भारतीय विज्ञान और प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन में बिताई। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में वे काफी हताश और निराश हो गए थे, क्योंकि उनकी खोज को वह पहचान नहीं मिली जिसकी वह हकदार थी।

1916 में, उन्होंने 52 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली। उनके बाद उनकी तकनीकों और शोधों पर कोई विशेष कार्य नहीं हुआ, और धीरे-धीरे उनका नाम इतिहास में धुंधला पड़ गया।

शिवकर तलपड़े का योगदान और उनकी विरासत - Shivkar Talpade's Contribution 


आज शिवकर बापूजी तलपड़े को भारतीय विज्ञान और प्राचीन भारतीय ज्ञान के पुनर्जागरण के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। हालांकि, उनकी उपलब्धियों को औपचारिक मान्यता नहीं मिली, फिर भी वे भारतीय विज्ञान के पहले विमान निर्माता के रूप में जाने जाते हैं। उनके योगदान को निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है:

• भारतीय वैमानिकी विज्ञान के प्रवर्तक:- उन्होंने प्राचीन भारतीय ग्रंथों में उल्लेखित विमान शास्त्र को आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परखा और इसे साकार किया।

• स्वदेशी तकनीक का उपयोग:- पश्चिमी तकनीक की सहायता के बिना, उन्होंने भारतीय ज्ञान और पारंपरिक संसाधनों के माध्यम से विमान निर्माण किया।

• प्रेरणा स्रोत:- उनके कार्य से प्रेरणा लेकर आज भी कई भारतीय वैज्ञानिक और अनुसंधानकर्ता प्राचीन भारतीय विज्ञान की खोज में लगे हुए हैं।

शिवकर बापूजी तलपड़े भारतीय विज्ञान के एक अनसुने नायक थे, जिन्होंने कठिन परिस्थितियों के बावजूद एक विमान का निर्माण कर दिखाया। यदि उन्हें उचित संसाधन और सरकारी सहायता मिलती, तो शायद भारत हवाई जहाज के क्षेत्र में पश्चिमी देशों से पहले ही आगे निकल सकता था।

आज, जब हम विज्ञान और तकनीकी विकास की बात करते हैं, तो हमें ऐसे महान भारतीय वैज्ञानिकों को भी याद रखना चाहिए, जिन्होंने सीमित संसाधनों के बावजूद विज्ञान में अद्वितीय योगदान दिया। शिवकर बापूजी तलपड़े का जीवन इस बात का प्रमाण है कि यदि व्यक्ति में इच्छाशक्ति और समर्पण हो, तो वह किसी भी चुनौती को पार कर सकता है।

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